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लोकतंत्र की विसंगति

इतिहासकार रामचंद्र गुहा का 18 फरवरी का लेख ‘भारतीय लोकतंत्र का स्याह पक्ष’ हमारे लोकतंत्र की व्यावहारिक कमियों की ओर इशारा करता है। उन्होंने ठीक ही लिखा है कि ये बातें हमने स्वयं बनाई...

लोकतंत्र की विसंगति
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 19 Feb 2017 10:24 PM
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इतिहासकार रामचंद्र गुहा का 18 फरवरी का लेख ‘भारतीय लोकतंत्र का स्याह पक्ष’ हमारे लोकतंत्र की व्यावहारिक कमियों की ओर इशारा करता है। उन्होंने ठीक ही लिखा है कि ये बातें हमने स्वयं बनाई हैं, इसलिए हम ही इन्हें दूर कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश हो या देश का कोई अन्य राज्य, राजनीतिक दल चुनावों में आपराधिक छवि के उम्मीदवारों के प्रेम से कहीं भी मुक्त नहीं है। भारतीय मतदाता अब भी गरीबी और रिश्वतखोरी का शिकार है, जबकि चुनावों में धनबल का प्रयोग आम है। रामचंद्र गुहा ने एक दिलचस्प प्रश्न पूछा कि मतदाता आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनते ही क्यों हैं? इसका उत्तर भी साफ है कि बाहुबली कभी-कभी वे काम अपने बल पर करवा देते हैं, जिसे सत्ता में बैठे लोग भी नहीं करवा पाते हैं। ऐसे में, अगर जनता आत्ममंथन करे और जाति, धर्म, प्रांतीयता व झूठे प्रलोभनों को दरकिनार कर दे, तो लोकतंत्र के स्याह पक्ष से बचा जा सकता है।
नवीनचंद्र तिवारी, रोहिणी, दिल्ली

दागी उम्मीदवार
एक तरफ भारतीय जनता पार्टी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में यह दावा करते नहीं थक रही है कि सत्ता में आने के बाद वह अपराध को पूरी तरह खत्म कर देगी। मगर दूसरी तरफ, मौजूदा चुनाव में इस पार्टी ने दागी उम्मीदवारों को भी खूब टिकट बांटा है। ऐसे में, सवाल यही है कि सत्ता में आने के बाद भाजपा आखिर अपराध कैसे खत्म करेगी? आखिर वह लोग अपराध कैसे खत्म करेंगे, जो खुद अपराध में लिप्त हैं।
एहसान खान
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

अजीब राजनीतिक दौर
आज का सियासी दौर अजीब है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने कारनामों का बखान पूरी शिद्दत से कर रहे हैं, पर आरोप भी उसी शिद्दत के साथ एक-दूसरे पर मढ़ रहे हैं। आखिर कोई सीधी बात क्यों नहीं कर रहा? शायद तमाम दल डर रहे हैं कि सीधी बात कहने से उन्हें चुनाव में नुकसान हो सकता है। नोटबंदी का ही मसला लीजिए। भाजपा या उसके समर्थक दलों को छोड़ दें, तो सभी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। मगर यह विरोध सीधा नहीं, घुमा-फिराकर किया जा रहा है, बातों में लपेटकर, क्योंकि उन्हें डर है कि जनभावना उनके खिलाफ जा सकती है। यह राजनीति का पुराना नियम है। शायद इसी से राजनीति का स्तर भी गिरता  जा रहा है।
दिव्यमान यती, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

इसरो से मिलती सीख
अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में स्थापित करके जो उपलब्धि हासिल की, उसकी चर्चा देश-दुनिया के मीडिया में है। हालांकि इस घटना में एक सबक भी है। इसरो ने साइकिल और बैलगाड़ी की मदद से अपने अभियानों की शुरुआत की थी, आज पांच दशक के अपने सफर में यह अंतरिक्ष कार्यक्रमों में धनी देशों की कतार में है। हम भारतीयों को इसरो की इस उपलब्धि पर गौरवान्वित होने के साथ-साथ उसकी मितव्ययिता और स्वावलंबन की भावना को भी खुद में प्रज्वलित करना चाहिए। विकास के मार्ग पर अग्रसर भारतीयों की क्रयशक्ति बढ़ने के कारण नजर आती समृद्धि फिजूलखर्ची और आडंबर  की बढ़ती आदत से धूमिल होती प्रतीत हो रही है।
लोकेश कुमार, धनबाद 

बढ़ता तापमान
अब समय आ गया है कि ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। इसके लिए विशेष रूप से विकसित देश जिम्मेदार हैं, जबकि विकासशील देश इस पर नियंत्रण के प्रयास कर रहे हैं। नासा के अध्ययन के अनुसार, इस साल की जनवरी अब तक की सबसे गरम जनवरी रही है। ऐसी खबरों के आने का यही मतलब है कि अब भी हमने कुछ न किया, तो अगली पीढ़ियां साफ वातावरण में सांस नहीं ले सकेंगी। 
फिरोज अली, शाहजहांपुर

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