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पढ़ें रिचा की कहानी, महिला सशक्तीकरण की अनूठी मिसाल

जब हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं तो हममें से अधिकतर महिलाएं उसे कानूनी और सामाजिक अधिकारों तक ही ले जा पाती हैं। लेकिन सशक्तीकरण सिर्फ सामाजिक आधार पर नहीं होता, वह तो मानसिक आधार पर भी होता है।...

पढ़ें रिचा की कहानी, महिला सशक्तीकरण की अनूठी मिसाल
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Feb 2017 07:59 PM
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जब हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं तो हममें से अधिकतर महिलाएं उसे कानूनी और सामाजिक अधिकारों तक ही ले जा पाती हैं। लेकिन सशक्तीकरण सिर्फ सामाजिक आधार पर नहीं होता, वह तो मानसिक आधार पर भी होता है। आज भी महिलाएं अपने स्त्रीत्व की पहचान बने गुणों या चीजों को लेकर शर्म के साथ व्यवहार करती हैं। कितनी ही महिलाएं और युवतियां ऐसी मिलेंगी जो अपने अंत:वस्त्रों को सुखाते समय उसके ऊपर एक चुनरी या अन्य कोई कपड़ा डालना नहीं भूलती होंगी। ऐसे में यह उम्मीद तो बिल्कुल ही नहीं की जा सकती कि अपने लिए अंत:वस्त्र यानी कि अंडरगारमेंट खरीदते समय वे सहज होंगी। उस पर अगर अंडरगारमेंट् की दुकान पर पुरुष सेल्समैन हों तो यह समस्या और बड़ी हो जाती है। इसी परेशानी के हल के तौर पर रिचा कार ने खड़ा किया लॉन्जरे का ऑनलाइन रिटेलिंग प्लेटफॉर्म जिवेम.कॉम। ताकि महिलाएं अपने इनरवियर या अंतर्वस्त्र बेफिक्र होकर नाप, फैशन, ट्रेंड के अनुसार खरीद सकें।

ऐसी हुई शुरुआत
इंजीनिर्यंरग और मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद रिचा को अपनी पहली नौकरी में इंटरनेशनल लॉन्जरे (अंतर्वस्त्र) से संबंधित प्रोजेक्ट करना हुआ। उस दौरान उनका ध्यान इस पर भी गया कि महिलाओं के लिए इस एक बेहद जरूरी चीज की खरीदारी उनके लिए कितनी भारी मुसीबत होती है। अगर कुछ बड़े शहरों को छोड़ दें, तो उस वक्त अन्य शहरों में लांजरी के अच्छे ब्रांड तक पहुंचे नहीं थे। रिचा ने अपनी बचत और दोस्तों की मदद लेकर पूंजी जुटाई और महिलाओं के लिए लॉन्जरे का जिवेम (zivam) नाम से ऑनलाइन एक ऐसा प्लेटफॉर्म खड़ा किया, जहां वे बेझिझक अपनी नाप, जरूरत और पसंद के अनुसार अंतर्वस्त्र चुन सकती हैं।

घर में ही हुआ विरोध
जाहिर है कि रिचा का यह निर्णय किसी के  भी गले नहीं उतरा होगा। उनके माता-पिता के लिए उनका यह निर्णय कि बेटी लांजरी की खरीदारी वाली वेबसाइट बनाएगी, बहुत ही नागवार था। उनकी मां को लॉन्जरे आइटम से दिक्कत थी, तो पिता जी वेबसाइट पर लॉन्जरे की खरीदारी उपलब्ध कराने के  निर्णय को ही गलत ठहरा रहे थे। हालांकि रिचा के मजबूत मन और खुली आंखों से लिए गए इस निर्णय ने उन्हें पीछे मुड़कर देखने की कोई वजह नहीं दी और जब पत्र-पत्रिकाओं में उनके साहस और व्यापारिक सूझबूझ की तारीफ पढ़ने को मिली, तो एक तरह से रिचा को उनके घर में ही उनकी वेबसाइट प्रमोट करने वाले भी मिल गए। माता-पिता और रिश्तेदारों को अब उन पर नाज है। 

ऐसा रहा सफर 
रिचा के लिए यह कोई बहुत आसान काम नहीं था। इसकी शुरुआत करने के लिए उन्हें एक बार अपने धैर्य, सूझ-बूझ और हौसले को परखना पड़ा तो वहीं जब लाभ मिलने लगा और लोकप्रियता हासिल हुई, तब दिन-रात मेहनत और दूरदर्शिता से इस सफलता को कायम रखने की कोशिश में भी लगी रहीं। एक वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि किस तरह वह 9 बजे सुबह से रात 9 बजे तक काम करती हैं। नाते-रिश्तेदारों के यहां आने-जाने का वक्त उनके पास नहीं बचता और माता-पिता से बात तक करने का मौका उनके पास नहीं होता। यहां तक कि अपनी शादी के लिए भी उन्होंने सिर्फ एक दिन की छुट्टी ली और दूसरे दिन वापस काम पर पहुंच गईं।
वे बताती हैं, ‘कंपनी शुरू करना एक चुनौती था तो पेपरवर्क और ऑर्डर लोगों तक पहुंचाने की तैयारी, उनकी कॉल अटेंड करना उससे भी बड़ा काम।’ पर रिचा मानती हैं कि खुद पर भरोसा ही आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा होती है और उनकी सफलता इसका सबूत है। रिचा को अपनी कंपनी बनाने, फंड जुटाने या  उसके ऑफिस के लिए जगह चुनने में सबसे ज्यादा समस्या उनके प्रोडक्ट यानी लांजरी की वजह से आई। पर रिचा ने अपने आत्मविश्वास से इस काम को सरल बना दिया।  2017 में ऑफलाइन जिवेम स्टोर्स बढ़ाने की दिशा में उन्हें और ज्यादा काम करना है। 

अब है एक अलग पहचान
रिचा को उनके ऑनलाइन व्यापार में वर्ष-दर-वर्ष 300 प्रतिशत के आसपास का रेवेन्यू मिला,  बैंगलोर, पुणे, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में जिवेम स्टूडियो लॉन्च हुए और एक एप भी बना। शुरुआत के तीन साल बीतते-बीतते उनकी टीम में दो सौ लोग हो गए। इस वक्त उनके ऑनलाइन स्टोर पर लॉन्जरे के 5000 से ज्यादा स्टाइल, लगभग 50 से ज्यादा ब्रांड और सौ से भी ज्यादा आकार उपलब्ध हैं। इस साल वे अपने ऑफलाइन स्टोर्स यानी कि शहरों की रिटेल मार्केट में अपने कदम और मजबूत करने की योजना में हैं।
 

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