मनमोहक प्राणी, पांडा
पांडा एक बहुत सुंदर जीव है। देखने में यह जानवर टैडी बीयर जैसे आकर्षक खिलौने जैसा लगता है। यह एक स्तनपायी प्राणी है। इसे जायन्ट पांडा भी कहते हैं। पांडा पहले संसार के कई भागों में होता था। लेकिन आज यह...
पांडा एक बहुत सुंदर जीव है। देखने में यह जानवर टैडी बीयर जैसे आकर्षक खिलौने जैसा लगता है। यह एक स्तनपायी प्राणी है। इसे जायन्ट पांडा भी कहते हैं। पांडा पहले संसार के कई भागों में होता था। लेकिन आज यह केवल मध्य चीन के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है।
पहाड़ों में ये समुद्रतल से 4 हजार फुट की ऊंचाई से 11 हजार फुट की ऊंचाई तक रहते हैं। सर्दियों में निचले इलाकों में आ जाते हैं, जहां भोजन आसानी से मिल सके। ये ज्यादातर बांस के जंगलों में ही रहते हैं।
इनका शरीर काले और सफेद रंग के फर से ढका होता है, इसलिए देखने में यह कुछ कुछ भालू के समान नजर आता है। इनकी आंखों पर हमेशा काले रंग का घेरा होता है। इसके अलावा इनके कंधे, पैर और कानों पर भी काला रंग होता है।
जायन्ट पांडा और रेड पांडा में कुछ समानताएं होती हैं, लेकिन देखने में ये एक दूसरे से एकदम भिन्न होते हैं। जायन्ट पांडा का चेहरा हमेशा गोल होता है, जबकि रेड पांडा का चेहरा इससे अलग होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भालू की एक उप प्रजाति का प्राणी है।
तुमने ज्योग्राफी चैनल पर और चित्रों में इन्हें जरूर देखा होगा। एक वयस्क पांडा 1.5 मीटर लम्बा तथा 75 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। नर पांडा का वजन 160 किलोग्राम तक हो सकता है। मादा पांडा का आकार एवं वजन नर पांडा से 10 से 20 प्रतिशत तक कम होता है।
इनका प्रिय भोजन बांस का पौधा होता है। खुराक में 99 प्रतिशत तक यह बांस ही खाते हैं। एक दिन में एक पांडा 10 से 15 किलोग्राम तक बांस खा सकता है। बर्फबारी के दिनों में जब बांस के वृक्ष बर्फ से ढक जाते हैं तो ये उनकी पत्तियां खाकर गुजारा करते हैं।
मादा पांडा दो वर्ष में एक बार एक नन्हे पांडा को जन्म देती है। नवजात पांडा का वजन मात्र सौ ग्राम के करीब होता है तथा यह गुलाबी रंग का होता है। 4 से 6 सप्ताह की उम्र में इनकी आंखें खुलती हैं। 5-6 माह में भोजन खाने योग्य हो जाते है। मादा पांडा केवल छह माह तक उसकी देखभाल करती है। उसके बाद उसे आत्मनिर्भर बनना पड़ता है।
यह प्राणी मांद नहीं बनाते और अक्सर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भटकते रहते हैं। प्राय: यह खोखले वृक्ष या चट्टानों की बड़ी दरारों में रहते हैं। ये छोटे पेड़ों पर आसानी से चढ़ सकते हैं। जानते हो, देखने में मनमोहक इस प्राणी पर आज लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसका एक बडम कारण बांस की कटाई है। दरअसल बांस की खुराक के बिना यह अधिक समय जीवित नहीं रह सकता। आज संसार में इनकी संख्या लगभग डेढ़ हजार बची है।
चीन सरकार ने इनके संरक्षण के लिए कुल 12 प्राकृतिक आवास स्थली बना रखी हैं। जहां अधिकतर बांस के वन हैं। दुनिया के कुछ खास चिडि़याघरों में भी इन्हें देखा जा सकता है।