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ईवीएम पर संदेह

ईवीएम पर संदेह पांच राज्यों, खासतौर से उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजों से एक बार फिर ईवीएम पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि चुनाव आयोग तमाम सवालों के संतोषजनक जवाब देने के दावे कर रहा है, मगर...

ईवीएम पर संदेह
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 17 Mar 2017 09:46 PM
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ईवीएम पर संदेह
पांच राज्यों, खासतौर से उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजों से एक बार फिर ईवीएम पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि चुनाव आयोग तमाम सवालों के संतोषजनक जवाब देने के दावे कर रहा है, मगर पार्टियां या लोग उससे संतुष्ट नहीं हो रहे हैं। इसकी वजह भी है। मायावती के बयानों को अगर दरकिनार भी कर दें, तो अरविंद केजरीवाल ने जो तर्क दिए हैं, उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। आखिर किसी प्रत्याशी को एक भी वोट नहीं पड़े, यह भला कैसे हो सकता है? इसी तरह, इस तर्क में भी दम नजर आता है कि अमेरिका जैसे देश अब मतपत्रों से चुनाव कराने की पुरानी व्यवस्था पर वापस लौट आए हैं, क्योंकि वे ईवीएम को चाक-चौबंद नहीं मानते। अब जब यह शंका ज्यादा गहरा गई है कि ईवीएम में सेंध लगाई जा सकती है, तो चुनाव आयोग को चाहिए कि वह तमाम शंकाओं को निर्मूल साबित करने की ईमानदार कोशिश करे। अगर वह इसमें विफल रहता है, तो चुनाव-प्रक्रिया शक के घेरे में आ सकती है, जिसका नुकसान आखिरकार भारत जैसे जीवंत लोकतंत्र को ही होगा।
अर्चना, साकेत, नई दिल्ली

अल्पसंख्यकों का राग 
आखिरकार जनता ने दिखा दिया कि जाति-धर्म की बात में आकर अब वह किसी के जाल में नही फंसने वाली। बरसों से कुछ राजनीतिक दल ‘अल्पसंख्यक’ का झुनझुना बजाकर भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाते आए हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि इस बार जनता ने इन दलों को आईना दिखा दिया है। कहावत भी है कि काठ की हांडी बार-बार आग पर नहीं चढ़ती। तमाम राजनीतिक दल ‘अल्पसंख्यक’ का नाम लेकर मतदाताओं में एक भ्रम की स्थिति बनाने की कोशिशों में जुटे थे, मगर उनके सभी किए-कराए पर जनता ने पानी फेर दिया है। नतीजा सबसे सामने है। बात-बात पर अल्पसंख्यक का राग अलापने वाली पार्टियां आज खुद अल्पसंख्यक हो गई हैं। 
मिंटू, धनबाद

नियुक्ति शिक्षकों की
राजनीतिक दल चाहे सत्ता में हों या बाहर, बरसों से युवाओं को बेवकूफ बना रहे हैं। कानून के शासन में ऐसा कोई नियम नहीं, जिससे अस्थायी शिक्षकों को स्थायी किया जा सके। इसलिए सरकार अतिथि अध्यापकों को हर वर्ष झूठे लॉलीपॉप देकर लगातार उनका शोषण कर रही है। दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश कि दिल्ली में शिक्षकों की भर्ती तत्काल की जाए एक सराहनीय फैसला है। यह अतिथि अध्यापकों को गुमराह करने वाली सरकार के मुंह पर तमाचा भी है। अभी दिल्ली में 30,000 से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं। इससे पता चलता है कि सरकार शिक्षा के प्रति कितनी गंभीर है। यह अगंभीरता उन लाखों शिक्षित युवाओं के साथ भी छल है, जो सरकारी नौकरी के इंतजार में उम्रदराज हो चले हैं या उम्र के ऐसे पड़ाव पर पहंुच चुके हैं, जहां उनके लिए मौके बहुत सीमित हैं। लिहाजा सरकार के प्रवक्ताओं को अनावश्यक बयानबाजी करने की बजाय अपनी ऊर्जा दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड को चुस्त-दुरुस्त करने में लगाना चाहिए।
संजय स्वामी, शाहदरा

नरम पड़ते तेवर
नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा जब से राज्य-दर-राज्य अपनी सरकार बनाते जा रही है, तब से पड़ोसी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तेवर भी नरम दिखाई देने लगे हैं। यह सबको पता ही है कि इस साल पहली बार ऐसा हुआ, जब पाकिस्तान के किसी प्रधानमंत्री ने होली खेली है। इसके साथ ही हिंदू विवाह विधेयक को भी पाकिस्तानी संसद ने मंजूरी दी है। यह विधेयक एक लंबी अवधि के बाद मिला है। और तो और, पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित करने संबधी अमेरिकी विधेयक के खिलाफ भी वहां से कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं आई है। साफ है कि तेवर में यह नरमी हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते कदमों की वजह से है।
आकाश कुमार, अमरपुर, मेरठ

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