यूपी में जनता ने धनकुबेरों व बाहुबलियों को नकारा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी जैसे कुछ बाहुबली निर्वाचित होने में भले ही कामयाब रहे हों, लेकिन पूरे परिदृश्य पर नजर डाली जाए तो मतदाताओं ने बाहुबलियों को नकार...
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी जैसे कुछ बाहुबली निर्वाचित होने में भले ही कामयाब रहे हों, लेकिन पूरे परिदृश्य पर नजर डाली जाए तो मतदाताओं ने कुख्यात माफिया बृजेश सिंह, अतीक अहमद और मुन्ना बजरंगी जैसे लोगों के खिलाफ मतदान करने का साहस भी दिखाया।
बृजेश सिंह जहां सैयदराजा सीट से चुनाव हार गए, वहीं उनके धुर विरोधी मुख्तार अंसारी एक बार फिर मऊ से विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। इलाहाबाद में जहां अतीक अहमद जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को जनता ने नकार दिया, वहीं मोहम्मदाबाद से भाजपा के पूर्व विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में आरोपी एक अन्य कुख्यात माफिया मुन्ना बजरंगी को भी मडिम्याहूं सीट से हार मिली।
बाहुबलियों के अतिरिक्त धनकुबेरों की बात करें तो उन्हें भी जनता ने नकार दिया। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर नामांकन दाखिल करने वाले प्रत्याशियों में करीब 66 फीसदी, तो समाजवादी पार्टी (सपा) की ओर से करीब 59 फीसदी लोग करोड़पति हैसियत वाले थे।
विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने वालों में प्रमुख नाम कांग्रेस से आगरा के नइम अहमद और इलाहाबाद से बसपा के नंदगोपाल नंदी शामिल थे। लेकिन दोनों को हार नसीब हुई। डी. पी. यादव भी सहसवां सीट से चुनाव हार गए तो मानिकपुर विधानसभा सीट से सपा के श्यामचरण गुप्ता को भी जनता ने खारिज कर दिया।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाने उतरे 753 दागियों में से केवल 14 उम्मीदवार ही जीत हासिल करने में कामयाब रहे। इनमें से कुछ लोगों पर हत्या और हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले दर्ज हैं।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार चुनाव में कम से कम 753 दागी उम्मीदवार मैदान में थे। लेकिन जनता ने केवल 14 लोगों को अपना नुमाइंदा चुना।
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अभयानंद शुक्ल बताते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन के कारण इस बार मतदाता जागरूक थे, इसलिए उन्होंने बृजेश सिंह और मुन्ना बजरंगी जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के खिलाफ फैसला सुनाया।