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छठ पर्व पवित्र परंपरा, भव्य नजारे

छठ व्रत में भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें पवित्रता और साफ-सफाई पर काफी जोर दिया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में पूजा के लिए नदी या तालाब के किनारे बने घाटों के आसपास की...

छठ पर्व पवित्र परंपरा, भव्य नजारे
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 22 Oct 2009 05:07 PM
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छठ व्रत में भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें पवित्रता और साफ-सफाई पर काफी जोर दिया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में पूजा के लिए नदी या तालाब के किनारे बने घाटों के आसपास की खूबसूरती किसी मेले से कम नहीं होती। खास बात यह है कि इस पर्व की छटा अब बड़े महानगरों के साथ विदेशों में भी देखने को मिलती है।

सरिता जायसवाल पिछले 20 सालों से छठ मनाती आ रही हैं, पर अपने गांव बख्तियारपुर (पटना) में ही। पिछले साल नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे उनके बेटे ने ऑफिस से छुट्टी न मिलने के कारण जब उन्हें गांव की बजाय नोएडा आकर ही छठ करने की सलाह दी तो उन्हें समझ में नहीं आया कि वह क्या करें। उन्हें यही लग रहा था कि नोएडा में उन्हें इस त्योहार के लिए जो सुविधाएं चाहिए, वह नहीं मिल पाएंगी। पर जब समझाने पर वह वहां गईं और छठ पूजा के लिए उपलब्ध सुविधाओं का पूरा नजारा देखा तो वह बेहद खुश हुईं। वह बताती हैं, अर्घ्य कहां दें, न तो मुझे इस समस्या का सामना करना पड़ा और न ही इस त्योहार से संबंधित चीजों की खरीदारी में कोई दिक्कत हुई।’ हालांकि स्विमिंग पूल में उतरकर अर्घ्य देना उनके लिए एक नया अनुभव था, पर गांव के तालाब के मुकाबले यह कहीं अच्छा था। इस साल भी वह बेटे के पास ही छठ मना रही हैं। सरिता जायसवाल जैसी तमाम महिलाएं हैं, जो अपने गांवों से बहुत दूर होने के बावजूद महानगरों में भी धूम-धाम से छठ मना रही हैं। अब पहले की तरह इसके लिए मूल निवास स्थान पर जाना जरूरी नहीं रहा, क्योंकि इस पूजा से संबंधित सुविधाएं अब हर जगह उपलब्ध हैं। तात्पर्य यह है कि छठ का नजारा अब अपने मूल स्थान से दूर अन्य जगहों पर भी खूब दिखाई देने लगा है।

छठ, जिसे डाला छठ भी कहते हैं, हिन्दुओं का महत्त्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना की जाती है। मुख्य रूप से यह त्योहार बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में मनाया जाता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में भी छठ मनाई जाती है। इन इलाकों में रहने वाले लोग जहां भी गए हैं, स्थायी या अस्थायी रूप से, वहां भी अब इस त्योहार का समां खूब बंधने लगा है। तभी तो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि जगहों पर भी यह पर्व बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा है। इतना ही नहीं, देश के बाहर भी छठ मनाई जाती है। मॉरीशस, सूरीनाम के अलावा अन्य देशों में भी जाकर बसे लोग वहां इस त्योहार को उल्लास के साथ मनाते हैं।


चार दिन का त्योहार

छठ पर्व पर जप-तप का भी काफी महत्त्व है। जो महिलाएं परवैतिन (छठ) रखती हैं, उनके लिए यह पर्व कठोर तपस्या  की तरह है। लेकिन इसके बाद इससे मिली सुखद आध्यात्मिक अनुभूति का अलग ही आनंद है।

छठ व्रत एक कठिन तपस्या की तरह है, जो चार दिनों तक चलता है। जो महिला (परवैतिन) छठ करती है, उसे लगातार उपवास करना पड़ता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में उसे फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे सोना पड़ता है। सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं, पर जो छठ करने वाले होते हैं, वे ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर ही छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’ कहती हैं पूर्णिमा, जिन्होंने इस साल पहली बार छठ व्रत का उपवास रखा है, जिसको लेकर वह काफी उत्साही भी हैं।

पहले दिन परवैतिन किसी नदी या तालाब में स्नान कर खुद को पूजा के लिए तैयार करती है। इसे ‘नहा-खा’ कहते हैं। दूसरे दिन वह पूरे दिन का उपवास रखती है, जिसे शाम को तोड़ा जाता है। इस दौरान चावल की खीर, पूरी और केले का सेवन किया जाता है। परिवार के अलावा इसे दोस्तों और रिश्तेदारों को भी खिलाया जाता है। इसे ‘खरना’ कहते हैं। तीसरे दिन शाम को किसी नदी, तालाब या पानी के किसी अन्य स्नोत की ओर प्रस्थान किया जाता है, जहां पहले से ही खूबसूरत घाटों का निर्माण पूजा के उद्देश्य से किया जाता है। वहां शाम के डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य देकर सभी वापस घर आ जाते हैं। फिर चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और फिर प्रसाद बांटने और खाने का सिलसिला चल पड़ता है।

अर्घ्य देने का काम बांस के बने सूप या डगरे में किया जाता है, जिसमें जलते दीयों के साथ प्रसाद की तमाम चीजें, जैसे फल, ठेकुआ, कटे हुए गन्ने, पान के पत्ते, ड्राई फ्रूट्स आदि रखी होती हैं। ऋग्वेद के मंत्रों का जाप इस दौरान किया जाता है, खासकर गायत्री मंत्र का जाप। इस संबंध में एक खास बात यह भी है कि जो भी खाना या प्रसाद पकाया जाता है, उसे मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है। यदि यह संभव नहीं हो सके, तो प्रसाद बनाने के लिए खास नया चूल्हा मंगाया जाता है।


प्राचीन पर्व

‘छठ पर्व की चर्चा वेदों में है, जिन्हें हिन्दू धर्म का सबसे पुराना ग्रंथ माना जाता है। ऋग्वेद में इसके बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।’ कहते हैं पंडित सत्य प्रकाश शास्त्री। महाभारत में बताए गए उद्धरण के अनुसार, पांडवों की पत्नी द्रौपदी परिवार की खुशहाली के लिए सूर्य की आराधना करती थीं। इसके अलावा मान्यता यह भी है कि छठ पर्व की शुरुआत दानवीर कर्ण ने की थी। कार्तिक माह में दीपावली के बाद छठे दिन यह त्योहार मनाया जाता है। इसे सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है। इस पर्व में भगवान सूर्य से खुशहाली तो मांगी ही जाती है, साथ ही उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद भी दिया जाता है कि उनकी वजह से ही जिंदगी चल रही है। छठ पर्व की खासियत यह है कि इसमें पवित्रता और साफ-सफाई का अत्यधिक ख्याल रखा जाता है और इससे किसी तरह का भी समझौता नहीं किया जाता।

घाटों की खूबसूरती

नदी या तालाब के किनारे बने घाटों की साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान इस मौके पर रखा जाता है और उनको बड़ी ही खूबसूरती से सजाया जाता है। ‘रंग-बिरंगी झालरों, फूल-पत्तियों, केले के पेड़ों, रिबन, बांस आदि के साथ जलती-बुझती बत्तियों से पूरा नजारा किसी मेले से कम नहीं होता।’ कहते हैं सारथी सिंह, जो पिछले पांच सालों से छठ का उपवास रख रहे हैं। पूरे रास्ते में रोशनी की जाती है। घाटों पर पूजास्थल के इर्दगिर्द रखे गए हाथी, पक्षी आदि की आकृति में बने टेराकोटा लैंप्स की खूबसूरती भी देखते ही बनती है, जिनके चारों ओर बैठकर पूजा की जाती है। घाटों पर झिलमिलाते दीपों के बीच इस मौके पर आतिशबाजी भी थमने का नाम नहीं लेती। घाटों पर न सिर्फ पूजा करने वालों, बल्कि पूजा देखने वालों की भीड़ भी खूब होती है। सभी लोग एक-दूसरे की मदद के लिए मुस्तैद नजर आते हैं, भले ही उनका पूजा से सीधा संबंध न हो। इस दौरान आर्थिक, सामाजिक दीवारें ढहती नजर आती हैं।

सुर भी निराले: छठ के लोकगीत

‘यदि छठ के लोकगीतों को इस त्योहार का दर्पण कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।’ यह कहना है
शारदा सिन्हा का, जिनके गाए छठ के लोकगीत सबसे ज्यादा सुनाई देते हैं। वैसे अन्य गायकों के गीत भी खूब सुनाई देते हैं। ‘कांच ही बांस के बहंगिया..’, ‘चार कोना के पोखरवा..’, ‘केरवा जे फरे ला घवद में..’, ‘उग न सूरुज देव..’ आदि गीतों से पूरा माहौल गुंजायमान रहता है। साथ ही इससे पवित्रता का एहसास होता रहता है। इन लोकगीतों के माध्यम से इस त्योहार की पूरी छटा का बखान होता है। हालांकि लोकगीतों में अब बॉलीवुड की धुनों की झलक भी सुनाई देने लगी है, पर मूल गानों और उनकी धुनों का कोई मुकाबला नहीं है।

छठ पूजा देखने कहां जाएं

वैसे तो जहां भी छठ पूजा हो रही हो, वहीं इसका लुत्फ उठाया जा सकता है, पर कुछ जगह तो खास हैं ही।
स्थान - पटना (बिहार), जमशेदपुर (झारखंड), पूरा उत्तरी बिहार, इंडिया गेट (दिल्ली), नोएडा, जुहू (मुंबई)। यदि विदेशों में छठ का लुत्फ उठाना हो तो मॉरीशस की ओर रुख कर सकते हैं।

समय - अक्तूबर/नवंबर महीने में, दीपावली के छह दिन बाद, दो दिन के लिए।

ये है छठ का प्रसाद

खरना के दिन व्रतियों द्वारा पूरे दिन के उपवास के बाद चावल की खीर, पूरी और केले को प्रसाद के रूप में ग्रहण करके अपना उपवास तोड़ा जाता है। घर के सभी सदस्यों के अलावा इसे पड़ोसियों में भी बांटा जाता है।

मुख्य प्रसाद का वितरण अंतिम दिन के अर्घ्य के बाद घाट पर ही हो जाता है और फिर पूरे दिन इसका सेवन किया जाता है। मुख्य प्रसाद में केला, सेब, गन्ना आदि के साथ-साथ ठेकुआ खाया जाता है।

 

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