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ये भी है बिहार की एक बोली...'मिथिलांचल उर्दू'

अमेरिका स्थित एक भारतीय भाषा विज्ञानी ने बिहार के कुछ हिस्सों में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के बीच बोली जाने वाली एक नई बोली की खोज की है, जिसका कोई लिखित रिकॉर्ड या नाम नहीं...

ये भी है बिहार की एक बोली...'मिथिलांचल उर्दू'
Mon, 28 Jan 2013 02:17 PM
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अमेरिका स्थित एक भारतीय भाषा विज्ञानी ने बिहार के कुछ हिस्सों में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के बीच बोली जाने वाली एक नई बोली की खोज की है, जिसका कोई लिखित रिकॉर्ड या नाम नहीं है।

सेंट लूईस स्थित वाशिंगटन युनिवर्सिटी में भाषा विज्ञान एवं भारतीय भाषाओं के अध्यापक, मोहम्मद वारसी ने कहा है कि दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, बेगूसराय और मुजफ्फरपुर में मुख्य सम्पर्क भाषा मैथिली है। लेकिन जब मुसलमान आपस में बात करते हैं तो वे एक ऐसी बोली में बोलते हैं, जो मैथिली, हिंदी, और उर्दू से भिन्न है। इस बोली का अपना कोई साहित्य नहीं है।

वारसी ने कहा कि इसका कारण यह हो सकता है कि इस बोली की ओर अभी तक भाषा विज्ञानियों ने ध्यान नहीं दिया है। वारसी को 2012 का जेम्स ई. मैक्लिऑड फैकल्टी रिकांग्निशन अवार्ड प्राप्त हो चुका है।

वारसी ने एक तुलनात्मक अध्ययन करते हुए कहा कि उन्होंने पाया है कि यह नई बोली हिंदी, उर्दू, और मैथिली से पूरी तरह भिन्न है और उनके क्रिया संयोजन और वाक्य संरचना एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न है।

उदाहरण के तौर पर 'वी आर गोइंग' को हिंदी में 'हम जा रहे हैं', मैथिली में 'हम जाय रहल छी' और उर्दू में 'हम जा रहे हैं' कहते हैं। लेकिन नई बोली में इसे कहेंगे : 'हम जा रहलिया हाए'।

नई बोली में 'तू', 'तुम' और 'आप' की जगह इस्तेमाल होने वाले 'तू' का केवल एक-दूसरा व्यक्ति ही उच्चारण करता है। वारसी ने कहा कि इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि नई बोली में क्रिया संयोजन हिंदी, उर्दू और मैथिली से पूरी तरह भिन्न है।

बिहार के दरभंगा जिले के मूल निवासी वारसी ने इस बोली को 'मिथिलांचल उर्दू' का नाम दिया है। उन्होंने कहा कि भाषा किसी खाके में नहीं बंधती और न तो यह किसी खाके पर निर्भर होती है।

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