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नए युग की ओर

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अपने बजट में हर बात का पूरा ध्यान रखा। चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छता अभियान और मेक इन इंडिया हो, या फिर यात्री-सुविधा बढ़ाने, महिलाओं की सुरक्षा और बुजुर्गों...

नए युग की ओर
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 26 Feb 2016 09:03 PM
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रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अपने बजट में हर बात का पूरा ध्यान रखा। चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छता अभियान और मेक इन इंडिया हो, या फिर यात्री-सुविधा बढ़ाने, महिलाओं की सुरक्षा और बुजुर्गों पर खास ध्यान देने की मांग का। बजट में यात्री किराया या माल भाड़ा भी नहीं बढ़ाया गया है, जबकि हर समय आरक्षण मिलने का भरोसा दिया गया है। यदि बजट में दिखाए गए सपने पूरे हुए, तो हमारी रेल की स्थिति जरूर सुधरेगी।
मनीष पाण्डेय
दिलशाद गार्डन, दिल्ली

संतुलित रेल बजट
चतुर्दिक समस्याओं से जूझ रही भारतीय रेल पर सुरेश प्रभु की कृपा बरसी है। लोक-लुभावन वादों के स्थान पर उन्होंने संतुलित बजट पेश करके समाज के हर वर्ग को छूने की कोशिश की है। पिछले वित्त वर्ष में यात्री किराये और माल भाड़े में वृद्धि के कारण आलोचना झेल रही मोदी सरकार ने इस बार किराया व माल भाड़ा न बढ़ाने का फैसला करके लोगों के चेहरे पर मुस्कराहट ला दी। वहीं महिलाओं, दिव्यांगों और बुजुर्गों के हितों का भी बजट में खास ध्यान रखा गया है। रेलवे भारत सरकार का सबसे बड़ा उद्यम है। इस लिहाज से, नौ करोड़ श्रम-दिवसों के सृजन का लक्ष्य भी सराहनीय है। दूसरी ओर, चार स्पेशल ट्रेनों की सौगात भी प्रशंसनीय है। भारतीय रेल की सबसे बड़ी समस्या ट्रेनों का सही समय पर न चलना है। इस वजह से, लोग यात्रा करने से घबराते हैं। इसी तरह, स्टेशनों पर सुस्त इन्क्वॉयरी भी एक बड़ी समस्या है। इस पर काम करने की जरूरत है। भले ही विपक्ष इस बजट को पटरी पर से उतरा हुआ बता रहा है, लेकिन घोषणाओं पर अमल हो, तो इससे भारतीय रेल की तस्वीर अवश्य  बदल जाएगी।
सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा

आंदोलन या हुड़दंग
पिछले कुछ बरसों में जो आंदोलन हुए हैं,वे काफी अराजक रहे। आंदोलन के नाम पर लूट-पाट, हत्या, निजी व सार्वजानिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना, अवैध हथियारों का इस्तेमाल, महिलाओं के साथ अभद्रता आदि की अति हो गई है। इसकी वजह शायद यह हो सकती है कि किसी विशेष जाति-समुदाय, या धर्म का वोट हासिल करने की उम्मीद में इन आंदोलनों को विभिन्न दलों का समर्थन मिलता रहता है। सरकार ऐसे अराजक लोगों के खिलाफ तब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं करती, जब तक कि हालात काबू से बाहर नहीं हो जाते। ऐसे अराजक तत्वों पर यदि शुरू में ही कार्रवाई हो जाए, तो देश जान-माल के भारी नुकसान से बच सकता है।
अमर सिंह
चाणक्य प्लेस पार्ट -2, नई दिल्ली

आम बजट से उम्मीदें
रेल बजट के बाद अब लोगों की नजरें आम बजट पर टिक गई हैं। देखना होगा कि वित्त मंत्री इसमें किसानों के लिए क्या कुछ खास करते हैं? आज किसान सबसे बुरी स्थिति में हैं। एक किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता, क्योंकि वह जानता है कि किसानी अब घाटे का धंधा हो गई है। जी-तोड़ मेहनत करने के बाद किसानों को कभी-कभी मुट्ठी भर अनाज भी हाथ नहीं लगता। प्राकृतिक आपदाएं सारे किए-धरे पर पानी फेर देती हैं। हालांकि नई फसल बीमा योजना किसानों को कुछ राहत दे सकती है, मगर सिर्फ उसी के भरोसे नहीं रहा जा सकता।
सुमित यादव
रावगंज, कालपी

आरक्षण की जरूरत
आज भी कई लोग खुद को पूरी तरह आजाद नहीं मानते। संभवत: उन्हें यही लगता है कि आरक्षण व्यक्तिगत आजादी है, जो देश के कुछ खास समुदायों या लोगों को ही मिली है। प्रतिस्पर्द्धा वाले इस दौर में आरक्षण से हमें नौकरियों में पदोन्नति तो मिल सकती है, मगर जीवन की विशिष्ट परिस्थितियों में यह उपलब्धि खुद को दृढ़ निश्चयी व आत्मविश्वासी नहीं बनने देगी, जो वास्तव में सफलता की एक जरूरी शर्त है।
केशव बिश्नोई
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

 

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