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बिगड़ती स्थिति

कैराना की स्थिति बहुत ही गंभीर है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आज तक इस मामले में ध्यान क्यों नहीं दिया? रंगदारी और तनावपूर्ण वातावरण में दिन गुजार रहे लोगों की हालत सोचकर ही दिमाग भारी हो जाता है। रंगदारी...

बिगड़ती स्थिति
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 16 Jun 2016 09:45 PM
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कैराना की स्थिति बहुत ही गंभीर है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आज तक इस मामले में ध्यान क्यों नहीं दिया? रंगदारी और तनावपूर्ण वातावरण में दिन गुजार रहे लोगों की हालत सोचकर ही दिमाग भारी हो जाता है। रंगदारी के लिए एक आदमी दूसरे की हत्या कर रहा है। ऐसे में, कोई भला अपने परिवार के साथ कैसे रहेगा? अपने परिवार की रक्षा के लिए वहां से पलायन करने के अलावा उसके पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं बचता है। देश के एक राज्य में इतना बड़ा तनाव है, और वहां की राज्य सरकार चुप है। लगता है कि जो चल रहा है, उससे वह सहमत है। नहीं, तो कैराना और पास के कस्बों में रंगदारी और हत्या पर रोक लगाने के लिए प्रयास किए जाते। उत्तर प्रदेश का सामाजिक वातावरण पूरी तरह से बिगड़ गया है।
जयेश राणे, मुंबई, महाराष्ट्र

बेवजह का मुद्दा
भाजपा के स्वामी और रिजर्व बैंक के राजन के बीच रोज-रोज कुछ न कुछ तकरार भरे स्वर सुनाई दे रहे हैं। दोनों को मोदी जी सुन रहे हैं। मगर फैसला अभी नहीं, सितंबर में होने वाला है। आखिर स्वामी जी सबसे ज्यादा राजन के पीछे ही क्यों पड़े हुए हैं? देश बहुत बड़ा है और भी बहुत से मुद्दे हैं जनता की सेवा करने के लिए। उन पर गौर करें स्वामी, तो ज्यादा बेहतर होगा। राजन का कार्यकाल तो वैसे भी आने वाले सितंबर महीने में समाप्त होने वाला है। फिर उन पर प्याज के छिलके की तरह आरोप लगाना कितनी सूझ-बूझ वाली बात है? इन बातों को बेवजह तूल देने से क्या फायदा? जो होना होगा, वह सरकार करेगी ही।
शकुंतला महेश नेनावा
इंदौर, मध्य प्रदेश

शराब पर रोक
उत्तर प्रदेश सरकार को भी बिहार की तरह शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इस कदम से कई बच्चे इस बुरी लत से बच जाएंगे, कई औरतें विधवा होने से बच जाएंगी और कई के घर जुर्म से बचाए जा सकेंगे। शराब के साथ-साथ प्रत्येक   नशीले पदार्थ पर रोक जरूरी है।
ललित कुमार शुक्ल
 गोंडा, उत्तर प्रदेश

लगातार रिसता दर्द
उत्तराखंड में हुई विनाश लीला को तीन वर्ष पूरे हो गए। मगर वह दर्द, जो अपनों के बिछड़ने का है, जो आंखों के सामने सब खत्म होते देखने का है, वह हाथों से हाथों का छूटना, वे भयानक आवाजें, आज भी ताजा हैं। ऐसा लगता है, जैसे समय थम गया है। दुनिया रुक-सी गई है। आज भी अपनों के लौट आने की कोई खबर मिल जाने की दुआ रोज सुबह से शाम तक सभी करते हैं। जब कभी वहां से नर कंकाल मिलने की खबर आती है, तो दिल दहल जाता है, उम्मीद टूटने-सी लगती है। लगता है, अब कुछ बाकी नहीं रहा। पर फिर उम्मीद कायम रहती है कि कहीं ईश्वर अपने होने का प्रमाण देगा और घर वाले लौट आएंगे। अफसोस अब ऐसा कुछ नहीं होगा। न कोई लौटकर आएगा। न फिर वह आवाज सुनने को मिलेगी। दर्द की इंतहा तो तब होती है, जब हमारे अपनों की मौत को राजनीति का कफन ओढ़ा दिया जाता है। जब आस्था के ठेकेदार उस पर टिप्पणियां करते हैं। सरकार हिसाब-किताब की कॉपियां भर देती है। पर उस दर्द का हिसाब कौन देगा? कोई देगा भी या नहीं, पता नहीं।
राखी, हरिद्वार, उत्तराखंड

डियर पर आपत्ति
इन दिनों हमारी मानव संसाधन विकास मंत्री एक शब्द 'डियर' से उलझी हुई हैं। बिहार के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने उनके प्रति इस शब्द का जिस ट्विट वार में इस्तेमाल किया, उसमें उनकी मंशा वैसी कतई न थी, जैसी प्रतिक्रिया स्मृति ईरानी ने दिखाई है? अंग्रेजी में 'डियर' शब्द का इस्तेमाल बहुत आम है। महिला या पुरुष किसी के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। ऐसे में, स्मृति जी को इस पर विवाद नहीं खड़ा करना चाहिए था।
रोहित, वैशाली, गाजियाबाद

 

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