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कोलकाता में टाइपराइटर

ोलकाता में एक सरकारी विभाग में टाइपिस्ट के पद के लिए परीक्षाएं हुईं। उम्मीदवारों से यह बता दिया गया था कि परीक्षा के लिए सारे लोग अपना-अपना टाइपराइटर ले कर आएंगे। पांच सौ के आस-पास उम्मीदवार थे, वे...

 कोलकाता में टाइपराइटर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ोलकाता में एक सरकारी विभाग में टाइपिस्ट के पद के लिए परीक्षाएं हुईं। उम्मीदवारों से यह बता दिया गया था कि परीक्षा के लिए सारे लोग अपना-अपना टाइपराइटर ले कर आएंगे। पांच सौ के आस-पास उम्मीदवार थे, वे कहीं से मांग कर, कहीं से किराए पर लेकर एक-एक टाइप राइटर लादे हुए परीक्षा भवन में पहुंचे। इस तरह यह टाइपिंग के साथ-साथ वजन उठाने की परीक्षा भी हो गई। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे का पिछले कई साल से राज है और उनके राज करने की टेक्नोलॉजी तब से नहीं बदली है। इसलिए टेक्नोलॉजी के मामले में पश्चिम बंगाल भी उसी युग में है। दरअसल कार्ल माक्र्स ने उन्नीसवीं शताबदी में अपना काम किया था। माक्र्स के लेखक का केन्द्र बिन्दु औद्योगिक क्रांति है, इसलिए माक्र्सवादी उस युग की टेक्नोलॉजी से आगे नहीं बढ़ते। माक्र्स टाइपराटर के जमाने के विचारक थे, उनके विचार को लागू करना है तो टाइपराईटर को भी जिंदा रखना ही होगा। इस मामले में वे दक्षिणपंथियों के एकदम उलट हैं। वे अपने को विचारों से प्रगतिशील कहते हैं और टेक्नोलॉजी और ऐसी ही चीजों के बार में घोर पुरातनपंथी हैं। संघ परिवार के लोग या दूसर किस्म के दक्षिणपंथी अपने को प्राचीन ओर ऐतिहासिक विचारों का वाहक मानते हैं और टेक्नोलॉजी एकदम आधुनिक इस्तेमाल करते हैं। बीच में मध्यमार्गी हैं जो पुराने विचारों के साथ नई टेक्नोलॉजी ओर पुरानी टेक्नोलॉजी के साथ नए विचारों का मेल जोड़ते रहते हैं और अपने को समन्वयवादी कहते हैं। उन्होंने न सिर्फ टाइपराइटर को संजोया है, बल्कि पांच सौ टाइपराइटरों की नुमाइश भी जोड़ ली। वामपंथी टाइपराइटर, तीसरा मोर्चा, और ऐसे ही नायाब चीजों का संग्रह करते रहते हैं। शायद वे कंप्यूटर को या दूसरी नई जमाने की चीजों को साम्राज्यवादी मानते हों कि उनका विचार हो सकता है कि देर-सवेर अगर तीसर मोर्चे की सरकार बनी तो वे कंप्यूटरों के इस्तेमाल पर पुनर्विचार करं। वे प्रधानमंत्री को धमकी दे सकते हैं कि अगर सरकार ने कंप्यूटरों का इस्तेमाल बंद नहीं किया तो वे सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे। तीसर मोर्चे में जिस किस्म के प्रधानमंत्री हैं वे हो सकता है कि इससे पहले खुद ही सरकार से समर्थन वापस लें और तब उन्हें याद आए कि अर, हम तो खुद ही सरकार हैं। तीसर मोर्चे के प्रधानमंत्री पद के तमाम उम्मीदवारों का समर्थन वापसी का जबर्दस्त रिकॉर्ड है। उसके बाद वामपंथी अपने पुराने टाइपराइटर पर बैठेंगे जिसकी रिबन घिस चुकी होगी, और उस पर चौथे मोर्चे का घोषणा पत्र लिखेंगे। मोर्चे बदलते रहेंगे, रिबन और टाइपराइटर वही रहेंगे।

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