फोटो गैलरी

Hindi Newsकभी हार नहीं मानते: माइकल फेल्प्स

कभी हार नहीं मानते: माइकल फेल्प्स

फेल्प्स का जन्म अमेरिका में 30 जून 1985 को बाल्टीमोर के मैरीलैंड में हुआ। उनकी मां जहां एक प्राइमरी स्कूल में डिप्टी प्रिंसिपल थीं, वहीं पिता खेलों के काफी शौकीन...

कभी हार नहीं मानते: माइकल फेल्प्स
Mon, 27 Aug 2012 12:33 PM
ऐप पर पढ़ें

कोच बॉब बोमन ने जब 11 साल की उम्र में माइकल फेल्प्स को तैराक के रूप में देखा था तो दो बातों ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया, पहली-किसी भी हालत में जीत का जज्बा और दूसरी-असाधारण रूप से लंबे हाथ-पैर। उन्हें महसूस हुआ कि ये लड़का तैराकी में कुछ खास कर सकता है। तब से लेकर अब तक बोमन उसके कोच थे और दोनों ने मिलकर तैराकी में ऐसा इतिहास रचा, जिसके आसपास भी कोई दूसरा खिलाड़ी नहीं दिखता। फेल्प्स ने अब तक तीन ओलंपिक में 18 गोल्ड समेत 22 मेडल जीते हैं। उनके नाम ओलंपिक में सबसे ज्यादा पदक जीतने का रिकॉर्ड है। हाल ही में लंदन ओलंपिक में चार गोल्ड और दो सिल्वर पदक जीतने के साथ उन्होंने तैराकी के करियर को अलविदा कह दिया।

फेल्प्स का जन्म अमेरिका में 30 जून 1985 को बाल्टीमोर के मैरीलैंड में हुआ। उनकी मां जहां एक प्राइमरी स्कूल में डिप्टी प्रिंसिपल थीं, वहीं पिता खेलों के काफी शौकीन थे। जब फेल्प्स नौ साल के थे, तब पेरेंट्स में तलाक हो गया। फेल्प्स को फिर उनकी मां ने ही पाला। एक तरह से कहा जा सकता है कि फेल्प्स का तैराकी करियर अपनी बहनों के कारण शुरू हुआ। दोनों बहनों ने तैराकी की लोकल टीम ज्वाइन की और नियमित रूप से तैराकी के लिए जाने लगीं। उनके साथ सात साल के फेल्प्स को भी जाना पड़ता था। वह पानी में जाने से डरते थे, खासकर सिर को पानी में डालना उन्हें मुश्किल लगता था। लिहाजा कोच ने उन्हें पीठ के बल तैरने की छूट दे दी।

दोनों बड़ी बहनें तो तैराकी में ज्यादा कुछ नहीं कर सकीं, लेकिन फेल्प्स को धीरे-धीरे ये खेल रास आने लगा। इसी दौरान उन्हें 1996 में अटलांटा ओलंपिक खेल देखने का मौका मिला। टॉम माल्को और टॉम डोलन जैसे तैराकों को देखने के बाद उन्होंने भी चैंपियन बनने का सपना देखना शुरू कर दिया। इसी दौरान उन पर कोच बॉब बोमन की नजर पड़ी। वह ट्रेनिंग के दौरान जमकर मेहनत करते थे। पीछे रहना तो मानो उन्होंने सीखा ही नहीं था।
 
15 साल की उम्र में उन्हें सिडनी ओलंपिक खेलों के लिए अमेरिकी टीम में चुन लिया गया। 68 सालों में ये पहली बार हुआ था, जब इतनी कम उम्र का तैराक अमेरिकी टीम में रखा गया हो। यहां वह कोई पदक तो नहीं जीत पाये, लेकिन ये जरूर सोच लिया कि अब ये नौबत उनके साथ दोबारा नहीं आयेगी। एक साल बाद ही वह रंग में आने लगे। 15 साल नौ महीने की उम्र में उन्होंने 200 मीटर बटरफ्लाई में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। फिर वर्ल्ड चैंपियनशिप में अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ा। 17 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उनके नाम पांच वर्ल्ड रिकॉर्ड थे। वर्ष 2004 के एथेंस ओलंपिक में जब वह पहुंचे तो उन्हें सुपर स्टार के तौर पर देखा जाने लगा था। यहां उन्होंने छह स्वर्ण और दो कांस्य पदक जीते।
 
इसके बाद बीजिंग ओलंपिक में उन्होंने ऐसा किया, जो कभी नहीं हुआ था। उन्होंने आठ स्पर्धाओं में हिस्सा लेकर आठ स्वर्ण पदक जीते। ओलंपिक इतिहास में एक ओलंपिक में इतने स्वर्ण पदक आज तक कोई खिलाड़ी नहीं जीत पाया है और उम्मीद भी नहीं है कि भविष्य में भी कोई ऐसा कर सकेगा। लंदन ओलंपिक में आने से पहले ही वह कह चुके थे कि यह उनका आखिरी ओलंपिक होगा, इसके बाद वह तैराकी टाटा-बाय-बाय कर देंगे। यहां उन्होंने चार गोल्ड और दो सिल्वर जीतकर रूस की जिम्नास्ट लैरिसा लैतनीना के कुल 18 पदकों के रिकॉर्ड को तोड़ा।

इस तरह देखें तो उनका प्रदर्शन महामानव सरीखा लगता है। बीजिंग ओलंपिक में वो तकरीबन रोज पानी में उतरते थे और एक गोल्ड जीत लेते थे। लगातार सात दिनों तक ऐसा करके आठ गोल्ड जीतना वाकई हंसी खेल नहीं है। मैदान के बाहर फेल्प्स कई बार विवादों में घिरे हैं। एक बार शराब पीकर ड्राइविंग करने पर उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी, लेकिन फिर उन्होंने माना कि ऐसी गलती उनसे दोबारा नहीं होगी। अब संन्यास के बाद वह एक फाउंडेशन के जरिए तैराकी और इसकी नई प्रतिभाओं को प्रोमोट करेंगे। उन्होंने दो किताबें भी लिखी हैं। लेकिन उनका जीवन हमें ये जरूर सिखाता है कि कड़ी मेहनत और कभी हार नहीं मानने का हौसला हमें कहां से कहां पहुंचा सकता है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें