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रण को मीडिया विरोधी फिल्म कहना ठीक नहीं..

यह फिल्म मीडिया पर है या मीडिया पर निशाना साध रही है? (मुस्कराते हुए) फिल्म में मीडिया पर निशाना नहीं साधा गया है। यह फिल्म मीडिया की उन कमजोरियों को एक्सपोज करती है, जो टीआरपी के लिए कुछ भी करना...

रण को मीडिया विरोधी फिल्म कहना ठीक नहीं..
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 22 Jan 2010 04:03 PM
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यह फिल्म मीडिया पर है या मीडिया पर निशाना साध रही है?
(मुस्कराते हुए) फिल्म में मीडिया पर निशाना नहीं साधा गया है। यह फिल्म मीडिया की उन कमजोरियों को एक्सपोज करती है, जो टीआरपी के लिए कुछ भी करना चाहते हैं। यह इनके पॉजिटिव और निगेटिव पहलुओं को सामने लाती है। इसे मीडिया विरोधी फिल्म कहना ठीक नहीं ।

आप ताज होटल पर  26 नवम्बर के हमले के बाद रितेश के साथ वहां गये थे, जिसे मीडिया ने काफी उछाला था। सुना है कि आप इससे काफी नाराज थे?
यह कहना गलत है कि मैं मीडिया से नाराज हूं, इसलिए फिल्म में काफी आक्रामक   हूं। यह कहना भी गलत है कि ताज होटल मैं फिल्म के आइडिया के लिए गया था। ‘रण’  की कहानी तो मैंने उससे दो महीने पहले ही लिख ली थी। उस हमले के एक हफ्ते बाद तो फिल्म की शूटिंग शुरू हो गयी थी।

आप अंडरवल्र्ड फिल्मों के लिए काफी रिसर्च करते हैं। क्या ‘रण’ पर मीडिया  रिसर्च की है?
 मैंने टैक्निकल पहलू पर रिसर्च नहीं की। बड़े मीडिया हाउस चैनल कैसे चलाते हैं, यह जानने की कोशिश भी नहीं की, क्योंकि यह मेरी फिल्म का विषय नहीं। मैंने मीडिया के मनोविज्ञान को जानने की कोशिश की है कि कोई खबर कैसे लिखी जाती है और कैसे पेश की जाती है। हमने मीडिया के इमोशनल पक्ष को उभारने की भी कोशिश की है। उनकी मजबूरियों और मजबूतियों तथा खूबियों और खामियों को दिखाया है। 

आपने ‘फूंक’ और ‘अज्ञात’ के प्रचार के लिए अकेले फिल्म देखने का चैलेंज दिया था। आपको भी गिमिक की जरूरत होती है?
हमें अपनी फिल्म की पब्लिसिटी तो करनी ही है। लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए यह सब करना पड़ता है। इससे फिल्म के लिए एक माहौल बन जाता है।

इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और रितेश देशमुख भी हैं। आप अमिताभ जी के साथ पहले भी काम कर चुके हैं। रितेश के साथ काम करना कैसा लगा?
रितेश फिल्मों में कॉमेडी करता है, मगर निजी जीवन में वह बड़ा गंभीर है। इस फिल्म में वह एक पत्रकार की भूमिका कर रहा है। मैंने उससे बिल्कुल वैसा ही करवाया है, जैसा वह निजी जीवन में है।

आप ‘फूंक’ और ‘अज्ञात’ का सीक्वल बना रहे हैं । ‘रक्त चरित्र’ दो भागों में है । क्या आपने ‘अज्ञात’ की असफलता से कोई सबक नहीं सीखा, जिसके अटपटे अंत को देख दर्शक बौखला गये थे?
‘फूंक’ का सीक्वल तैयार है। ‘अज्ञात’ से भी सबक सीखा है। ‘रक्त चरित्र’ दो भागों में है, पर दोनों की कहानियां अलग और स्वतंत्र हैं। आपको ऐसा नहीं लगेगा कि फिल्म अधूरी है ।

अब तो आप ‘रण टाइम्स’ के संपादक भी बन गये हैं। कैसा लग रहा है?
ऐसा जो कुछ भी कहा जा रहा है, वह गलत है। यह हमारा फिल्म के प्रचार का तरीका है। ‘रण टाइम्स’ कोई अखबार नहीं है कि मैं संपादक बन जाऊं।

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