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अफवाहों का भूकंप

भयंकर भूकंप के बाद कई दिनों तक झटके आते रहना असामान्य नहीं है। लेकिन इसके परिणास्वरूप दहशत और फैली है। कुछ तत्वों ने या तो अपनी घबराहट में या फिर शरारत करने के लिए ऐसी खबरें फैलाईं, जिनसे कई जगहों पर...

अफवाहों का भूकंप
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 28 Apr 2015 09:07 PM
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भयंकर भूकंप के बाद कई दिनों तक झटके आते रहना असामान्य नहीं है। लेकिन इसके परिणास्वरूप दहशत और फैली है। कुछ तत्वों ने या तो अपनी घबराहट में या फिर शरारत करने के लिए ऐसी खबरें फैलाईं, जिनसे कई जगहों पर बदहवासी जैसा माहौल बना। सोशल मीडिया के इस दौर में अपुष्ट या बेबुनियाद बातों को फैलाना आसान हो गया है। जब लोग आशंकाओं से घिरे हों, तब अक्सर तार्किक व बेतुकेपन के बीच फर्क करने का शऊर नहीं रहता। नतीजतन, रविवार रात यह चर्चा तेजी से फैली कि चांद उल्टा दिख रहा है, जो किसी बडे़ अपशकुन का संकेत है। इसी तरह, ऐसी बातें फैलाई गईं कि 13 तीव्रता का भूकंप भारत में आने वाला है। भूकंप विशेषज्ञों ने टीवी पर आकर कहा है कि इतनी तीव्रता का भूकंप कभी नहीं आया, दरअसल ऐसा होना सैद्धांतिक रूप से असंभव है। एक वाट्सऐप संदेश के जरिये यह अफवाह फैलाई गई कि नासा ने भारत में बड़ी तीव्रता के भूकंप के आने की भविष्यवाणी की है, जबकि केंद्र सरकार ने आधिकारिक रूप से कहा है कि नासा ने ऐसी कोई भविष्यवाणी नहीं की, न ही यह अंतरिक्ष एजेंसी का काम है। आपदा व दुख के वक्त में सब्र और समझदारी कीज्यादा जरूरत होती है। ऐसे मौकों पर अफवाह फैलाना समाज विरोधी कार्य है।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम

क्या नदियां साफ होंगी
नदियां हमारी जीवन रेखा हैं। इन्हीं पर देश और दुनिया की संस्कृति व समाज का विकास हुआ है। दुख की बात यह है कि देश में नदियों की हालत बहुत दयनीय है। नदी और गाय का सम्मान शुरू से होता आया, क्योंकि वे सही अर्थों में देवियां हैं। मगर आज इनकी जो हालत है, वह भी किसी से छिपी नहीं है। कृषि और पशुपालन गाड़ी के दो पहिए हैं, जिन पर अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से आधारित है। जब नदियां ही सही नहीं, तो कृषि ,पशुपालन और देश कैसे ठीक हो सकता है? इनकी साफ-सफाई और तलछट से गाद न निकाले जाने से ही देश बाढ़ की चपेट में आता है। देश में इस काम के लिए जन-शक्ति और अत्याधुनिक तकनीकी साधनों की भी कमी नहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ नहीं हो पा रहा। अब मोदी सरकार ने सिर्फ दो ही बड़ी नदियों गंगा और यमुना की मुख्य रूप से सफाई की बात की है, इस पर क्या कुछ हो पाएगा, यह जल्द ही सामने होगा। कहने और करने में बहुत बड़ा अंतर होता है।
वेद मामूरपुर, नरेला

तबाही के सबक
नेपाल में आया भूकंप एक चेतावनी है। समूचे हिमालय क्षेत्र पर संकट मंडरा रहा है, यह चेतावनी पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ-साथ विभिन्न जन-संगठनों ने भी दी है। हिमालय, जिसे एशिया का वाटर टावर कहा जाता है, खुद बड़े संकट से गुजर रहा है। यह संकट कश्मीर से लेकर सिक्किम तक भारत में है, तो दूसरी तरफ, नेपाल, भूटान से लेकर चीन तक। नेपाल के बड़े इलाके से लेकर चीन सीमा तक पहाड़ कई वजहों से कमजोर हो गए हैं। बारिश में ये बहुत खतरनाक हो जाते हैं। एक कारण सड़कों के लिए पहाड़ पर अनियंत्रित ढंग से निर्माण किया जाना है, तो जंगलों को बुरी तरह काटा जाना दूसरा बड़ा कारण है। इसके अलावा, बडे़ बांध और बेतरतीब ढंग से ऊंची इमारतों का निर्माण भी हैं। हिमालय की, जो विश्व का एक शिशु पर्वत है, रचना अभी बहुत संवेदनशील है। ऐसी स्थिति में इस पर्वत शृंखला के साथ छेड़छाड़ बहुत ही खतरनाक है।
मनोरथ सेन

प्रकृति कुछ कहती है
कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं तूफान कहीं भूकंप, प्रकृति कुछ संदेश दे रही है। दूसरी तरफ, हम हैं कि भाई-भतीजावाद, जातिवाद और क्षेत्रवाद में उत्तर प्रदेश बने हुए हैं। अपने इलाके और जाति के नाम पर खास लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं। क्या प्रकृति ऐसे स्वार्थी तत्वों को अभयदान देगी कि प्रदेश में जमकर उत्पात मचाओ और प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन करो? नहीं, प्रकृति अपनी सुरक्षा का तरीका जानती है।
सुधाकर आशावादी, मेरठ

 

 

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