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होली अलर्ट: कहीं केमिकल उड़ा न दे चेहरे की रंगत

केस 1- अल्लापुर में रहने वाले एक अधिकारी की भतीजी को पिछले साल होली में रंग खेलने का खामियाजा अब तक भुगतना पड़ रहा है। रासायनिक रंगों की वजह से उसके चेहरे पर पहले लाल दाने निकले थे। ये दाने काले धब्बे...

होली अलर्ट: कहीं केमिकल उड़ा न दे चेहरे की रंगत
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 02 Mar 2017 02:04 PM
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केस 1- अल्लापुर में रहने वाले एक अधिकारी की भतीजी को पिछले साल होली में रंग खेलने का खामियाजा अब तक भुगतना पड़ रहा है। रासायनिक रंगों की वजह से उसके चेहरे पर पहले लाल दाने निकले थे। ये दाने काले धब्बे में तब्दील हो गए हैं। इलाज अभी चल रहा है।

केस 2- मिर्जापुर की रहने वाली एक प्रौढ़ महिला के चेहरे व शरीर के कुछ हिस्से की त्वचा का रंग का सफेद हो गया है। छोटे- छोटे सफेद दाने नजर आ रहे हैं। इस महिला ने पिछले साल होली के एक महीने पहले तक रासायनिक रंग बनाने वाले छोटे कारखाने में काम किया था। होली के एक महीने बाद उसके शरीर पर सफेद दाने नजर आने लगे। तब से वह शहर के एक त्वचा रोग विशेषज्ञ से इलाज करा रही है।

इन दोनों महिलाओं की तरह तमाम लोगों की त्वचा को होली के रासायनिक रंगों ने बदरंग बना दिया है। कई लोगों के चेहरे पर बने दानों से लगातार खुजली हो रही है। केमिकल रंगों के धब्बों को दूर करने के लिए कई लोग तो दो साल से इलाज करा रहे हैं।

दरअसल, रासायनिक रंग बनाने में मरकरी, लेड व आर्सेनिक जैसे घातक तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है। जिन लोगों की त्वचा अधिक संवेदनशील होती है, वे जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। कभी- कभी तो इन रंगों का असर एक-दो महीने बाद दिखता है। सूरज की तेज रोशनी पड़ने पर चेहरे व शरीर में खुजली होने लगती है। इसके बाद दाने निकल आते हैं। फिर तीन चार महीने तक उपचार कराना पड़ता है।

रासायनिक रंगों से होने वाले त्वचा रोग

इरीटेंट डर्मेटाइटिस- कुछ लोगों को रंग पड़ने के एक दो घंटे बाद ही खुजली होने लगती है। फिर दाने पड़ जाते हैं। दो चार दिन बाद दाने पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इसे इरीटेंट डर्मेटाइटिस कहते हैं। डॉक्टर की सलाह से इलाज करेंं तो इस खुजली से जल्दी निजात मिल जाती है।

कांटेक्ट डर्मेटाइटिस- केमिकल रंग पड़ने के 15 से 20 दिन बाद चेहरे व शरीर के अन्य हिस्सों में दाने निकलने लगते हैं। खुजली अधिक होती है। इससे दाने वाले स्थान पर घाव हो जाते हैं। इसे कांटेक्ट डर्मेटाइटिस कहते हैं। इसका इलाज भी लंबे समय तक कराना पड़ता है।

फोटो कांटेक्ट डर्मेटाइटिस- यह बहुत ही घातक है। रंग पड़ने के एक दो महीने बाद भी इसका असर दिखता है। तेज धूप में बाहर निकलने पर चेहरे पर दाने निकल आते हैं। सूरज की तरफ देखने पर आंखों के आसपास भी दाने निकलने लगते हैं। खुजली होती है। फिर लाल दाने काले धब्बे में तब्दील हो जाते हैं। जो लोग ध्यान नहीं देते उनको फिर एक साल से अधिक समय तक इलाज कराना पड़ता है।

केमिकल ल्यूकोडर्मा- जो लोग कई दिनों तक रासायनिक रंगों से होली खेलते हैं, उनको यह बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है। रंग बनाने की फैक्ट्री में काम करने वाले इस त्वचा रोग के शिकार अधिक होते हैं। इसमें शरीर पर जगह- जगह सफेद दाने बन जाते हैं। त्वचा का रंग बनाने वाले सेल्स केमिकल के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। अगर इलाज देर से शुरू किया गया तो शरीर काफी हिस्सा सफेद हो जाता है। इसे बोलचाल की भाषा में सफेद दाग भी कहते हैं।

फूलों के रंगों से खेलें होली

होली पर रंग खेलना है तो टेसू के फूलों से रंग तैयार करें। इस रंग से जिसको सराबोर करेंगे, वह निहाल हो जाएगा। इस प्राकृतिक रंग से शरीर की त्वचा निखर जाएगी।

ब्रांडेड कंपनियों के कलर भी हैं सुरक्षित

फूलों से बने रंग भी बाजार भी उपलब्ध हैं लेकिन ब्रांडेड कंपनियों के हर्बल रंग ही खरीदें। क्योंकि तमाम लोग हर्बल के नाम केमिकल रंग ही बेच रहे हैं। इसलिए जांच परख हर्बल रंग खरीदें। उसकी रसीद भी लें। अगर चेहरे पर रंग का दुष्प्रभाव पड़ता है तो उसके खिलाफ उपभोक्ता फोरम में मुकदमा कर पूरा हर्जाना वसूल सकते हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

रासायनिक रंगों में कई तरह के भारी तत्व पाए जाते हैं। मसलन मरकरी, प्लंबम, आर्सेनिक व शीशा। ये सभी तत्व त्वचा के लिए घातक होते हैं। इन रसायनों की वजह से त्वचा की संवेदनशीलता प्रभावित है। जिससे खुजली के साथ त्वचा पर घाव बन जाते हैं। इनका उपचार अगर सही समय पर नहीं कराया गया तो मरीज का स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है। इससे उसके कामकाज पर भी असर पड़ता है।

- डॉ. केजी सिंह मेडिकल कॉलेज के चर्मरोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष

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