कुपोषण के शिकार हैं 46 फीसदी भारतीय बच्चे: अध्ययन
एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि आर्थिक प्रगति के बावजूद भारत में तीन साल तक की उम्र के कम से कम 46 फीसदी बच्चे अभी भी कुपोषण के शिकार हैं। अध्ययन में कहा गया कि कुपोषित बच्चे की इतनी बड़ी तादाद ने...
एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि आर्थिक प्रगति के बावजूद भारत में तीन साल तक की उम्र के कम से कम 46 फीसदी बच्चे अभी भी कुपोषण के शिकार हैं। अध्ययन में कहा गया कि कुपोषित बच्चे की इतनी बड़ी तादाद ने भारत को इस मामले में पूरी दुनिया में तीसरे स्थान पर ला खड़ा किया है।
ब्रिटेन में मौजूद इंस्टीटयूट ऑफ डिवेलपमेंट स्टडीज [आईडीएस] की रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत आर्थिक रूप से तो ताकतवर है, लेकिन पोषण के मामले में काफी कमजोर है। आईडीएस की ओर से किए गए अध्ययन में 20 से ज्यादा भारतीय विश्लेषकों ने हिस्सा लिया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तीन साल तक की उम्र के कम से कम 46 फीसदी बच्चे अभी भी कुपोषण के शिकार हैं।
आईडीएस के निदेशक लॉरेंस हड्डाड ने बताया कि यह भारत की शानदार आर्थिक प्रगति और यहां बरकरार कुपोषण के बीच विरोधाभास को दिखाता है जो काफी आश्चर्यजनक है। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक कुपोषण एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपने शरीर की प्राकतिक क्षमताओं, जैसे- वृद्धि, गर्भावस्था, सीखने की क्षमता, शारीरिक कार्य और बीमारियों से लड़ने और उनसे उबरने वाली क्षमताओं को बरकरार नहीं रख पाता।
रिपोर्ट बताती है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य के तहत भारत 2001 में किया गया वह वादा पूरा नहीं कर सकता जिसमें उसने कहा था कि कि 2015 तक वहां भूखे लोगों की तादाद में पचास फीसदी की कमी आ जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक भारत यह लक्ष्य 2043 से पहले नहीं पूरा कर सकता। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2004 के बाद हुई अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति के बावजूद वहां की सरकार लोगों के बुनियादी जीवन शैली में सुधार में भी नाकाम रही है।
आईडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक प्रगति ने करीब पांच करोड़ लोगों को सुखी-संपन्न बनाया है, लेकिन करीब 88 करोड़ लोग अभी भी प्रतिदिन दो अमेरिकी डॉलर से कम की दिहाड़ी पर जीने को मजबूर हैं। इनमें से ज्यादातर के हालात उप-सहारा अफ्रीका में रहने वाले लोगों से भी बदतर हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर रोज औसतन 6,000 बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। इनमें 2,000 से 3,000 बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं।
रिपोर्ट में इस बदतर हालात का जिम्मेवार नौकरशाहों की ओर से सरकारी कार्यक्रमों को लागू कराने में बरती जाने वाली ढिलाई को करार दिया गया है। इसमें कहा गया है कि करोड़ों भारतीय नौकरशाहों को इन योजनाओं को लागू नहीं करा पाने को लेकर जिम्मेवार नहीं करार दे पाते।