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टेक फीवर और बच्चों की सेहत

सभी जानते हैं कि घिसट-घिसट कर चलने के बाद ही बच्चे चलना सीखते हैं, उनकी जिदंगी में दो पहिए से पहले तीन पहियों वाली साइकिल आती है, पर आज की तेज रफ्तार जिंदगी में बच्चे बैठने की उम्र में ही कंप्यूटर पर...

टेक फीवर और बच्चों की सेहत
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 03 Feb 2010 04:39 PM
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सभी जानते हैं कि घिसट-घिसट कर चलने के बाद ही बच्चे चलना सीखते हैं, उनकी जिदंगी में दो पहिए से पहले तीन पहियों वाली साइकिल आती है, पर आज की तेज रफ्तार जिंदगी में बच्चे बैठने की उम्र में ही कंप्यूटर पर गेम खेलते हैं, मोबाइल तो जैसे उनके लिए खेलने का खिलौना बन चुका है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर किस उम्र में बच्चों के हाथ में लैपटॉप, सेलफोन जैसी चीजों को आना चाहिए, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिहाज से बेहतर हो। अनुराग मिश्र की रिपोर्ट

मौजूदा दौर टेक्नोलॉजी का युग है, ऐसे में बच्चों में इसकी समझ विकसित करना खासा जरूरी है। स्विस मनोवैज्ञानिक जीन पायगेट ने बच्चों द्वारा कम उम्र में ही टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल किए जाने का अध्ययन किया। उनका कहना था कि इस उम्र में बच्चों के हाथ में उम्र के अनुसार ऐसी टेक्नोलॉजी देनी चाहिए, जो कि बच्चों के विकास में सहायक हो।

किस उम्र में कौन से गैजेट्स

लाइट-साउंड करते हैं ज्यादा आकर्षित

2 साल की उम्र तक जाहिर है कि बच्चों की शारीरिक अवस्था ऐसी होती है कि वह माउस का इस्तेमाल नहीं कर सकते। ऐसे में इस उम्र में बच्चों के मानसिक विकास के लिए आवश्यक है कि आप उन्हें ऐसे तकनीकी उत्पाद दें, जो कि बच्चों की प्रतिक्रिया पर तुरंत रिएक्शन करें। मसलन ऐसे प्रोडक्ट, जो लाइट और साउंड के मिश्रण पर आधारित हों। इन प्रोडक्ट्स की प्रतिक्रिया करने की गति तीव्र होनी चाहिए। जायगेट ने इस अवस्था को सेंसरोमीटर का नाम दिया। इस उम्र में बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक किताबें दी जा सकती है। इनमें लगे बटनों और दृश्यों द्वारा बच्चों की समझ ज्यादा बेहतर विकसित होती है।

टीवी सेलफोन उनके सबसे अच्छे फ्रैंड

तीन से पांच साल की उम्र तक के बच्चें स्कूल जाने की इस उम्र में बाहर की दुनिया से वाकिफ तो होते ही हैं, साथ ही वह अपने मां-बाप को सेलफोन और कंप्यूटर का इस्तेमाल करते भी देखते हैं। इस उम्र में बच्चे कंप्यूटर में माउस की सहायता से काम करने लगते हैं। ऐसी उम्र में बच्चों को ऐसी तकनीक से रूबरू कराना चाहिए, जिसमें उनके विजन का विस्तार बेहतर तरीके से हो सके। इस उम्र में कैमरे, टीवी, सेलफोन उनके तकनीकी दोस्त साबित हो सकते हैं। इस उम्र में बच्चों की सोच मजबूत नहीं होती। इस उम्र में सामान्यत: वे ये समझने लगते है कि 3*2 भी 6 होता है और 2*3 भी 6 होता है।

पेरेंट्स पासवर्ड का करें इस्तेमाल

मौजूदा दौर में जरूरी है कि मां-बाप सिस्टम में अपना और बच्चों के यूजर अकाउंट अलग से बनाएं, क्योंकि इससे बच्चा आपके सिस्टम की सभी फाइलों को एक्सेस नहीं कर सकेगा। सिस्टम में यूजर अकाउंट बनाने के लिए कंट्रोल पैनल में यूजर अकाउंट में जाएं और न्यू यूजर बना कर उसे जरूरत के हिसाब से एक्सेस करने का अधिकार दे दें। आप पासवर्ड प्रोटेक्शन के तरीके का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, यहां तक कि माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस में लॉक टूल होता है, जिसका प्रयोग आप कर सकते हैं।   
                                           - शशांक कुमार, साइबर मामलों के जानकार

मारधाड़ वाले गेम्स से रखें दूर

छह साल से ग्यारह साल की उम्र में बच्चे इंटरनेट पर सर्च करने के साथ चैटिंग के बारे में भी जानने लगते हैं। ऐसे में बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है। इस उम्र में बच्चों को ऐसी साइट्स दिखाने के लिए प्रेरित करना चाहिए, जो बच्चों का ज्ञान बढ़ाए। उन्हें ऐसे वीडियो गेम से दूर रखने की कोशिश करें, जो मारधाड़ वाले हो।

वह फोन नहीं करने देता

अकसर देखने में आता है कि फोन आने पर या करने पर बच्चे शोर मचाने लगते हैं। आपकी इस समस्या का समाधान आसान है- शोर को नजरअंदाज करने वाले हैंडसेट। ऐसे में आप ऐसे सेलफोन को ब्लूटूथ हैडसेट के साथ मिश्रित रूप से खरीद सकते हैं। जा बोन जैसी कंपनियां वॉयस आइसोलेटिंग टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं। इससे फोन के दौरान आपका लाडला आपको परेशान नहीं कर पाएगा और उसकी हानिकारक रेडियेशन से भी बच पाएगा।

इन्हें भी न करें नजरअंदाज

इस बात पर गौर करें कि आपके कमरे में घुसने पर बच्चा मॉनिटर स्विच ऑफ कर देता है या खोली गई विंडो को मिनिमाइज कर देता है।

इस बात पर गौर करें कि क्या आपका बच्चा कई घंटों तक नेट करता रहता है और वह भी रात के समय में।

सिस्टम में नेट फिल्टर इंस्टॉल करें। इससे नेट में वह गलत कंटेट और साइट्स को खोल नहीं पाएगा।

इंटरनेट करने के दौरान बच्चों पर नजर रखें। देखें कि वह कौन-सी साइट खोलता है।

कंप्यूटर की हिस्ट्री चैक करते रहें। इससे बच्चों ने क्या देखा, उसकी जानकारी आपको मिलती रहेगी।

बारह वर्ष या उससे ऊपर की उम्र में बच्चे इंटरनेट की दुनिया से भली-भांति वाकिफ हो चुके होते हैं। सेलफोन उनके लिए जरूरी बन चुका होता है। साथ ही अभिभावकों का बच्चों से संपर्क में रहने के लिए यह जरूरी साधन भी बन जाता है।

नेट से रहें सुरक्षित बच्चे

इंटरनेट एक समुद्र की तरह है। सूचनाओं के इस संसार में अच्छी चीजों के साथ बुरी चीजें भी हैं। बस एक क्लिक के माध्यम से हर तरह की सूचनाएं आपके सामने मौजूद होती हैं। आज के दौर में बच्चे इंटरनेट पर घंटों समय व्यतीत करते हैं। इंटरनेट पर उनकी निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ चुकी है। विषयों के प्रोजेक्ट वर्क से लेकर नेट तक में बच्चे इंटरनेट का जम कर इस्तेमाल करते हैं। एक लिहाज से बच्चों का कंप्यूटर सैवी होना फायदेमंद है तो इसके कुछ नुकसान भी हैं। कभी जान-बूझ कर तो कभी अनजाने में बच्चे इंटरनेट के जाल में फंस जाते हैं। इस दौर में यह जरूरी है कि आप अपने बच्चों पर  निगाह रखें और गौर करें कि कहीं आपका बच्चा इंटरनेट के जाल में तो नहीं फंस रहा है।

महज इसलिए बच्चों को नेट की सुविधा से वंचित कर देना सही नहीं है, क्योंकि यह सुविधा नुकसान देने से कहीं ज्यादा अधिक फायदा प्रदान करने वाली है, इसलिए बच्चों की लगातार मॉनिटरिंग करते रहें। इसके अलावा आप कुछ तरीके अपना कर बच्चों को नेट पर सुरक्षित रख सकते हैं।

कंप्यूटर को कॉमन एरिया में रखें। इससे आप बच्चों पर हमेशा निगाह रख पाएंगे और देख सकेंगे कि बच्चा कंप्यूटर पर क्या कर रहा है।

जो साइट आपके बच्चे के लिए महत्त्वपूर्ण है, उनको बुकमार्क कर लें।

नेट के बारे में लगातार अपडेट होते रहें। उदाहरण के तौर पर चैट के दौरान किस तरह के शब्द इस्तेमाल होते हैं, उनकी जानकारी रखें।

बच्चों को विश्वास में लें। उसको इस बात के बारे में बताएं कि इंटरनेट पर अपनी पर्सनल इनफॉरमेशन को शेयर करना कितना घातक हो सकता है। साथ ही उन्हें नेट पर सोशल साइट्स पर फोटो अपलोड करने के खतरों के बारे में जानकारी दें। लोगों को फ्रैंड लिस्ट में शामिल करने से उनके बारे में पूरी जानकारी लें।

इस बात पर ध्यान रखें कि आपका बच्चा जिस अनजान व्यक्ति से नेट पर चैटिंग कर रहा है, कहीं उससे वह मुलाकात तो नहीं कर रहा है। अगर आपका बच्चा उस व्यक्ति से मिलने जाता भी है तो उसको अकेले कभी न जाने दें।

टेक्नोलॉजी न होने पाए हावी

टेक्नोलॉजी का फायदा-नुकसान दोनों ही है। जहां तक बच्चों की बात है तो आज के दौर में टेक्नोलॉजी से उन्हें दूर रखा नहीं जा सकता। ऐसे में मां-बाप की भूमिका है कि वह उनमें ऐसी स्किल विकसित करें जिससे टेक्नोलॉजी उन पर हावी न हो। बच्चों में तकनीक के कुछ प्रमुख बुरे असर जो देखने को मिलते हैं वो हैं ऑनलाइन गेमिंग की वजह से उनका आक्रामक होना, पढ़ाई में मन न लगना, रास्ते में मोबाइल का प्रयोग करना, एमएमएस की आदत का बाद में परेशानी का सबब बनना।
                                                             समीर पारिख, मनोचिकित्सक

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