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पारदर्शी मेंढक रोकेंगे जीवित मेंढकों की चीरफाड़

आप छात्र हैं और डॉक्टर बनना चाहते हैं। लेकिन प्रयोगों के दौरान मेंढक काटना पड़ेगा इसके चलते कई बायोलॉजी छोड़ देते हैं। या फिर आप पशु प्रेमी हैं मेढकों की चीड़फाड़ आपको पसंद नहीं तो वैज्ञानिकों ने...

पारदर्शी मेंढक रोकेंगे जीवित मेंढकों की चीरफाड़
एजेंसीSat, 02 Jan 2010 04:23 PM
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आप छात्र हैं और डॉक्टर बनना चाहते हैं। लेकिन प्रयोगों के दौरान मेंढक काटना पड़ेगा इसके चलते कई बायोलॉजी छोड़ देते हैं। या फिर आप पशु प्रेमी हैं मेढकों की चीड़फाड़ आपको पसंद नहीं तो वैज्ञानिकों ने इसका निदान ढूंढ लिया है।

अब जिंदा मेढकों को काटने के लिए मोम की प्लेट पर सुइयों से बींधने की जरूरत नहीं पडे़गी, क्योंकि प्रयोगों में इस्तेमाल के लिए खास तौर पर विकसित पारदर्शी मेढक अगले छह महीनों में प्रयोगशालाओं तक पहुंच रहे हैं।

करीब दो साल पहले प्रयोगशाला में तैयार पारदर्शी मेढकों के बाद अब जापान के ही वैज्ञानिकों ने पारदर्शी मछलियां भी तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है और उन्हें आशा है कि अगले छह महीनों में प्रयोगशालाओं और स्कूलों के लिए इनकी बिक्री शुरू हो जाएगी।

मेंढकों की ही तरह पारदर्शी गोल्डफिश का भी धड़कता दिल बाहर से ही नजर आता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब काफी हद तक परीक्षणों के लिए उन्हें मारने की जरूरत नहीं पडे़गी। प्रयोगों के दौरान स्कूलों में ही बच्चों को मेंढक काटना पडता है जिसके चलते कई छात्र जीव विज्ञान विषय ही छोड़ देते हैं। यही नहीं पशु प्रेमी भी वर्षों से मेढकों के काटे जाने पर उंगलियां उठाते रहे हैं।

जापान की माय यूनीवर्सिटी के जीव विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर यूताका तमारू का कहना है कि पिगमेंट के न होने के कारण इस गोल्डफिश की त्वचा एकदम पारदर्शी है जिससे इसका न केवल धड़कता दिल धक-धक करता बाहर से ही साफ दिखाई देता है, बल्कि आंख के ऊपर दिमाग तथा अन्य अंग भी काम करते हुए देखे जा सकते हैं।

यूताका ने कहा कि अब वैज्ञानिकों को इनके अंगों पर परीक्षण करने के लिए उसका शरीर काटकर देखने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि अधिकांश परिस्थतियों में अब उनके अंगों पर पड़ने वाले असर को बाहर से ही काम करते या उन पर परीक्षण के असर को बिना काटे ही देखा जा सकेगा। माय यूनिवर्सिटी तथा नगोया यूनिवर्सिटों के संयुक्त प्रयासों से तैयार ये 'राइकिन' नाम की यह गोल्डफिश करीब बीस साल तक जिन्दा रहेगी तथा इसकी लंबाई भी करीब दस इंच और वजन दो किलो तक बढा़या जा सकेगा।

हिरोशिमा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर मासायूकी सुमीदा का कहना है कि अब इन पारदर्शी मेढकों का बडे़ पैमाने में उत्पादन शुरू कर दिया गया है और संभवतः इसी साल ये पारदर्शी मेंढ़क प्रयोग के लिए उपलब्ध हो सकेंगे। उन्होंने बताया कि अगले छह माह के भीतर ये मेंढक प्रयोगशालाओं तथा स्कूलों तक पहुंच जाएंगे। दस हजार येन यानी लगभग सवा पांच हजार रुपये के इस एक मेंढक को देश विदेश के लोग घरों में पालने के लिए भी खरीद सकेंगे।

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