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आरटीआई को लेकर शीर्ष कार्यालयों पर भी सख्ती

सूचना का अधिकार कानून के लिहाज से 2009 काफी अहम रहा है। इस साल केंद्रीय सूचना आयोग ने शीर्ष कार्यालयों से जुड़े मामलों में अहम फैसले दिये, वहीं कुछ अध्ययन हुए जिनमें बताया गया कि पारदर्शिता हिमायती...

आरटीआई को लेकर शीर्ष कार्यालयों पर भी सख्ती
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 30 Dec 2009 02:59 PM
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सूचना का अधिकार कानून के लिहाज से 2009 काफी अहम रहा है। इस साल केंद्रीय सूचना आयोग ने शीर्ष कार्यालयों से जुड़े मामलों में अहम फैसले दिये, वहीं कुछ अध्ययन हुए जिनमें बताया गया कि पारदर्शिता हिमायती कानून लोगों के लिये आखिर कितना मददगार है।

इस साल केंद्रीय सूचना आयोग ने शीर्ष संवैधानिक कार्यालयों में पारदर्शिता बरतने की हिमायत करते हुए सख्ती भरे फैसले दिये। वहीं, आरटीआई कानून के कार्यान्वयन में भी सक्रियता नजर आयी। केंद्रीय सूचना आयोग ने वर्ष 2008 में जहां 7,995 फैसले दिये, वहीं 2009 में उसके सुनाये फैसलों की संख्या बढ़कर 14,852 हो गयी।

मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल कहते हैं, यह साल इस लिहाज से महत्वपूर्ण रहा कि केंद्रीय सूचना आयोग ने न्यायपालिका में पारदर्शिता बरतने के समर्थन में फैसले दिये। उन्होंने कहा कि शीर्ष संवैधानिक कार्यालयों के मामले में आयोग ने सख्ती दिखाई, सूचना आयोगों के मामले निपटाने की दर में इजाफा हुआ और जागरूकता बढ़ने के कारण ज्यादा अर्जियां दाखिल हुईं। स्याह पहलू यह रहा कि मुख्य सूचना आयुक्त पद की नियुक्ति प्रक्रिया में ही पारदर्शिता नजर नहीं आयी।

केंद्रीय सूचना आयोग ने इस साल एक महत्वपूर्ण फैसले में उच्चतम न्यायालय को निर्देश दिये कि वह उन तीन न्यायाधीशों के नियुक्ति रिकॉर्ड का खुलासा करे, जिनके बारे में दावा है कि अन्य न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी कर उनकी नियुक्ति हुई है। केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर रघुपति और प्रधान न्यायाधीश के बीच हुए पत्राचार का भी शीर्ष अदालत खुलासा करे। न्यायमूर्ति रघुपति का दावा था कि एक मामले को प्रभावित करने के लिये एक मंत्री ने उन्हें फोन किया था।

गत सितंबर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का पद आरटीआई कानून के दायरे में आता है और न्यायाधीशों की संपत्ति के विवरण का खुलासा इस कानून के तहत हो सकता है। एक और महत्वपूर्ण मामले में केंद्रीय सूचना आयोग ने नवीन चावला के बारे में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी के राष्ट्रपति को लिखे पत्र को चावला के विचारों पर गौर करने के बाद सार्वजनिक करने की राष्ट्रपति सचिवालय को अनुमति दे दी।

बताया जाता है कि गोपालस्वामी ने इस पत्र में चावला को हटाने की सिफारिश की थी। पूर्व में इस पत्र का खुलासा करने से राष्ट्रपति सचिवालय ने इनकार कर दिया था। आयोग ने सूचना देने में विलंब के चलते राष्ट्रपति सचिवालय के एक लोक सूचना अधिकारी की खिंचाई कर पूछा कि उन पर 4,500 एपये का दंड क्यों नहीं लगाया जाये। एक और फैसले में आयोग ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि वह आरटीआई अर्जियां और प्रथम अपील को संक्षेप में ही निपटा रहा है।

आयोग ने इस साल यह भी स्पष्ट किया कि लोकसभा में विपक्ष के नेता का कार्यालय आरटीआई के दायरे में आता है और उसे कानून के प्रावधानों के तहत सूचना मुहैया कराना चाहिये। वहीं, एक अन्य फैसले में आयोग ने कहा कि सांसद और विधायक जैसे निर्वाचित जनप्रतिनिधि आरटीआई कानून के दायरे में नहीं आते। लेकिन संसद, विधानसभा या स्थानीय निकायों से लोग उनके कार्य के बारे में जानकारी मांग सकते हैं।

आयोग ने एक अन्य फैसले में यह भी कहा कि कॉरपोरेट घरानों के कर संबंधी विवरणों का खुलासा आरटीआई कानून के तहत किया जा सकता है क्योंकि गोपनीयता का प्रावधान व्यक्तियों तक सीमित है, संगठनों तक नहीं। किसी लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ आयोग के वॉरंट जारी करने का मामला भी इस साल तब सामने आया जब अरुणाचल सूचना आयोग ने सुनवाई के दौरान हाजिर नहीं रहने के मामले में एक सहायक लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ जमानती गिरफ्तारी वॉरंट जारी कर दिया।

मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने जम्मू कश्मीर राज्य सूचना आयोग के गठन के लिये मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के अनुरोध को स्वीकार कर गत नवंबर में इस्तीफा दे दिया। इसके बाद सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की लेकिन इस पर आपत्तियां उठायी गयीं। आरटीआई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक तथा प्रशिक्षण विभाग ने इस मामले में चयन प्रक्रिया की सूचना वेबसाइट पर चस्पा नहीं कर पारदर्शिता नहीं बरती है।

उधर, इस शीर्ष पद पर नियुक्ति के लिये बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के नाम का समर्थन किया। यह साल आरटीआई कानून के बारे में हुए अध्ययनों के नाम भी रहा। नेशनल आरटीआई अवॉर्डस सेक्रेटरिएट ने अपने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला कि सूचना के खुलासे के पक्ष में जारी होने वाले आयोगों के कुल आदेशों में से 60 फीसदी से अधिक का पालन ही नहीं हो पाता।

संगठन ने आरटीआई कानून के पिछले वर्ष के प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कार दिये। अखिल गोगोई को श्रेष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता, डॉ़ ललित नारायण मिश्रा को श्रेष्ठ लोक सूचना अधिकारी और अरुणाचल प्रदेश आयोग को श्रेष्ठ आयोग का पुरस्कार दिया। प्राइस वाटरहाउस कूपर्स और आईएमआरबी के अध्ययन में कहा गया कि महज 13 फीसदी ग्रामीण आबादी और 33 फीसदी शहरी आबादी आरटीआई के बारे में जागरूक है। 26 फीसदी से अधिक नागरिकों को सूचना पाने के लिये उनकी अर्जी देने के उददेश्य से तीन से अधिक बार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

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