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Hindi News‘लोकसाहित्य और भारतीय संस्कृति पर मंथन

‘लोकसाहित्य और भारतीय संस्कृति पर मंथन

सोबन सिंह जीना परिसर में इतिहास विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय ‘लोकसाहित्य और भारतीय संस्कृति पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के विभिन्न सत्रों में शोधार्थियों ने करीब 250 शोधपत्र प्रस्तुत किए।अंतिम...

‘लोकसाहित्य और भारतीय संस्कृति पर मंथन
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 27 Mar 2017 06:30 PM
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सोबन सिंह जीना परिसर में इतिहास विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय ‘लोकसाहित्य और भारतीय संस्कृति पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के विभिन्न सत्रों में शोधार्थियों ने करीब 250 शोधपत्र प्रस्तुत किए।अंतिम दिन मुख्य अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. एवीएस मदनावत ने लोकसाहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वर्तमान समाज में लोकसाहित्य की अहम भूमिका है।

हमें युवाओं को लोक साहित्य से जोड़ने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे। परिसर निदेशक प्रो. आरएस पथनी ने युवाओं से आह्वान किया कि वे लोक एवं साहित्य से विमुख न हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि मानवीय संवेदनाओं के संरक्षण में लोकसाहित्य की अहम भूमिका है। संकायाध्यक्ष प्रो. एसए हामिद ने लोक साहित्य को मनुष्य जीवन का अभिन्न अंग बनने की बात कही। मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्षा प्रो. आराधना शुक्ला ने कहा कि हमें लोक और आधुनिकता के बीच तालमेल रखना होगा। उन्होंने सेमिनार में मौजूद प्रतिभागियों से मध्यम मार्ग का अनुसरण करने को कहा। वहीं, सेमिनार के समापन पर विदेशी एवं भारतीय विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि लोक साहित्य और भारतीय संस्कृति का एक नया विभाग कुमाऊं विश्वविद्यालय में स्थापित होना चाहिए। इस मौके पर सेमिनार निदेशक प्रो. सीएम अग्रवाल, सचिव प्रो. संजय कुमार, प्रो. शेखर चंद्र जोशी, डॉ. सोनू द्विवेदी, डा. संजीव आर्या, डॉ. राकेश फकलियाल, डॉ. सीपी फुलोरिया, डॉ. अखिलेश नवीन, डॉ. एससी जोशी, ललित आर्या, पवनेश ठकुराठी मौजूद रहे।

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