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राष्ट्रविरोधी काम

राजधानी दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सरेआम भारत विरोधी नारे लगाने की घटना ने देश के आम जन को झकझोर कर रख दिया है। ऐसी देश-विरोधी घटना कम से कम राजधानी क्षेत्र में तो अब से पहले नहीं हुई...

राष्ट्रविरोधी काम
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 14 Feb 2016 08:37 PM
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राजधानी दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सरेआम भारत विरोधी नारे लगाने की घटना ने देश के आम जन को झकझोर कर रख दिया है। ऐसी देश-विरोधी घटना कम से कम राजधानी क्षेत्र में तो अब से पहले नहीं हुई थी। लेकिन इससे भी विस्मयकारी बात यह है कि सरकार विरोधी किसी भी दल या उसके किसी बड़े नेता ने इस घटना की निंदा तक करना जरूरी नहीं समझा! वे सभी चुप्पी साध गए हैं, मानो कुछ हुआ ही नहीं। विभिन्न राजनीतिक दलों में परस्पर विचारों का अलग होना या उनमें वैचारिक मतभेद होना लोकतंत्र की खूबसूरती मानी जाती है, मगर राष्ट्रवाद के मुद्दे पर तो सबकी राय एक होनी चाहिए। क्या वोटों की राजनीति के वशीभूत होकर देश विरोधी कार्रवाई पर चुप्पी साध लेना देशद्रोह को बढ़ावा देने जैसा काम नहीं है? आम जनता इस सवाल का जवाब चाहती है।
सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी

दोषियों को सजा मिले
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की घटना को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। लोकतंत्र के जिस मंदिर से पूरे देश को चलाने की योजनाएं तय होती हैं, उस संसद की तबाही का ब्लूप्रिंट तैयार करने वाले मास्टर माइंड आतंकी को शहीद कहने वाले लोग देशद्रोही के सिवाय कुछ नहीं हो सकते। ऐसे लोग देश को टुकड़ों में बंटते देखना चाहते हैं। अगर किसी शैक्षिक संस्थान में मानव के विनाश को प्रोत्साहित करने वाली आतंकी विचारधारा को बल मिल रहा हो, तो यह हमारे तंत्र की गड़बड़ी को बताता है। समय रहते इन राष्ट्रविरोधी ताकतों का सफाया जरूरी है। इस घटना की निष्पक्ष जांच हो, और दोषियों को सख्त सजा मिले।
मुहम्मद उस्मान
सिंघौली कल्लू, रजपुरा, संभल

बयानों से खुलती परतें
पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकी डेविड कोलमैन हेडली अपनी गवाही में रोज नए खुलासे कर रहा है। ये खुलासे पाकिस्तान को बेपरदा करने के लिए भले ही महत्वपूर्ण हों, पर देश में सियासी घमासान भी पैदा कर रहे हैं। इन खुलासों से मुश्किल कांग्रेस को हो रही है। इशरत जहां मुठभेड़ को उसी ने हवा दी है। अब डेविड बता रहा है कि इशरत आत्मघाती हमलावर थी। भले ही उसके एनकाउंटर को लेकर संदेह हो, मगर अब इसमें कोई शक नहीं रहा कि वह आतंकी थी। और आतंकी को मौत के घाट उतारना गलत नहीं; चाहे तरीका कुछ भी हो। अब तो आईबी के सेवानिवृत्त अफसर ने भी कह दिया है कि यूपीए सरकार ने पद का लालच देकर इशरत जहां से जुड़ी खुफिया रिपोर्ट दबाने की कोशिश की थी। यह वाकई शर्मनाक बात है कि तुच्छ राजनीति के लिए कोई पार्टी इस हद तक गिर जाए कि देशविरोधी ताकतों का भी समर्थन करने लगे। कांग्रेस को अब सामने आकर इन तमाम आरोपों पर सफाई देनी चाहिए। सिर्फ यह कह देना कि राजनीतिक फायदे के लिए डेविड का इस्तेमाल किया जा रहा है, गलत होगा। अपने इतिहास के सबक लेकर कांग्रेस को जनता के सामने अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए।
मोहित,
सेक्टर- 61, नोएडा

अस्पताल का बुरा हाल
आजकल सरकार जनता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित तो बहुत है, पर क्या सरकारी अस्पताल सरकार की नीतियों का अच्छी तरह पालन कर रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या कम नहीं होती, मगर सुुविधाओं का अभाव होता है। स्थिति यह है कि अगर किसी को टीका लगवाना हो, तो उसे अपने साथ सिरिंज भी लाना होता है। अस्पताल सिरिंज नहीं देते, जबकि यह देना उसके लिए अनिवार्य है। इसी तरह डॉक्टर जो दवाई लिखते हैं, वह भी अस्पताल के मेडिकल स्टोर में उपलब्ध नहीं होती, बल्कि उसे भी बाहर से लाना होता है। पूछने पर बताया जाता है कि अस्पताल में दवाई नहीं है। क्या यही नि:शुल्क इलाज है? अगर स्थिति यही रही, तो फिर जनता का भगवान ही मालिक है।
गौरव चौधरी, चांदपुर, बिजनौर

 

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