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बयान से विवाद

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया, जिससे बवाल खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। इसके लिए एक कमेटी का गठन हो, जो यह तय करे कि किसको कब तक आरक्षण मिले? यह उनका निजी...

बयान से विवाद
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 06 Oct 2015 09:02 PM
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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया, जिससे बवाल खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए। इसके लिए एक कमेटी का गठन हो, जो यह तय करे कि किसको कब तक आरक्षण मिले? यह उनका निजी विचार है या सरकार से सलाह-मशविरा करके दिया गया बयान है, यह पता नहीं। भागवत ने किसी दलित को आरएसएस प्रमुख बनाने के लिए कमेटी के गठन की बात नहीं की। चारों वर्णों से एक-एक शंकराचार्य बने, इसके लिए कमेटी बनाने की बात उन्होंने नहीं की। दलित औरतों के साथ जो दुर्व्यवहार होता है, उसके खिलाफ कमेटी बनाने के लिए उन्होंने नहीं कहा। हरियाणा के मिर्चपुर गांव में कुछ सालों पहले दबंगों ने हरिजन बस्ती में आग लगा दी, आज भी पीडि़त लोग जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्हें न्याय मिले, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा। मैदानी राज्यों में तो दलित दूल्हों पर गोलियां तक चल जाती हैं। ऐसी घटनाओं की भागवत ने कभी निंदा नहीं की। कमेटी बनानी ही ह, तो जातिवाद, पाखंड, अंधविश्वास के विरुद्ध बनाई जाए, जिससे तमाम कुप्रथा खत्म हो।
जसवंत सिंह, नई दिल्ली

डेंगू पर सियासत
हमारी निर्मम और स्वार्थी स्वास्थ्य-प्रणाली के कारण डेंगू से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। लेकिन इस आंकड़े को छिपाने का खेल शुरू हो गया है। केंद्र व राज्य सरकार ने अपने-अपने अधीन अस्पतालों को डेंगू से जुड़े मामलों में सतर्कता बरतने को कहा है। डेंगू से होने वाली मौत के मामले में दिल्ली सरकार की विफलता के मुद्दे पर दायर की गई जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि न्यायालय किसी मामले में सरकार की विफलता के लिए हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच जारी टकराव के कारण दिल्ली के लोगों को होने वाली परेशानियों की जानकारी उसे है, लेकिन समाधान दोनों सरकारों को खुद निकालना चाहिए। अगर न्यायालय की टिप्पणी से दोनों सरकारें कुछ सीख नहीं लेतीं, तो समय आने पर जनता इनको स्वयं सबक सिखा देगी। लोगों की जान पर राजनीति करना आने वाले समय में इन राजनेताओं को काफी महंगा पड़ सकता है, शायद वे यह भूल गए हैं कि वोट की चोट इससे भी भयावह हो सकती है।
जगदीशलाल सलूजा, पीतमपुरा

दाखिले का अधिकार
नौवीं कक्षा में दाखिला न मिलने के कारण कोर्ट ने यह फैसला किया है कि अधिक उम्र की वजह से स्कूल दाखिले के लिए इनकार नहीं कर सकेंगे। दाखिले के लिए न्यूनतम सीमा भी नहीं होनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि 12-13 साल के बच्चों ने भी अच्छे अंकों से दसवीं पास की है। जो बच्चा जिस कक्षा में दाखिला लेना चाहता है, उसे उसी कक्षा में दाखिला मिलना चाहिए। यदि बच्चा काबिल होगा, तो पास हो जाएगा। हर बच्चे को घर से निकटतम स्कूल में दाखिला मिल जाना चाहिए, ताकि उसे किसी तरह की भी दिक्कत न हो।
एच बी शर्मा, जनकपुरी, नई दिल्ली

हत्या के पीछे
प्रसिद्ध कन्नड़ रचनाकर्मी एम एम कलबुर्गी की कट्टरपंथी हिंदूवादी ताकतों ने हत्या कर दी। केंद्र में भाजपा के आने के बाद से ही लोकतंत्र की सारी मर्यादाओं की अवहेलना करने का अधिकार आरएसएस व विश्व हिंदू परिषद को मिल गया है। सवाल उठता है कि केंद्र सरकार अपने समर्थकों के ऐसे संविधान विरोधी और समाज विरोधी कृत्यों पर चुप क्यों है? वह कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती? केंद्र सरकार के कुछ मंत्री इन कृत्यों को बढ़ावा देते हैं। कट्टरपंथियां ने हत्याओं का जो सिलसिला शुरू किया है, उस क्रम में कलबुर्गी की हत्या भी एक कड़ी है। यह समझा जा सकता है कि कलबुर्गी के हत्यारे केवल मोहरे हैं और उन्हें सांप्रदायिक ताकतों का वरदहस्त प्राप्त है। ये हत्याएं कट्टरपंथी  ताकतों का शक्ति  प्रदर्शन हैं।
आनंद गोयल, जीटी रोड, दिल्ली-09

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