फोटो गैलरी

Hindi Newsअन्नदाता परेशान

अन्नदाता परेशान

जिस तरह से मौसम का मिजाज बदल रहा है, वह पूरी आबादी के लिए चिंता का कारण है। पर अन्नदाता के सामने यह दोहरी समस्या है। पहली यह है कि उस पर पूरी आबादी का बोझ है, दूसरी समस्या यह है कि उसको ज्यादा से...

अन्नदाता परेशान
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 08 Jun 2015 09:14 PM
ऐप पर पढ़ें

जिस तरह से मौसम का मिजाज बदल रहा है, वह पूरी आबादी के लिए चिंता का कारण है। पर अन्नदाता के सामने यह दोहरी समस्या है। पहली यह है कि उस पर पूरी आबादी का बोझ है, दूसरी समस्या यह है कि उसको ज्यादा से ज्यादा उत्पादन बढ़ाना है, ताकि वह देश की जीडीपी में ज्यादा से ज्यादा योगदान दे। यह सब मानसून पर निर्भर है, जिसका अन्नदाता को पल-पल इंतजार रहता है। लेकिन अब तक मानसून ने देश के अन्नदाताओं को नाराज ही किया है। आसमान के बेसमय टपकने या मानसून के देर से आने से कृषि के सामने विपदा खड़ी हो जाती है। यहां तक कि अन्नदाता ने खून-पसीना एक करके जो रबी की फसलें लगाई थीं, उन पर बेमौसम बारिश ने पानी फेर दिया। इससे अन्नदाता गहन चिंतन में हैं। यदि मानसून कमजोर रहता है, तो पूरी आबादी के लिए समस्या तो होगी ही, साथ में यह गरीब तबके के लोगों को भुखमरी की जद में ला देगा।
पंकज भारत, भोला, मेरठ

आइए पर्यावरण बचाएं

बीते कुछ वर्षों में आवश्यक पर्यावरण सुरक्षा से अलग औद्योगिक विकास की चाह ने इसे दिन दुनी-रात चौगुनी क्षति पहुंचाई है। नतीजतन, बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन हमारी सहनशीलता की कठिन परीक्षा ले रहे हैं। ऐसे में, प्रकृति संरक्षण के नाम पर मनाए जाने वाले दिवसों का ढकोसला बंद होना चाहिए, बल्कि कुछ काम करने की आवश्यकता है। क्यों हम पर्यावरण संरक्षण से संबद्ध इन दिवसों के कर्मकांड करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं? पर्यावरण हमारे दैनिक जीवन को सीधा प्रभावित करता है। अत: इसके संरक्षण के लिए पल-पल सचेत रहने की जरूरत है। हमारा देश वन-संपदा और जैव-विविधता के मामले में आदिकाल से ही संपन्न रहा है। लेकिन समय बीतने के साथ औद्योगिक विकास की चाह ने पेड़-पौधों को काफी क्षति पहुंचाई है। परिणामस्वरूप, कई फलदार और औषधीय पौधे अब किस्से-कहानियों तक सीमित रह गए हैं।
सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा

केंद्र बनाम दिल्ली

केंद्र की भाजपा सरकार दिल्ली में मिली हार से अभी तक उबर नहीं पाई है। इसीलिए भाजपा की सरकार दिल्ली में केजरीवाल सरकार की उन मांगों को असांविधानिक बताकर बदनाम करने की मुहिम में लगी है, जिनको भाजपा स्वयं जायज बताती रही है। बीते दिनों प्रकाशित संपादकीय 'केजरीवाल की चुनौती' में सही उल्लेख किया गया है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के लिए बिहार के छह पुलिस अफसरों की प्रतिनियुक्ति को यदि भाजपा सरकार ने उप-राज्यपाल द्वारा उलझाने की कोशिश की, तो निश्चित रूप से केजरीवाल सरकार की यह चुनौती भाजपा सरकार को भारी पड़ेगी।
दर्शन सिंह, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

मोदी की दूरदृष्टि

अब बांग्लादेशी बंदरगाहों पर भारतीय जहाजों का पहुंचना आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा। साथ ही, उससे चीन के बढ़ते कदम रुकेंगे। भारतीय कंपनियों द्वारा बांग्लादेश के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश तथा भारत से बांग्लादेश को अधिक बिजली की बिक्री के करार से भी दोनों देशों की आर्थिक खुशहाली का रास्ता खुलेगा। बस सेवा से आवाजाही बेहतर होगी। प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश को दो अरब डॉलर का कर्ज देने की घोषणा की है। यह रकम उसके बुनियादी ढांचे के विकास, बिजली, स्वास्थ्य व शिक्षा परियोजनाओं के लिए होगी। इन कार्यों में भारतीय कंपनियों को बड़े ठेके मिलने की आशाएं हैं। उद्योग जगत ने संभावना जताई है कि इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। बस्तियों की अदला-बदली के चार दशक से अटके समझौते के होने से यह सब संभव हो रहा है। यह मुद्दा दोनों देशों के रिश्तों में बड़ा कांटा था। एक पेच तीस्ता जल बंटवारे का भी है। मोदी ने संकेत दिया है कि जिस तरह उन्होंने बस्तियों की अदला-बदली के लिए राजनीतिक सहमति बनाई, आगे वैसा ही प्रयास वह तीस्ता करार के मामले में करेंगे।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें