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भारत में विदेशों से पढ़े डेंटिस्टों को देनी होगी परीक्षा

विदेशों से डेंटिस्ट की पढ़ाई करने वालों को भी पहले स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना होगा। इसके बाद ही उन्हें दांतों का इलाज करने के लिए रजिस्ट्रेशन नंबर मिलेगा। डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (डीसीआई) विदेशों से...

भारत में विदेशों से पढ़े डेंटिस्टों को देनी होगी परीक्षा
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 26 Feb 2010 01:08 AM
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विदेशों से डेंटिस्ट की पढ़ाई करने वालों को भी पहले स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना होगा। इसके बाद ही उन्हें दांतों का इलाज करने के लिए रजिस्ट्रेशन नंबर मिलेगा। डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (डीसीआई) विदेशों से बीडीएस और एमडीएस डिग्री लेने वालों के लिए टेस्ट अनिवार्य कर दिए हैं।

इतना ही नहीं विदेशी डेंटल कालेजों में एडमिशन से पूर्व डीसीआई से अनुमति हासिल करनी होगी। मकसद विदेशों में फर्जी कालेजों से डिग्री लेकर आने वालों को डाक्टरी करने से रोकना है। कुछ साल पूर्व हैल्थ मिनिस्ट्री ने विदेशों से एमबीबीएस की डिग्री लेकर आने वाले डाक्टरों के लिए ऐसा ही स्क्रीनिंग टेस्ट अनिवार्य बनाया था। लेकिन दांतों के डाक्टरों के लिए अभी तक कोई प्रावधान नहीं था।

अब डीसीआई ने बीडीएस डाक्टरों के लिए भी टेस्ट अनिवार्य बना दिया है। छात्र इसका विरोध कर रहे हैं। अभी तक एक टेस्ट आयोजित किया है जिसमें करीब 25 छात्र ही बैठे थे जिनमें से 12 पास हुए और 13 फेल। सितंबर में होने वाले दूसरे टेस्ट में भारी संख्या में छात्रों के बैठने की संभावना है।

डीसीआई के चैयरमैन डा. अनिल कोहली ने बताया कि मार्च में विदेशों से एमडीएस पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री लेने वालों के लिए भी पहला स्क्रीनिंग टेस्ट अनिवार्य कर रहे हैं। टेस्ट राजीव गांधी यूनिर्वसिटी द्वारा आयोजित किया जाएगा। हालांकि एमसीआई ने सिर्फ एमबीबीएस के लिए टेस्ट का प्रावधान रखा है। एमडी या एमएस की डिग्री लेकर आने वालों के लिए कोई टेस्ट नहीं है।

इसके अलावा डीसीआई ने विदेश में दांतों की डाक्टरी पढ़ने के लिए जाने से पूर्व अनुमति हासिल करने का प्रावधान बनाया है। यदि कोई छात्र डीसीआई की अनुमति के बगैर विदेश से डिग्री लेकर आता है तो उसे स्क्रीनिंग टेस्ट में नहीं बैठने दिया जाएगा। डीसीआई के पास इस बात का कोई आंकड़ा नहीं है कि विदेशों से कितने डेंटिस्ट बनकर आ रहे हैं। लेकिन काउंसिल का मानना है कि डाक्टरी पढ़ने के लिए विदेश जाने वालों की संख्या बढ़ रही है। खासकर पूर्व सोवियत संघ, चीन और नेपाल से पढ़कर आ रहे छात्रों की गुणवत्ता में कमी देखी गई है।

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