राजद अध्यक्ष और पूर्व रेल मंत्री लालू यादव के दौर में भारतीय रेल के कायापलट (टर्नअराउंड) और इसकी आमद और आर्थिक सेहत में आए उछाल से संबंधित प्रचार को रेल मंत्रालय ने महज शेखी बघारने जैसा बताया और कहा कि वह केवल आंकड़ों की बाजीगरी थी।
रेल मंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को लोकसभा में भारतीय रेल पर एक श्वेत पत्र जारी किया जिसका मूल मकसद 2004-05 से लेकर 2008-09 (लालू का दौर) के दौरान भारतीय रेल की वित्तीय हालत पर एक वास्तविक शोध को सामने लाना था। लेकिन राजनैतिक हलकों में इसे कांग्रेस और लालू के रिश्तों में आई दरार का दस्तावेज माना जा रहा है।
स्वतंत्र भारत में यह शायद पहला मौका होगा जब कोई सरकार अपने ही पिछले कार्यकाल की विफलताओं को बेनकाब करने के लिए सामने आई। ममता ने पिछले जुलाई में रेल बजट पर बोलते हुए इसे लाने की घोषणा की थी। श्वेत पत्र ने लालू के दौर की रेल की आर्थिक उपलब्धियों को तो साफ नकार दिया है लेकिन दूसरी तरफ, लालू पर सीधी कोई टिप्पणी करने या उनके किसी फैसले पर कोई बयान न देने में श्वेत पत्र में पूरी सावधानी बरती गई है।
क्या है श्वेत पत्र में?
कहा गया है कि लालू के दौर में रेल के पास कैश सरप्लस (नकद अधिशेष) 88,669 करोड़ बताया गया और मीडिया समेत इसकी खूब वाहवाही ली गई। जबकि हकीकत यह है कि यह राशि 39,411 करोड़ रुपये थी। लालू के सलाहकारों ने करीब 90,000 करोड़ के कैश सरप्लस को दिखाने के लिए एकाउंटिंग (लेखा परीक्षा) के मौजूदा नियम बदल दिए। रेल पर देय लाभांश राशि (21.308 करोड़ ) को इसमें शामिल कर दिया। छठे वेतन आयोग के बाद अपनी देनदारी को छिपाया गया। और तो और, रेल मंत्रालय द्वारा देय राशि (जो कि उस दौरान नहीं दी गई) पर मिलने वाले ब्याज को भी नकद सरप्लस का भाग बना दिया गया। रेल मंत्रालय ने आंकड़ों के उस उलटफेर की जांच के लिए एक बाहरी विशेषज्ञ की नियुक्ति की थी। इस विशेषज्ञ के अन्य निष्कर्षो में से एक यह है कि पिछले 20 सालों में भारत रेल का आर्थिक स्वास्थ्य लालू के दौर में नहीं बल्कि 1991-96 में था जब जाफर शरीफ रेल मंत्री थे।