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भारत का क्योटो प्रोटोकाल में संशोधन का विरोध

भारत ने कोपनहेगन बैठक में क्योटो प्रोटोकाल में कोई भी संशोधन किए जाने का विरोध किया, जबकि यूरोपीय संघ ने 1997 की जलवायु संधि से बड़े किसी समझौते के लिए दबाव बनाया जो उत्सर्जन कटौती के लिए विकासशील...

भारत का क्योटो प्रोटोकाल में संशोधन का विरोध
एजेंसीSun, 13 Dec 2009 03:15 PM
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भारत ने कोपनहेगन बैठक में क्योटो प्रोटोकाल में कोई भी संशोधन किए जाने का विरोध किया, जबकि यूरोपीय संघ ने 1997 की जलवायु संधि से बड़े किसी समझौते के लिए दबाव बनाया जो उत्सर्जन कटौती के लिए विकासशील देशों पर अधिक जिम्मेदारी डालता है।

छोटे से प्रशांत द्वीप तुवालू ने एक बार फिर क्योटो प्रोटोकाल की जगह दूसरी संधि लाने के लिए प्रस्ताव पेश किया। विकासशील देश खासकर भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील एक प्रोटोकाल वाला रुख अपनाए हुए हैं।

भारत के पर्यावरण सचिव विजय शर्मा ने एकत्र वार्ताकारों से कहा कि हमारा ध्यान संधि के कार्यान्वयन को उच्च स्तर पर ले जाना है। असल मामला मौजूदा प्रतिबद्धताओं का है। तुवालू एक छोटा सा द्वीप देश है जहां लोग समुद्र तल से दो मीटर की उंचाई पर रहते हैं। इस देश को समुद्र का जलस्तर बढ़ने की स्थिति में पानी में डूब जाने की आशंका है।

तुवालू के प्रतिनिधि इयान फ्राई ने कोपनहेगन जलवायु परिवर्तन शिखर बैठक मंत्री कोनी हेगार्ड से आग्रह किया कि नई संधि लाने के लिए एक प्रस्ताव पर विचार करने के लिए तत्काल संपर्क समूह बनाया जाए जिसके जरिए विकसित देशों तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं से बाध्यकारी कटौती जैसे ठोस कदम उठाने को कहा जाए।

भारत, चीन और सउदी अरब सहित विकासशील और तेल उत्पादक देशों ने इस आधार पर इसका विरोध किया कि क्योटो प्रोटोकाल से किसी भी तरह की दूरी नहीं बनाई जानी चाहिए जो एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है। यह औद्योगिक देशों पर उत्सर्जन के मामले में कानूनी रूप से प्रतिबंध लगाती है। हालांकि, अमेरिका या उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर इस संधि के तहत कोई उत्सर्जन प्रतिबंध नहीं है।

भारत और अन्य देशों को शक है कि यूरोप द्वारा नई संधि का समर्थन क्योटो प्रोटोकाल को कमजोर करने का भी एक प्रयास है। क्योटो प्रोटोकाल के तहत एनेक्स-1 श्रेणी में आने वाले 37 औद्योगिक देशों के लिए 2008-12 के दौरान ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिए बाध्यकारी लक्ष्य तय किया गया है।

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