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विपश्यना मेडिटेशन सेहत सुधारे व्यक्तित्व निखारे

विपश्यना मन को शांत और निर्मल करने की वैज्ञानिक विधि है। दूसरे शब्दों में इसे मन का व्यायाम भी कहा जा सकता है।  जिस तरह शारीरिक व्यायाम से शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाने की कोशिश की जाती है, वैसे...

विपश्यना मेडिटेशन सेहत सुधारे व्यक्तित्व निखारे
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Mar 2017 04:14 PM
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विपश्यना मन को शांत और निर्मल करने की वैज्ञानिक विधि है। दूसरे शब्दों में इसे मन का व्यायाम भी कहा जा सकता है।  जिस तरह शारीरिक व्यायाम से शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाने की कोशिश की जाती है, वैसे ही विपश्यना से मन को स्वस्थ बनाया जाता है। इसके निरंतर अभ्यास से मन हर स्थिति में संतुलित रहता है, जिससे हम हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं।  
यह भारत की सबसे प्राचीन मेडिटेशन तकनीक है, जिसे लगभग 2600 साल पहले महात्मा बुद्ध ने फिर से खोजा था। विपश्यना को महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का व्यावहारिक सार भी कहा जाता है, जो धम्म यानी प्रकृति के नियमों को सिखाता है। विपश्यना पाली भाषा के शब्द ‘पस्सना’ से बना है, जिसका मतलब होता है देखना। ‘विपस्सना’ (विपश्यना) का अर्थ है, जो चीज जैसी है, उसे उसके सही रूप में देखना।
जब भी मन में कोई विकार या कहें विचार जागता है तो शरीर पर दो घटनाएं शुरू हो जाती हैं। एक, सांस अपनी नैसर्गिक गति खो देता है। मतलब कि सांस तेज एवं अनियमित हो जाती है। इसके साथ ही शरीर में सूक्ष्म स्तर पर जीव रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप संवेदनाओं का निर्माण होता है। हर विकार शरीर पर किसी न किसी संवेदना का निर्माण करता है। सामान्य व्यक्ति इन विकारों को नहीं देख सकता, लेकिन विपश्यना के प्रशिक्षण एवं प्रयास से सांस एवं शरीर पर होने वाली संवेदनाओं को देख सकता है। 

निखर आएगी चेहरे की रंगत
लंबे समय तक इसका अभ्यास शरीर में रक्त संचार को बढ़ाता है, जिसका सीधा असर चेहरे पर नजर आने लगता है। रक्त संचार बढ़ने और तनावमुक्त होने से चेहरे की रंगत और निखर आती है। 

आत्मविश्वास बढ़ेगा
विपश्यना का अभ्यास मन को हर पल शांत और प्रसन्न रखता है। इससे धैर्य और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है और बेवजह का उतावलापन कम होता है। 

बच्चों की एकाग्रता बढ़ाएं 
बच्चे स्वभाव से बेहद चंचल होते हैं। उनके लिए अपने मन को शांत रख पढ़ाई करना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे बच्चों को अपने मन को एकाग्र करने के लिए विपश्यना का अभ्यास करना चाहिए। विपश्यना आठ से बारह साल के बच्चे कर सकते हैं। इन बच्चों के लिए यह कोर्स एक से दो या तीन दिन का होता है। 

विपश्यना की मुद्रा
विपश्यना के लिए घर के सबसे शांत कोने का इस्तेमाल करें। कमरे की लाइट बंद करके आसन पर पालथी मार कर बैठ जाएं। बैठने के दौरान हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि आपकी कमर और गर्दन सीधी और आंखें बंद हों। इसके बाद नाक से आने और जाने वाली सांस पर ध्यान केंद्रित करें। कुछ दिनों तक इसी का अभ्यास करते रहें। इसके बाद सांसों पर ध्यान केंद्रित रखते हुए शरीर में होने वाली संवेदनाओं की अनुभूति करें, यही विपश्यना है। शुरू में इसे कुछ समय तक सुबह-शाम करें, बाद में सुविधा के मुताबिक समय बढ़ा भी सकते हैं।

विपश्यना मेडिटेशन कोर्स 
आज दुनिया भर में लगभग 170 विपश्यना सेंटर और 130 नॉन-सेंटर हैं। इन सेंटरों पर विपश्यना के 10, 20, 30, 45 और 60 दिनों के कोर्स करवाए जाते हैं। ये कोर्स नि:शुल्क होते हैं। 

10 दिवसीय विपश्यना शिविर
विपश्यना केंद्रों द्वारा 10 दिवसीय आवासीय कोर्स करवाया जाता है। यह बेसिक और सबसे कम समय का कोर्स है। इन 10 दिनों में स्टूडेंट को गंभीरता से काम करना होता है। 10 दिनों के इस कोर्स में शामिल हैं-आर्य मौन : शिविर की शुरुआत से ही सभी को आर्य मौन अर्थात वाणी एवं शरीर से मौन रहना होता है। इसका पालन पहले से 10वें दिन की सुबह 10 बजे तक करना होता है।
पहला दिन : पहले दिन स्टूडेंट को पांचशील पालन करने का व्रत लेना होता है। इसमें जीव-हिंसा, चोरी, झूठ बोलना, नशा नहीं करना तथा ब्रह्मचर्य शामिल है। शील इस साधना की नींव है। शील के आधार पर ही समाधि और मन की एकाग्रता का अभ्यास किया जाता है एवं प्रज्ञा के अभ्यास से विकारों का निर्मूलन होता है, जिसके परिणामस्वरूप मन (चित्त) शुद्ध होता है। इन शीलों का पालन करने से मन शांत रहना सीख जाता है, जिससे आगे की विधि आसान हो 
जाती है। 
आनापान मेडिटेशन : यह एक मानसिक व्यायाम है, जो मस्तिष्क को स्वस्थ और मजबूत रखता है। पहले दिन से ही नासिका से आते-जाते हुए अपनी नैसर्गिक सांस पर ध्यान केंद्रित कर आनापान का अभ्यास सिखाया जाता है। इसे लगातर तीन दिनों तक करना होता है। 
चौथे दिन : आनापान के लगातार अभ्यास से चौथे दिन से मन कुछ शांत, एकाग्र और विपश्यना के अभ्यास के लायक हो जाता है। विपश्यना द्वारा शरीर (काया) के भीतर संवेदनाओं के प्रति सजग रहना, उनके सही स्वभाव को समझना एवं उनके प्रति समता रखना सिखाया जाता है। चौथे दिन से नौवें दिन तक यह अभ्यास सुबह-शाम करना होता है। 
दसवें दिन : इस दिन मंगल-मैत्री का अभ्यास सिखाने के साथ शिविर के दौरान अर्जित पुण्य को सभी प्राणियों में बांटा जाता है। इसकी सफलता जगजाहिर है।

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