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मुझे बर्दाश्त करने के लिए शुक्रिया

चौदहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र का अंतिम दिन। सदन में बैठे तमाम लोग। इनमें से कितने ही अगली लोकसभा में भी आएंगे। लेकिन एक व्यक्ित शर्तिया लौटकर नहीं आएगा-वह हैं सोमदा। एक एसा शख्स जिसने वही किया जो दिल...

 मुझे बर्दाश्त करने के लिए शुक्रिया
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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चौदहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र का अंतिम दिन। सदन में बैठे तमाम लोग। इनमें से कितने ही अगली लोकसभा में भी आएंगे। लेकिन एक व्यक्ित शर्तिया लौटकर नहीं आएगा-वह हैं सोमदा। एक एसा शख्स जिसने वही किया जो दिल ने कहा। वही कहा जो अंतरात्मा से सुना। बेशक इसके लिए अपनी पार्टी तक से बैर मोल लेना पड़ा। इस बड़े व्यक्ितत्व को हिन्दुस्तान का सलाम! इंडोनशियाई संसद क अध्यक्ष अगुंग लेकसानो का अतिविशिष्ट दीर्घा मं स्वागत करन क बाद सदन की कार्यवाही आरंभ होन पर चटर्ाी न कहा, ‘लंब समय तक मुझ बर्दाश्त करन क लिए आप सबको धन्यवाद दता हूं।’ एक माक्र्सवादी का स्पीकर होना और चार साल बाद स्पीकर का अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावत पर उतरकर अपने निष्कासन को आमंत्रण जसे कारनामे को सोमनाथ के अलावा भारत की राजनीति के दूसरे शख्स से उम्मीद नहीं की जा सकती। सोमनाथ दादा को दाद देनी पड़ेगी कि यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि माक्र्सवादी पार्टी में नेतृत्व व पोलित ब्यूरो की अवहेलना के क्या अंजाम होते हैं, उन्होंने अंगद की तरह अपना पांव जमाए रखा। पार्टी की लकीर पर चलने के बजाय जो ठीक समझा वही किया। पूर चालीस बरस पार्टी और इनमें 35 वर्ष तक लोकसभा में रहे सोमनाथ ने सांसदों के आचरण पर ऐसी-ऐसी तीखी टिप्पणियां की, जिन्हें विपक्ष क्या उनकी पार्टी के सांसदों ने भी पसंद नहीं किया। चटर्ाी ने कहा कि उन्हें ‘हेडमास्टर’ कहे जाने पर आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा, आखिर इसमें बुरा क्या है। उन्होंने आशा जताई कि उनका उत्तराधिकारी उनसे भी आगे बढ़कर संसद की गरिमा को स्थापित करगा। पांच बरस तक उनके साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा-दादा से हमने यही सीखा कि जो काम हाथ में लो उसे परफेक्शन के साथ पूरा करो।

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