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भारी मन से साहित्य अकादमी सम्मान लेने से मना कियाः नीलाभ

पुरस्कारों के लिए जोड़ तोड़ और लॉबिंग के इस दौर में साहित्य एवं संस्कृति की नगरी इलाहाबाद के साहित्यकार-आलोचक नीलाभ ने साहित्य अकादमी जैसे सम्मान को लेने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि पुरस्कार...

भारी मन से साहित्य अकादमी सम्मान लेने से मना कियाः नीलाभ
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 01 Jul 2009 10:47 PM
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पुरस्कारों के लिए जोड़ तोड़ और लॉबिंग के इस दौर में साहित्य एवं संस्कृति की नगरी इलाहाबाद के साहित्यकार-आलोचक नीलाभ ने साहित्य अकादमी जैसे सम्मान को लेने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि पुरस्कार लॉबिंग के जरिए मिल रहे हैं।

पुरस्कार अस्वीकार करने के बाद पहली बार इलाहाबाद आए नीलाभ ने हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा कि जिस पुस्तक की मूल कृति के लिए उसकी लेखिका अरुंधती राय ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लेने से मना कर दिया हो, उसके अनुवाद का पुरस्कार लेने का क्या औचित्य है। पुरस्कारों को लेकर नीलाभ के मन में गहरी टीस है।

उन्होंने जो कारण बताए हैं उनमें पहला उनका पुरस्कार विरोधी होना है। उनका मानना है कि यह मध्य युगीन संस्कृति का प्रतीक है। नीलाभ ने बताया-पुरस्कार जोड़ तोड़ से मिला करते हैं। इस काम का मैने हर समय विरोध किया है। राजनीतिक कारणों से पुरस्कार मिलते भी हैं और उससे नाम कटते भी हैं।

पुरस्कार का महत्व बढ़ने से साहित्य एवं संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इन पुरस्कारों ने लेखकों को एक-दूसरे का दुश्मन बना दिया है। नीलाभ ने अपने पत्र में जो दूसरा कारण गिनाया है उसमें हाल के वर्षो में अकादमी की अपनी विश्वसनियता खोना रहा है। उनका कहना है कि इनके खुद के पदाधिकारियों के चयन पर ही उँगुली उठ रही है तो इनके चुने लोग कैसे सही होंगे।

तीसरा कारण बताते हुए नीलाभ ने कहा कि जिस पुस्तक मामूली चीजों का देवता को पुरस्कार योग्य पाया गया है। उसी पुस्तक द गॉड स्माल थिंक्स की मूल लेखिका अरुंधति राय ने साहित्य अकादमी सम्मान लेने से मना कर दिया था। तब उसके अनुवाद को सम्मान स्वीकार करने का औचित्य समझ से परे है।

साहित्य अकादमी की ओर से पुरस्कारों की घोषणा के बाद उन्होंने पहले तो उसको स्वीकार करने का मन बनाया। परन्तु उन्होंने बाद में विचार करने के बाद इस पुरस्कार को अस्वीकार करने के कारणों के साथ एक पत्र साहित्य अकादमी के सचिव ए. कृष्णमूर्ति को भेजा है।

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