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अदालत की गुहार, नहीं भरे बच्चों के दिलों में नफरत

अलग हो चुके दंपत्तियों के बच्चों की भलाई को ध्यान में रखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि ऐसे बच्चे मां या बाप जिनके साथ भी रह रहे हों, उनके मन में माता-पिता को एक दूसरे के...

अदालत की गुहार, नहीं भरे बच्चों के दिलों में नफरत
एजेंसीSun, 14 Feb 2010 11:48 AM
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अलग हो चुके दंपत्तियों के बच्चों की भलाई को ध्यान में रखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि ऐसे बच्चे मां या बाप जिनके साथ भी रह रहे हों, उनके मन में माता-पिता को एक दूसरे के लिए नफरत की भावना नहीं भरनी चाहिए।

न्यायमूर्ति शिव नारायण ढींगरा ने कहा कि यह बच्चों के हित में नहीं है कि अलग हो गए मां बाप अपने साथ रह रहे बच्चों के मन में एक दूसरे के लिए नफरत की भावना भरें। बच्चों के संरक्षण के मामलों की सुनवाई करने वाली एक अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया।

उक्त मामले में अदालत ने पिता को उसके दो बच्चों से मिलने की इजाजत दी थी और मां की इस दलील को खारिज कर दिया कि बच्चों अपने पिता से नहीं मिलना चाहते हैं, क्योंकि वे बड़े हो गए हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि संरक्षकता अदालत के समक्ष बच्चों के हित का सवाल सबसे पहले होता है और अलग हो चुके मां बाप के एक तरफा प्रभाव से उन्हें बचाने की जरूरत भी होती है।

न्यायमूर्ति ढींगरा ने कहा कि बड़े बच्चों (15) को उसके पिता के पास जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा और पत्नी को संरक्षकता अदालत के फैसले के मुताबिक छोटे बच्चों को उसके पिता को सौंपने का आदेश सुनाया । बच्चों से मिलने में पिता को पुलिस मदद देगी।

इस मामले में पिता ने मां के साथ रह रहे बच्चों से मिलने के लिए संरक्षकता अदालत से पुलिस की मदद मांगी थी। अदालत ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाया था जिसे कि उसकी पत्नी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

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