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खाली है आज भी मुकेश की जगह

हिन्दी फिल्मी गीतों को अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाने वाले पहले गायक मुकेश को गुजरे तैंतीस बरस हो चुके हैं. लेकिन आज भी उनकी जगह भरी नहीं जा सकी है। अपने छत्तीस साल के कैरियर में उन्होंने 1500 गाने...

खाली है आज भी मुकेश की जगह
एजेंसीWed, 26 Aug 2009 01:59 PM
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हिन्दी फिल्मी गीतों को अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाने वाले पहले गायक मुकेश को गुजरे तैंतीस बरस हो चुके हैं. लेकिन आज भी उनकी जगह भरी नहीं जा सकी है। अपने छत्तीस साल के कैरियर में उन्होंने 1500 गाने ही गाए लेकिन उनका लगभग हर गाना हिट रहा।

समीक्षक मुकेश के गानों को लेकर यह आलोचना करते रहे कि उनकी गायकी की रेंज सीमित है और उनकी आवाज दर्द भरे गानों के लिए ही उपयुक्त है. लेकिन यदि उनके गाए गीतों पर नजर डाली जाए तो यह जाहिर हो जाएगा कि उनकी इस आलोचना का कोई आधार नहीं है। मुकेश ने दिल की गहराइयों में उतर जाने वाली अपनी सधी हुई आवाज में न केवल प्रेम के दुख,दर्द, निराशा और विरह की गहनतम भावनाओं को अपना स्वर दिया, बल्कि हल्के, फुल्के अंदाज के हास्य, उमंग और मिलन के गीत भी गाए।

इस बात को लेकर भी उनकी आलोचना हुआ करती थी कि वह कठिन धुनों वाले और शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत नहीं गा सकते थे लेकिन यह बात भी पूरी तरह सही नहीं है। स्वर साम्राग्ई लता मंगेशकर का कहना है कि कुछ ही लोगों को (मुकेश भैया) की शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि के बारे में पता था। वह कहती हैं. मैं पूरे दावे के साथ नहीं कह सकती हूं. लेकिन मुङो लगता है कि यदि उन्हें मौका दिया जाता तो वह कठिन गाने भी गा सकते थे। मैं जानती हूं कि वह एक संगीत अध्यापक के मार्गदर्शन में अपने पुत्र नितिन के साथ नियमित रियाज किया करते थे।

फिल्म उद्योग में संगीतकारों का गायकों के लिए पसंदगी या नापसंदगी रखना जगजाहिर है। मुकेश भी इसके अपवाद नहीं थे। सज्जाद हुसैन, हुस्नलाल भगतराम, सी. रामचंद्र, ओ पी नैयर, सचिन देव बर्मन, मदन मोहन, आर.डी.बर्मन आदि कुछ ऐसे संगीतकार थे. जो मुकेश की आवाज को पसंद नहीं करते थे लेकिन यह भी तथ्य है कि इन संगीतकारों ने अपनी धुनों पर जब भी मुकेश को गाने का मौका दिया. गीत हमेशा हिट रहे और उन्हें खूब सराहा गया।

मुकेश चंद माथुर का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता लाला जोरावर चंद माथुर एक इंजीनियर थे और वह चाहते थे कि मुकेश उनके नक्शे कदम पर चलें. लेकिन वह अपने जमाने के प्रसिद्ध गायक अभिनेता कुंदनलाल सहगल के प्रशंसक थे और उन्हीं की तरह गायक अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। लालाजी ने मुकेश की बहन सुंदर प्यारी को संगीत की शिक्षा देने के लिए एक शिक्षक रखा था। जब भी वह उनकी बहन को संगीत सिखाने घर आया करते थे, मुकेश पास के कमरे में बैठकर सुना करते थे और स्कूल में सहगल के अंदाज में गीत गाकर अपने साथियों का मनोरंजन किया करते थे। इस दौरान रोशन नागरथ. मशहूर संगीतकार रोशन, हारमोनियम पर उनका साथ दिया करते थे।

 गीत-संगीत में रमे मुकेश ने किसी तरह दसवीं तक पढाई करने के बाद स्कूल छोड दिया और दिल्ली लोक निर्माण विभाग में सहायक सर्वेयर की नौकरी कर ली. जहां उन्होंने सात महीने तक काम किया। इसी दौरान अपनी बहन की शादी में गीत गाते समय उनके दूर के रिश्तेदार मशहूर अभिनेता मोतीलाल ने उनकी आवाज सुनी और प्रभावित होकर वह उन्हें 1940 में बम्बई.अब मुम्बई. ले आए और उन्हें अपने साथ रखकर पंडित जगन्नाथ प्रसाद से संगीत सिखाने का भी प्रबंध किया। इसी दौरान खूबसूरत मुकेश को एक हिन्दी फिल्म (निदरेष)1941. में अभिनेता बनने का मौका मिल गया, जिसमें उन्होंने अभिनेता-गायक के रूप में संगीतकार अशोक घोष के निर्देशन मेंअपना पहला गीत.दिल ही बुझ हुआ हो तो.भी गाया। इस फिल्म में उनकी नायिका नलिनी जयवंत थीं, जिनके साथ उन्होंने दो युगल गीत भी गाए। इनमें एक गीत था" तुम्हीं ने मुझको प्रेम सिखाया" यह फिल्म फ्लाप हो गई और मुकेश के अभिनेता गायक बनने की उम्मीदों को तगडा झटका लगा। इसके बाद मुकेश ने "दुख.सुख"और "आदाब अर्ज" जैसी कुछ और फिल्मों में भी काम किया। .दुख.सुख. में उन्होंने विवाहित नायिका सितारा देवी के खलनायकी के अंदाज वाले प्रेमी की भूमिका निभाई जबकि वह नलिनी जयवंत और करण दीवान के साथ दिखाई दिए। इस फिल्म में वह अमीर वारिस की भूमिका निभाई जो एक माली की बेटी से शादी करता है।

इन असफलताओं से मुकेश का कैरियर डगमगाने लगा था. तभी मोतीलाल प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास के पास उन्हें लेकर गए और उनसे अनुरोध किया कि वह अपनी फिल्म में मुकेश से कोई गीत गवाएं। अनिल विश्वास ने इस घटना का अपने शब्दों में इस तरह जिक्र किया है . मेरे मित्र स्वर्गीय मोतीलाल मुकेश को मेरे पास लाए। मुझे सन याद नहीं है। उन्होंने मुझसे कहा यह लड़का है  इसे मैं आपके पास छोडे़ जा रहा हूं। यह गाता है। मैं जानता हूं यह गाना गा सकता है, मैंने इसे सुना है।

अनिल विश्वास का कहना था, मुकेश के पास आवाज तो थी, लेकिन प्रशिक्षण नहीं था। वह अपनी सहज प्रतिभा से गाता था, लेकिन मींड और मुरकियां नहीं लगा पाता था। उसकी स्वरों की अदायगी गजब की थी। मैं उसकी आवाज के जादू में गिरफ्तार हो गया। मैंने उसके सुर को तराशना शुरु कर दिया, लेकिन मुकेश के लिए मेरी तकनीक को समझ पाना मुश्किल था, जो गायन की शास्त्रीय और बंगाली शैली का मिÞश्रण थी। कुछ माह बाद मैंने उसे एक गीत.सांझ भई बंजारे. गाने को दिया लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वह मेरे मन मुताबिक नहीं गा पाया तो मैंने लगभग हार मान ली। इस बीच. फिल्म के निर्माता महबूब खान गाने को जल्द रिकार्ड करने के लिए दबाव डाल रहे थे। इसलिए मुझे ही गीत गाकर काम पूरा करने की जिम्मेदारी लेनी पडी। मैं अपनी फिल्मों में यदा.कदा गीत गाता था। गीत को सुनने के बाद मुकेश ने जो बात कही,उसने मेरे दिल को छू लिया। उसने कहा आप से अच्छा इसे कौन गा सकता है। लेकिन दादा इसका मतलब है कि हमें आपके गीत गाने का मौका कभी नहीं मिलेगा।  उसने मुझसे ऐसे असहाय बच्चे की तरह यह बात कही जिसका खिलौना छीन लिया गया हो।

अनिल विश्वास ने बताया था कि उस रात वह सो नहीं सके और खुद से सवाल करते रहे कि यदि वह स्वयं गाने गाते रहे तो उन युवा गायकों का क्या होगा.जिनमें प्रतिभा और शालीनता है। क्या यह मुकेश या उस जैसे गाने की अभिलाषा रखने वाले लडकों के लिए उचित होगा। वह तभी सो पाए जब उन्होंने पक्का फैसला कर लिया कि आगे से वह व्यावसायिक रूप से गायन नहीं करेंगे। मुकेश को कामयाबी मिली निर्माता मजहर खान की फिल्म पहली नजर(1945) के गीत दिल जलता है तो जलने दे.से जो संयोग से मोतीलाल पर ही फिल्माया गया था। अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में डा.सफदर.आह सीतापुरी की इस गजल को मुकेश ने सहगल की शैली में ऐसी पुरकशिश आवाज में गाया कि लोगों को भ्रम हो जाता था कि इसके गायक सहगल हैं। और तो और खुद सहगल ने भी इस गजल को सुनने के बाद कहा था अजीब बात है। मुझे याद नहीं आता कि मैंने कभी यह गीत गाया है । इसी गीत को सुनने के बाद सहगल ने मुकेश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।

हालांकि इस गीत ने मुकेश को गायक के रूप में पहचान दिलाई लेकिन उन्हें यह कामयाबी इतनी आसानी से नहीं मिली। फिल्म जब रिलीज के लिए तैयार थी तब वितरकों और समालोचकों ने इसे देखने के बाद कहा कि गीत हीरो की छवि पर फिट नहीं बैठता है। उन्होंने इस गीत को फिल्म से हटाने का सुझाव दिया। यह सुनकर मुकेश की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने निर्माता मजहर खान से ही कोई सुझाव देने का अनुरोध किया। इस पर मजहर खान ने कहा कि यह गीत सिर्फ पहले शो के लिए फिल्म में रखा जाएगा। इस बारे अंतिम निर्णय दर्शकों की प्रतिक्रिया देखने के बाद ही लिया जाएगा।

दर्शकों से इस गाने को जब जबरदस्त तारीफ मिली और लोग यह गीत गाते हुए सिनेमाघर से निकलने लगे तब मजहर खान ने कहा मेरी बात याद रखना। एक दिन आएगा जब कोई मेरी फिल्म को याद नहीं रखेगा लेकिन तुम्हारा गीत हमेशा याद रखा जाएगा। मुकेश को लोकप्रियता सहगल की शैली में गाए गीत से मिली लेकिन मुकेश को (मुकेश) बनाने में किसका हाथ हैष इस बारे में कुछ विवाद है। संगीतकार अनिल विश्वास और नौशाद इस बात का श्रेय लेते थे। अनिल विश्वास कहा करते थे, मुकेश दूसरा कुंदनलाल सहगल बनने की चाह लिए मेरे पास आया था। उसने सहगल की आवाज में नौशाद का रिकार्ड सुना था, जो शाहजहां फिल्म का गीत" जब दिल ही टूट गया" था। इसलिए मैंने उससे पहली नजर में "दिल जलता है तो जलने दे" सहगल के अंदाज में गवाया। फिर मैंने मुकेश से कहा कि हमने यह बात साबित कर दी है कि हम एक और सहगल बना सकते हैं। पर अब यह साबित करना है कि मुकेश वास्तविक मुकेश है, सहगल की नकल भर नहीं है। मैंने मुकेश को सहगल के रूप में पेश किया और मैंने ही."अनोखा प्यार" में उसकी विशिष्ट आवाज में "जीवन सपना टूट गया" और "अब याद न कर भूल जा ऐ दिल वो फसाना."गवाकर उसे सहगल के प्रभाव से बाहर निकाला।

दूसरी तरफ नौशाद की दलील थी कि उन्होंने दिलीप कुमार के लिए .मेला .और .अंदाज.में मुकेश से पहले पहल उनकी विशिष्ट शैली में गवाया था। नौशाद ने बताते थे . गायक बनने के प्रारंभिक दौर में मुकेश को शराब पीने की बडी लत थी। एक दिन मैंने उन्हें कारदार स्टूडियो में दिन के समय नशे की हालत में पकड लिया। मैंने उनसे कहा मुकेशचंद तुम "दिल जलता है"से साबित कर चुके हो कि तुम सहगल बन सकते हो लेकिन अब क्या तुम साबित करना चाहते हो कि तुम पीने के मामले में भी सहगल को पछाड सकते हो। यह सुनकर मुकेश की आंखों में आंसू आ गए। मैंने कहा तुम्हारी अपनी अनूठी आवाज है तुम्हें अपनी गायकी को साबित करने के लिए सहगल या किसी दूसरे गायक की आवाज की नकल करने की जरूरत नहीं है।
राजकपूर से मुकेश के मिलने की कहानी भी बडी दिलचस्प है 1944 या 1945 की बात है. उस समय राजकपूर सहायक निर्देशक हुआ करते थे। रंजीत स्टूडियो में जयंत देसाई की फिल्म"बंसरी" के सेट पर एक खूबसूरत नौजवान किन्हीं खयालों में खोया हुआ पियानो पर एक गीत गा रहा था। वहां से गुजर रहे राजकपूर उस गीत को सुनकर कुछ देर के लिए ठिठक गए। पूछने पर पता लगा कि वह युवक मुकेश है। आगे चलकर दोनों के बीच घनिष्ठ मित्रता हो गई और मुकेश आखिरी दम तक राजकपूर की आवाज बने रहे।

यह भी दिलचस्प है कि राजकपूर की आवाज बनने से पहले मुकेश ने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार कई हिट गाने गाए थे। मुकेश की गायकी के अनन्य प्रशंसक संगीतकार सलिल चौधरी उनकी तारीफ करते नहीं थकते थे। वह कहा करते थे, मुकेश के होठों से निकला हर शब्द मोती है। जिस तरह मुकेश ने गाने गाए,उस तरह कोई भी नहीं गा सकता,सही शैली, उतार.चढाव और लय के साथ। उनका स्वर वैशिष्ट अलौकिक था। इस स्वर वैशिष्ट का लाभ उठाने के लिए मेरा स्वरबद्ध किया गया हर गीत एक तात्कालिक आकर्षण था ।
 
सलिल दा बताते थे, जिस क्षण मैंने "सुहाना सफर" की रिकार्डिंग की, उसी समय मैं जान गया था कि मुकेश के स्वर ने "मधुमती" के इस गीत के अल्हड भाव को आत्मसात कर लिया है। मैं "जागते रहो" के "जिंदगी ख्वाब है" और "चार दीवारी" के "कैसे मनाऊं पियवा" को भी इस गीत से कमतर नहीं मानता हूं। बाद के वषरें में मुकेश ने "आनन्द" के .कहीं दूर जब दिन ढल जाए में भावनाओं की असीम गहराई को अपने मधुर स्वर से अभिव्यक्ति दी थी। इस गीत को मैं मुकेश के गाए गीतों में सर्वÞश्रेष्ठ मानता हूं ।

मुकेश के निधन पर दिलीप कुमार ने कहा था,हमने एक बेजोड़ गायक खो दिया,जिसने ज्वलंत नक्शे कदम छोडा है। मुझे याद है कि मैं फिल्मों पर फिल्में ठुकराता चला गया था और लगभग एक साल तक मुझे कोई भूमिका नहीं मिली थी। मुझे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था तभी निर्देशक एस यू सन्नी ने "मेला" फिल्म में काम करने के लिए मुङो बुलाया और मुङो.मेरा दिल तोडने वाले. गीत सुनाया। इस गीत में मुकेश की आवाज सुनकर मैं इतना अभिभूत हो गया कि मैंने उसी समय "मेला"साइन कर ली। मैंने अपनी जिन्दगी में पहली और आखिरी बार ऐसा किया था। मुकेश की तारीफ करते हुए दिलीप कुमार कहते चले गए थे, मैं कैसे भूल सकता हूं कि मुकेश ने "अंदाज" में मेरे लिए क्या काम किया। नौशाद ने मेरे लिए मुकेश से" हम आज कहीं दिल खो बैठे" तू कहे अगर जीवन भर, टूटे ना दिल टूटे ना, झूम झूम के नाचो आज, जैसे सदाबहार कालजई गीत गवाए थे।

उन्होंने बताया था,आप यह सुनकर हैरान होंगे लेकिन पहली बार जब मुकेश के गाए ए चारों गाने मुङो सुनाए गए तो मुङो लगा कि ए बहुत सपाट हैं। मैं इसी फिल्म में लता मंगेशकर के उठाए जा उनके सितम और तोड दिया दिल मेरा, जैसा गायन चाहता था लेकिन नौशाद ने मुझसे कहा कि मुकेश का सपाट गायन ही उनकी ताकत है . इंतजार करो और इसका असर देखो। और आप देखिए कि फिल्म में पियानो पर मैंने जो गाया, वह मुकेश के साथ पूरा देश गा रहा था। उनकी इस तरह की सपाट गायकी की क्षमता मेरे लिए नई थी।

दिलीप कुमार बताते हैं, वास्तव में मैं मुकेश की आवाज की मोहब्बत में उसी समय गिरफ्तार हो गया था, जब अनिल विश्वास ने "अनोखा प्यार"1947, में मेरे लिए "अब याद न कर भूल जा दिल वो फसाना" और "जीवन सपना टूट गया" जैसे प्यारे गीत गवाए थे। इन सभी गीतों में आप मुकेश का स्वर वैशिष्ट पाएंगे। उनकी रेंज भले ही सीमित रही हो लेकिन उसी रेंज के भीतर उनकी गायकी बेमिसाल थी. यह मैंने उस समय भी देखा, जब उन्होंने मेरे लिए'यहूदी" में "ए मेरा दीवानापन है" गाया था।

मुकेश ने "आवारा" फिल्म की जबरदस्त कामयाबी के बाद एक फिर अभिनेता बनने की कोशिश की और 1953 में "माशूका" और 1956 में अपने प्रोडक्शन के तले बनाई फिल्म.अनुराग. में नायक की भूमिकाएं निभाईं लेकिन इन फिल्मों के नाकाम होने पर उन्होंने अपना पूरा ध्यान गायकी की तरफ देना शुरु कर दिया।

मुकेश को अपने तीन दशक से भी अधिक लंबे कैरियर में चार बार सर्वÞश्रेष्ठ गायक का फिल्म फेयर पुरस्कार प्रदान किया। वर्ष 1959 में रिलीज फिल्म, "अनाडी"के .सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी, 1970 में 'पहचान के.सबसे बडा नादान" 1972 में "जय बोलो बेईमान की"1976 में "कभी.कभी" के "कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है और 1974 में "रजनीगंधा" के कई बार यूं भी देखा है के लिए उन्हें ये पुरस्कार मिले ।

रजनीगंधा के इसी गीत के लिए उन्हें सर्वÞश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी दिया गया। मुकेश के गाए गीतों की संवदेनशीलता उनकी निजी जिन्दगी में दिखाई देती थी। वह एक सरल ह्दय के संवदेशनशील इंसान थे, जो दूसरों के दुख-दर्द को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास करते थे। दूसरों के प्रति हमदर्दी और संवेदनशीलता की इस भावना को प्रदर्शित करने वाला एक वाकया है। एक बार एक लड़की बीमार हो गई। उसने अपनी मां से कहा कि अगर मुकेश उन्हें कोई गाना गाकर सुनाएं तो वह ठीक हो सकती है। मां ने जवाब दिया कि मुकेश बहुत बडे़ गायक हैं, भला उनके पास तुम्हारे लिए कहां समय है। अगर वह आते भी हैं तो इसके लिए काफी पैसे लेंगे। इस बीच उस लड़की तबीयत लगातार खराब होती चली गई तब उसके डाक्टर ने मुकेश को उस लड़की की बीमारी के बारे में बताया।

मुकेश ने इस पर तुरन्त कहा डाक्टर साहब आपको तो पहले ही आ जाना चाहिए था। खैर अभी देर नहीं हुई है। मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूं। वह लडकी से मिलने अस्पताल गए और उसके गाना गाकर सुनाया और इसके लिए उन्होंने कोई पैसा भी नहीं लिया। लड़की को खुश देखकर मुकेश ने कहा यह लड़की जितनी खुश है. उससे ज्यादा खुशी मुझे मिली है।

राजकपूर की फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम्" के गाने"चंचल निर्मल शीतल" की रिकार्डिंग पूरी करने के बाद वह अमरीका में एक कंसर्ट में भाग लेने के लिए चले गए जहां 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके अनन्य मित्र राजकपूर को जब उनकी मौत की खबर मिली तो उनके मुंह से बरबस निकल गया, मुकेश के जाने से मेरी आवाज और आत्मा,दोनों चली गई।

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