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टेंशन लेने का नहीं, देने का

पंद्रह वर्ष का मोनू पिछले काफी समय से गुमसुम रह रहा है। पेरेंटस समझ नहीं पा रहे हैं कि हमेशा खुश रहने वाला उनका बेटा आजकल उदास क्यों रहता है। न तो उसे खाने में कोई रुचि रह गई है और न ही वह आजकल टीवी...

टेंशन लेने का नहीं, देने का
एजेंसीSun, 28 Jun 2009 02:16 PM
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पंद्रह वर्ष का मोनू पिछले काफी समय से गुमसुम रह रहा है। पेरेंटस समझ नहीं पा रहे हैं कि हमेशा खुश रहने वाला उनका बेटा आजकल उदास क्यों रहता है। न तो उसे खाने में कोई रुचि रह गई है और न ही वह आजकल टीवी के प्रोग्राम इंज्वॉय करता है। हारकर उसके पेरेंटस उसे फैमली डॉक्टर के पास ले गए। फैमली डॉक्टर ने जब उसमें कोई बीमारी नहीं पाया तो उसे किसी बढिया मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी। बाद में मनोचिकित्सक ने जांच में पाया कि मोनू बोर्ड की परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं लाने के कारण अवसाद ग्रस्त था। कई राउंड की सलाह के बाद मोनू स्वस्थ हो पाया। इसी तरह ग्रेटर कैलाश में रहने वाली सविता अपने बेटे के उदासी से बहुत परेशान थी। रोहित पढ़ने में काफी अच्छा था और हमेशा अच्छे नंबर से पास भी हो रहा था। घर में ऐसी कोई कमी भी नहीं थी जिससे लगे कि उसके बेटे की किसी जरूरत को पूरा नहीं किया जा पा रहा हो। बातचीत करने पर भी रोहित कुछ बताने को तैयार नहीं होता था। हारकर लोग उसे एक मनोचिकित्सक के पास ले गए जहां पता चला कि रोहित की किसी लड़की से दोस्ती थी लेकिन लड़की ने उसे छोड़कर किसी और लड़के से नजदीकियां बढ़ा ली थी। इससे रोहित डिप्रेशन में आ गया।

मनोचिकित्सकों का मानना है कि आजकल के बच्चों को भी बडमें के समान तनाव रहता है। कभी गर्लफ्रेंड से लड़ाई तो कभी ब्वॉयफ्रेंड से बिछुड़ने का दुख तनाव का कारण बनता है। साथी का परीक्षा में ज्यादा नंबरों से पास होना भी डिप्रेशन का कारण होता है। डीपीएस में पढ़ने वाली रोजी इस बात से परेशान थी कि उसका ब्वाय फ्रेंड अमन अन्य लड़कियों से क्यों बात करता है। उसे हमेशा असुरक्षा की भावना से ग्रसित रहती थी कि अमन उसे कभी भी धोखा दे सकता है। वह इस बात की जानकारी में लगी रहती थी कि अमन को किस लड़की के फोन आते हैं या वह किन लडकियों से बात करता है। जब भी अमन को किसी लड़की के फोन आते थे, वह तनाव में आ जाती थी। नतीजा यह हुआ कि रोजी धीरे-धीरे डिप्रेशन में आ गई। उसे लगा कि उसका कोई भी सच्चा दोस्त नहीं है। इतने कम उम्र में ही उसे लगने लगा कि जीवन का कोई महत्व नहीं है। सब कुछ बेकार है। उसका न तो पढाई में मन लगता था और न ही घूमने-फिरने में। नतीजतन उसका स्वास्थ्य प्रभावित होने लगा। काफी कोशिश के बाद उसे पड़ोस में ही रहने वाली एक महिला डॉक्टर के पास ले जाया गया,जहां पता चला कि उसकी बीमारी शारीरिक न होकर मानसिक है। काफी काउंसिलिंग के बाद वह ठीक हो पाई।

कैसे करें बच्चों में तनाव दूर
मनोचिकित्सक डॉ.प्रकाश का कहना है कि बच्चों का तनाव दूर करने में पेरेंटस की भूमिका अहम होती है। अगर बच्चा न तो ठीक से किसी से बात करें या खाना-पीना छोड- दे तो समझ लेना चाहिए कि कुछ गड़बड़ है।

ऐसे समय में बच्चे की आलोचना करना बिल्कुल बंद कर दें। कोशिश करनी चाहिए कि बच्चा किसी न किसी एक्टीविटी में व्यस्त रहे। अगर समस्या ज्यादा गंभीर लगे तो प्रोफेशनल की सहायता लेने में जरा भी देर नहीं लगानी चाहिए। यशोदा अस्पताल से जुड़े मनोचिकित्सक डॉ.संजीव त्यागी का कहना है कि पेरेंटस को बच्चे के साथ ज्यादा समय व्यतीत करना चाहिए। अगर बच्चा तनाव में है, तो उसे अकेला बिल्कुल नहीं छोड़े। बच्चे की छोटे-छोटे कामों की भी तारीफ करते रहें। उसे इसका एहसास दिलाना जरूरी है कि उसने जो गलती कि है उसका सुधार भी संभव है। अगर बच्चा परीक्षा में अच्छा नहीं कर रहा है तो उसे कोसने के बजाए प्रोत्साहित करें। अगर गर्लफ्रेंड या ब्याय फ्रेंड का मामला हो तो उसकी परेशानी समझे और उसे ढ़ाढ़स दें।

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
फोर्टिस अस्पताल से जुड़ी वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ.वंदना प्रकाश का कहना है कि आजकल किशोरावस्था(टीन्स ऐज) में ही बच्चे बड़ो के समान ही तनाव के शिकार हो जाते हैं। इसके कई कारण हैं। सबसे पहला तो बच्चों में काफी एक्सपोजर हो गया है। इंटरनेट,टीवी,मॉल्स कल्चर और स्कूल का वातावरण बच्चों में काफी तब्दीलियां ला रहा है। ब्वॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड से छोटी बात पर हुई लड़ाई को लेकर सुसाइड करने की इच्छा पैदा हो जाती है। परीक्षा में अच्छे नंबर न लाना भी काफी तनाव पैदा कर देता है। उस पर से अगर पेरेंटस का सपोर्ट न मिले तो फिर जीने की इच्छा नहीं रह जाती है। डॉ.प्रकाश का कहना है कि कुछ बच्चे इंटरनेट पर ही अपना ज्यादा समय बिताते हैं। इंटरनेट के माध्यम से ही दोस्त बना लेते हैं और फिर कुछ गलतफहमियों के शिकार हो जाते हैं। कई बार लड़कियां इंटरनेट पर बनाए गए दोस्त से धोखा खा जाती हैं और बुरी तरह तनाव में रहती हैं। उन्होंने बताया कि हाल ही में उनके पास एक मामला आया था जिसमें एक लड़की इंटरनेट से बने दोस्त से परेशान थी। लड़की में सुसाइडल टेंडेंसी थी जिसे काफी काउंसलिंग के बाद दूर किया जा सका। उन्होंने कहा कि टीवी और इंटरनेट में हिंसा देखने के कारण भी बच्चों में तनाव पैदा हो रहा है।

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