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नोटों की बरसात

ाय हो-नोट बांटने वालों की। ऐसे एक्िटव एमपी ने सरआम पांच-पांच सौ के हर-हर नोट उछाल कर उस जनता की ओर फेंके जिसे उसने पिछले पांच साल तक शक्ल भी नहीं दिखाई थी। पर वे पांच-पांच सौ रुपए पाकर खुश हो गए।...

 नोटों की बरसात
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ाय हो-नोट बांटने वालों की। ऐसे एक्िटव एमपी ने सरआम पांच-पांच सौ के हर-हर नोट उछाल कर उस जनता की ओर फेंके जिसे उसने पिछले पांच साल तक शक्ल भी नहीं दिखाई थी। पर वे पांच-पांच सौ रुपए पाकर खुश हो गए। नकदी का जादू तमाम पुराने से पुराना गुस्सा काफूर कर देता है। एक ने तो यहां तक कहा, ‘कितना अच्छा होता अगर हर साल इलेक्शन होते।’ उधर एक और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की मौजूदगी में खुले आम लोगों को सौ-सौ रुपए बांटे गए। लोग भी बहुत मजे से यह रकम स्वीकार कर रहे थे। देने वाला दे तो लेने वाला क्यों न ले। इस पार्टी के कड़कदार, कठोर राष्ट्रीय अध्यक्ष ने घटना को गलत नहीं बताया। राजनीति में गलत और सही की कसौटी एडास्टेबल होती है। हर बार इसके लिए कायदे, कानून, नियम, उपनियम, आधार, विचार अपनी सुविधानुसार बदल जाते हैं। उन्होंने तो यह भी कह दिया कि होली के मौसम में, चुनाव की आहट में ऐसी सप्रेम भेंट देने में क्या बुराई हो सकती है। नोटों की माया अपरम्पार है। कोई नोट छापता है, कोई बांटता है, कोई लहराता है, कोई डकारता है, कोई दबाता है, कोई बहाता है, कोई पकाता है, कोई छिपाता है, कोई सीने से लगाकर सो जाता है। मगर नोटों का आकर्षण है कि कभी कम नहीं होता। इस निन्यानवे की बीमारी वाले इसी उधेड़बुन में जिन्दगी गुजार देते हैं। कई लोग बस नोटों के सहार ही अपने काम निकलवाते हैं। नोटों की माया ने कई बार जलवा दिखाया है। इसे लेकर कई बार स्टिंग ऑपरशन हुए हैं। पार्लियामेंट में कथित रूप से ऑफर किए गए नोटों की गड्डियां दिखाई गईं। नोटों के सहार किए गए दलबदल से कई मुख्यमंत्री, भूतपूर्व सीएम हो गए और कई नेताओं को राजगद्दी मिल गई। कहते हैं- मतदान के वक्त नोटों से ईमान खरीदना, अब आम बात हो गई है। कभी कल्पना भी नहीं की थी कि दान का भी दाम लगेगा। पिछले दिनों कोलकाता में जो हुआ, उसे भुलाया नहीं जा सकता। सचमुच आसमान से नोटों की बरसात हुई। इन्कम टैक्स वालों ने एक अमीराादे के घर रड की तो उसने अपनी नकदी से भर बोर बालकनी से नीचे उड़ेलने शुरू कर दिए। बस हाारों लोगों ने जी भरकर लूट के माल को समेट लिया। यह एक अनूठा अवसर था, भूखे की भूख मिट गई, पढ़ने वालों ने किताबें खरीदीं, किरायेदार ने किराया अदा किया, पियक्कड़ों को भी मजा आया। आखिर इन्कम टैक्स वाले हर रो ऐसे छापे क्यों नहीं मारते। अगर ऐसे छापे मार जाते हैं तो, हर रो नोटों की बरसात होगी और काली रकम अपने आप सफेदपोशों के हाथ पहुंचकर पवित्र हो जाएगी।

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