आरटीआई कार्यकर्ताओं ने न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक बताया
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में होने के एकल पीठ के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा कायम रखने की पूरे देश के आरटीआई...
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में होने के एकल पीठ के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा कायम रखने की पूरे देश के आरटीआई कार्यकर्ताओं ने प्रशंसा की है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा, ''इस निर्णय के महत्व को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं केवल यह कह सकता हूं कि यह मील का पत्थर और ऐतिहासिक फैसला है। यह निर्णय देश में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाने में पथप्रदर्शक का काम करेगा।''
अग्रवाल की ही याचिका पर केंद्रीय सूचना आयोग ने फैसला दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय सार्वजनिक अधिकरण है।
अग्रवाल का मुकदमा लड़ने वाले सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने आईएएनएस से कहा, ''यह एक ऐतिहासिक फैसला है और न्यायपालिका भी जवाबदेह है तथा इसके कार्यो से जुड़ी सभी सूचनाएं आरटीआई के तहत उपलब्ध होने पर बल देने के लिए इसका दूरगामी प्रभाव होना चाहिए।''
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की थी। परंतु उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने दो सितम्बर 2००9 के फैसले में प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय को आरटीआई के दायरे में होने का फैसला कायम रखा।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपनी एकल पीठ के इस फैसले को कायम रखा।
मुख्य न्यायाधीश ए.पी.शाह और न्यायाधीश एस.मुरलीधर तथा विक्रमजीत सेन की खंडपीठ ने कहा, ''अधीनस्थ न्यायपालिका पहले ही संपत्तियों की घोषणा कर रही है। इसलिए जब वे जवाबदेह हैं तो हम भी हैं। इस प्रकार न्यायपालिका में जो जितना बड़ा है, जनता के प्रति उसकी जवाबदेही उतनी ही बड़ी है।''
फैसला सुनाते समय न्यायाधीशों ने आश्वस्त किया कि वे भी अगले सप्ताह अपनी संपत्तियों की घोषणा करेंगे।