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उर्दू मीडिया : पाकिस्तान में जािया जायज नहीं

पाकिस्तान के प्रांतीय क्षेत्रों में तालिबान द्वारा सिखों और हिन्दुओं पर अत्याचार और जािया लागू करने के खिलाफ मुस्लिम बुद्धिाीवियों ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है उसको लेकर उर्दू प्रेस में बहस की लहर...

 उर्दू मीडिया : पाकिस्तान में जािया जायज नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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पाकिस्तान के प्रांतीय क्षेत्रों में तालिबान द्वारा सिखों और हिन्दुओं पर अत्याचार और जािया लागू करने के खिलाफ मुस्लिम बुद्धिाीवियों ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है उसको लेकर उर्दू प्रेस में बहस की लहर चली हुई है और तालिबान के कदम को गैर इस्लामी बताते हुए अमानवीय कहा गया है। कोलकाता से प्रकाशित उर्दू दैनिक ‘अखबार मशरिक’ ने इसे असंवैधानिक और पाशविक कहा है। इसे पहली खबर बनाते हुए अखबार ने लिखा है कि जािया न देने पर वहां के सिखों का अपहरण कर उनके घर और दुकानों को तोड़ा गया। हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि जािया इस्लामी राज्य का एक ऐसा कर है, जिसको अदा कर स्वस्थ और वयस्क गैरमुस्लिम को फौाी सेवाओं से छूट मिल जाती है, और इस कर को अदा करने के बाद उन पर कोई दूसरा कर नहीं लगाया जाता है। जबकि मुसलमानों पर जकात के साथ अन्य कर भी लागू होते हैं और उन्हें फौाी सेवाओं में भी शामिल होना पड़ता है। यह केवल उन देशों में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अदा करना होता था जिनको मुसलमानों ने फतह किया हो, जसे मिस्र् और इराक, जबकि गैर विजय प्राप्त क्षेत्रों में जािया नहीं होता था। मदीना में हारत मोहम्मद के समय में गैर मुस्लिमों में जािया लागू नहीं किया, बल्कि मदीना के संविधान के अनुसार वहां के गैर मुस्लिमों को वहां वही अधिकार हासिल थे जो कि मुसलमानों को थे। कई सदियों से मुस्लिम देशों ने जािया का क्रियान्वयन नहीं किया। सऊदी अरब और ईरान में गैरमुस्लिमों पर कोई जािया नहीं है। इसका कारण यह है कि उन देशों में रहने वाले वह सभी टैक्स अदा करते हैं, जो कि दूसर अदा करते हैं। इस्लामी स्कॉलर और ख्याति प्राप्त आलिमेदीन मौलाना वहीदउद्दीन खां ने एक कदम आगे बढ़ते हुए अब तक की मुस्लिम सोच के विपरीत फिलीस्तीन के स्वतंत्र आंदोलन और इस संबंध में उनके प्रयासों को नाजायज और आधारहीन बताया है। यह बात उन्होंने अपने सम्पादकीय में निकलने वाले ‘अल-रिसाला’ में ‘पहली वापसी-दूसरी वापसी’ के शीर्षक से लिखी है। जिसमें उन्होंने कुरआनी आयत से यह साबित करने की कोशिश की है कि फिलीस्तीन की जमीन अथवा क्षराइल हुकूमत वास्तव में जायज और वास्तविक मातृभूमि है नाजायज नहीं, वह जालिम नहीं मजलूम है। इसलिए उन्हें उनकी जमीन से निकालने की कोशिश एक गलत काम है। सम्पादक अल-रिसाला के अनुसार ‘बाल फोर्ड डेकलेरशन के तहत 1में दुनिया भर के यहूदियों की वापसी अपने देश फिलीस्तीन की तरफ शुरू हो गई और फिलीस्तीन के आधे हिस्से में क्षराइली हुकूमत स्थापित हुई। मौलाना, नाजायज तौर पर कायम हुई इस यहूदी राज्य को अल्लाह के मंसूबे के मुताबिक बताते हैं। फिलीस्तीनियों का इन यहूदियों के खिलाफ आंदोलन ‘एक सच्चाई के खिलाफ जंग है’। पुरी के शंकराचार्य अशोकआंनद देव तीरथ ने संघ परिवार विशेषकर भाजपा और नरन्द्र मोदी पर तीखी आलोचना करते हुए मोदी को गिरफ्तार करने की मांग पर ‘सहाकत’ ने लिखा है कि इसके पूर्व भी शंकराचार्य की ओर से ऐसी आलोचना कई बार की गई है, लेकिन संघ परिवार पर शंकराचार्य की आलोचना का कोई असर नहीं हुआ। संघ परिवार और भाजपा को हिन्दू धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। इसीलिए इन तत्वों ने हिदुत्व की नई शब्दावली गढ़ ली है ओर उसी के नाम पर वह राजनैतिक फायदा उठाने की कोशिश करते रहे हैं। आर्थिक मंदी से उत्पन्न स्थिति का आकलन करते हुए दैनिक ‘उर्दू टाइम्स’ ने लिखा है कि 10 और 200ी मंदी में फर्क केवल इतना है कि तब पूंजीवादी व्यवस्था के मुकाबले सोशलिस्ट व्यवस्था थी और आज इसके मुकाबले पर ब्याज रहित प्रणाली का नाम आ रहा है, जो इस्लामी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। निस्संदेह ब्याज रहित प्रणाली ही विश्व की आर्थिक समस्याओं का समाधान है। बहुत से गैर मुस्लिम विशेषज्ञ भी ब्याज रहित प्रणाली की बात कर रहे हैं। यदि बैंक, इंश्योरंस कंपनियां, कार फैक्िट्रयां आदि एक के बाद एक दिवालिया होने लगे तो बुनियादी तौर पर इसके जिम्मेदार इनके मालिक होते हैं। जिनका बुनियादी मकसद ज्यादा से ज्यादा ‘ब्याज’ कमाना होता है और इस स्थिति में कठपुतलियों की डोर थामने वाले पूंजीपतियों का कुछ नहीं बिगड़ता। लिहाजा इस समय समझने की बातें दो हैं। विश्व में प्रचलित आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था जिनके बनाए हुए हैं, उन्हीं के कंट्रोल में भी हैं और विश्व में हर स्तर पर ‘मायूसी’ फैलाना ही उनका गंतव्य है। वह मायूसी इसीलिए फैलाते हैं कि अल्लाह की रहमत से मायूस हो जाना कुफ्र है और जहां कुफ्र है, वहां इस्लाम नहीं होता और जहां इस्लाम ही नहीं होगा, वहां ब्याज रहित व्यवस्था कैसे आएगी? लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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