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दीवार में अनारकली

निगोड़े बचपन में मामू अक्सर एक जुम्ला कहते थे- ‘जिस दुशाले पर नजर डाली वह कम्बल हो गया।’ यानी सच्चाई का ढक्कन हटा कर सूंघो तो चुनाव का हर इत्रे हिना फिनायल जसी बू मारता है। भ्रष्टाचार की कड़ाही में...

 दीवार में अनारकली
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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निगोड़े बचपन में मामू अक्सर एक जुम्ला कहते थे- ‘जिस दुशाले पर नजर डाली वह कम्बल हो गया।’ यानी सच्चाई का ढक्कन हटा कर सूंघो तो चुनाव का हर इत्रे हिना फिनायल जसी बू मारता है। भ्रष्टाचार की कड़ाही में अपराधों का तेल भर कर, आश्वासनों के उपले जलाकर, जीत के मालपुए तलने का जुगाड़। जिसे देखिए वही पर्चा दाखिल करके मुगल-ए-आाम जसा पगड़ी में पंख खोंसे गुलाब सूंघ रहा है। मई-ाून की गर्म लू वाले मौसम में पछाड़ खा कर, जमानत जब्त करा कर, अनारकली जसा दीवार में चुन दिया जाएगा। पर जनाबो, यह हाल सिर्फ आमची इंडिया का ही नहीं है। थोड़ी बगली काटो और जापान की जानिब देखो। उनके अंगने में तो अपन से भी बदतर हाल है। न्यूज मिली है कि जापान में सितम्बर में आम चुनाव हैं। पब्लिक एक दूसर का माथा पीट रही है। किसे वोट दें, किसे न दें। उधर भी सारी पार्टियां भ्रष्टाचार के शीर में डूबी जलेबियां हुई पड़ी हैं। एक है लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी)। एक हैं निशिमत्सु ..20 लाख डॉलर का घपला। बालों की काली हेयर डाई पार्टी ने मुंह पर पोत ली। पब्लिक थुड़ी-थुड़ी कर रही है। दूसरी है डीपीजे (डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान)। आर्थिक मंदी के चलते वह भी भ्रष्टाचार के तंबू में घुस गई है। वोटर किसे अम्मी कहे, किसे अब्बा? सीन कट..बैक टू इंडिया। आप जानो जनाबो, गिलास चाहे चाय का हो, चाहे दारू का, हमेशा नीचे से पकड़ा जाता है। गिलास की तल्ली यानी छुटभैय्ये। छुटभय्ये मतलब लट्ठ-कट्टा-चक्कू धारी। इन्हें खुश करना आसान नहीं। बाप को बथुआ नसीब नहीं, बेटे को बिरियानी चाहिए। काहे से कि दंगा फसाद और लाठी लप-झप में ताकत खर्च होती है। तगड़ा खाना-पीना चाहिए। कहते हैं कि जूते में घुसे कॉक्रोच का पता पांव डालने पर ही चलता है। पब्लिक की आंखें फटी रह जाती हैं कि फलां पार्टी ने दारू की नदियां बहा दीं। तगड़ा खर्च होना ही था। आया कहां से? कौन से सिंघाड़े बेचे थे? तगड़ा खर्च माने तगड़ा भ्रष्टाचार उर्फ तगड़ी देश सेवा। चंद रो का सर्कस यह सब। बाद में खाली मैदान..तंबू के गड्ढे..हाथी की लीद। यही चुनाव की सुपर हिट ‘मुगल-ए-आजम’ फिल्म है। पब्लिक के लिए सब धान बाइस पसेरी। किसी की बने, सरकार बनने से मतलब। बकौल अकबर इलाहाबादी- ‘हमें सेहत से मतलब है, बनफशा हो या तुलसी हो।’ दैट्स ऑल। जाओ लंगोट लगाओ..ताल ठोंको। ‘छल कबड्डी ताल-ताल।’

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