सिंह साहब
सिंह साहब से कोई पूछे कि उनकी आखिरी ख्वाहिश क्या है? जवाब देंगे-एमपी बनना। पांच साल से इसी आस में बंगले में पड़े थे। छोटे महलों (मंत्रियों के घर) में रहने का न्योता भी मिला। नहीं डिगे। इधर बंगले वाले...
सिंह साहब से कोई पूछे कि उनकी आखिरी ख्वाहिश क्या है? जवाब देंगे-एमपी बनना। पांच साल से इसी आस में बंगले में पड़े थे। छोटे महलों (मंत्रियों के घर) में रहने का न्योता भी मिला। नहीं डिगे। इधर बंगले वाले साहब से नाउम्मीद हो गए तो एक रात चुपके से राजमहल में चले गए। उनका पूरा सम्मान किया गया। बातचीत भी हुई। यहां भी दाल नहीं गली। सिंह साहब जिस सीट की जीत की गारंटी कर रहे थे वह दूसर दल के खाते की है। बुरा यह हुआ कि बात बंगलेवाले साहब के कान में भी जा चुकी है। उनकी हालत है इधर के न उधर के।ड्ढr ड्ढr बिहारीाीड्ढr भोजपुर के बिहारीाी लालटेन चाहते हैं। दावा है कि लालटेन मिल जाए तो उसकी लौ को हमेशा जलाए रखेंगे। उस दिन बिहारी जी लालटेन बाबा की कुटिया में बैठे थे। दिए जा रहे थे-बस, सिम्बल दिलवा दीजिए। हार हो गई तो राजनीति छोड़ देंगे। लालटेन बाबा मुस्कुराए। बोले-बच्चा। हार होने पर तो वैसे भी राजनीति छोड़नी पड़ेगी। कितनी बार हारगा। एसेम्बली में भी हार ही हुई थी। तभी किसी शिष्य ने बिहारीाी के कान में मंत्र फूंका-हे गुरुभाई। यह सीट तो किसी क्षत्राणी के लिए आरक्षित है। इस पर लोभ न कर। शांत पड़े बिहारीाी रौद्र रूप में आ गए। चीखे-देखते हैं कौन माई का लाल उसे संसद भेज देता है। इतना कहकर वे आश्रम से बाहर हो गए।ड्ढr ड्ढr उदारताड्ढr राजनीति में ऐसी उदारता कम ही देखने को मिलती है। तीन दलों में सीटों को लेकर मारामारी चल रही है। बड़े भाई को कहा जा रहा है कि आप कम लो। मंझला भाई को दूना चाहिए। छोटा क्यों पीछे रहेगा। उसे तिगुना चाहिए। बड़े भाई के सामने बड़ा संकट। अपना घर जलाकर दूसर घरों में रोशनी फैलाने जसी बात है। खर, बड़े ने छोटे को समझाया-दे दो। मंझले को पूरा दे दो। सिर्फ शर्त रख दो कि सीट के साथ कैंडीडेट भी देंगे। इस फामरूले से तीन सीटों की पेशकश की गई है। ये सीटें हैं नालंदा, कटिहार और सुपौल। मंझला भाई भला इस शर्त को क्यों मानने लगे। समझौता लटका हुआ है।