वारे-न्यारे के लिए तो बहाना चाहिए
खेल मंत्री एम. एस. गिल अपना व्यवसाय किसानी लिखते हैं। वे आईएएस थे, फिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर रहे। अब मिनिस्टर हैं। अपने निजी घर में भी एसी, सरकारी कार्यालय और निवास में भी एसी में बैठे-बैठे...
खेल मंत्री एम. एस. गिल अपना व्यवसाय किसानी लिखते हैं। वे आईएएस थे, फिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर रहे। अब मिनिस्टर हैं। अपने निजी घर में भी एसी, सरकारी कार्यालय और निवास में भी एसी में बैठे-बैठे खुराफात सूझती है तो देहली को दिल्ली बनाने की सूझी। छुटभय्यों को इशारा मिला तो वे गली कूचे में शोर मचाने लगेंगे। हां सब पट्टियां, साइन बोर्ड बदलने होंगे। लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे होंगे। पानी बिजली सड़क जए भाड़ में। देहली को दिल्ली बनाने के चक्कर में हड़ताल, आगजनी भी हो सकती है। आम आदमी ही भुगतेगा। वे तो एसी में बैठे ही रहेंगे। तपिश खुले आकाश के नीचे रहने वाले ही झलेंगे। -उमेश, द्वारका-10, नई दिल्ली
लाडो किसी से कम नहीं
भारतीय पुरुषों के लाचार प्रदर्शन के बाद महिलाओं ने भारतीय जनता को खुशी का मौका दिया। भारतीय महिलाओं ने क्रिकेट और बैडमिंटन दोनों में पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन किया। महिला क्रिकेट टीम श्रीलंका को हरा कर सुपर चार सेमीफाइनल में जगह बनाने में सफल हुई। बैडमिंटन में सायना नेहवाल, अदिति मुराकर ने भी अपने अभियान को जरी रखा है। भारतीय महिलाओं ने दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं। -सुशांक कुमार, नई दिल्ली
महंगाई दर का क्या मतलब
हर दिन टीवी, अखबार और रेडियो में महंगाई दर के लगातार नीचे आने की खबरें छायी रहती हैं। जबकि जमीनी हकीकत उसके बिल्कुल विपरीत है। आप सामान खरीदने बाजर जयें तो आपके दिमाग का सूचकांक उतनी ही तेजी से ऊपर खिसक जएगा। बड़े अमीर लोगों पर इसका असर नगण्य लेकिन बेचारे गरीब पर तो जसे मुसीबत ही आन पड़ती है। फिर इनके लिए महंगाई दर के नीचे-ऊपर होने के क्या मायने रह जते हैं? -अनुराधा कुमारी, करोलबाग, नई दिल्ली
क्या जमाना आ गया
वो जमाना था जब हमारा देश षि-मुनियों, संत-महात्माओं व क्रांतिकारी देशभक्त नेताओं वाला कहलाता था। आजदी के 62 वर्षो में भ्रष्टाचार व राजनीति में अपराधीकरण की घुसपैठ होने से ठगों, महाठगों का जमाना आ गया है। देश के विभिन्न भागों में खासतौर पर दिल्ली में काफी लोग रुपए पैसे, जेवर दुगने के लालच में ठगी के शिकार होते ज रहे हैं। -देशबन्धु, उत्तम नगर, नई दिल्ली
बाबू मालामाल, जनता कंगाल
काम तो करता भूखा कल्लू और मजे से खाए शंभू काका। सरकार ने सरकारी कर्मियों के लिए छठा वेतनमान तो दे दिया है लेकिन सरकार पर वित्तीय भार पड़ा है। अब पूर्ति के लिए लोगों से नए कर वसूलने की तैयारी है। विश्व बैंक से कर्ज लेने की चर्चा है। ये सरकारी कर्मचारी तो मालामाल हैं। इन लोगों को कड़वी स्थिति का एहसास कराने के लिए वेतन में कटौती करनी चाहिए। यह लोग इसके लिए भी तैयार हो जते, क्योंकि इनकी आदत नौकरी करने की पड़ी है। सरकारी कर्मियों की मौज मस्ती का भार जनता क्यों भुगते? -दिलीप गुप्ता, बरेली
हो गया काम पूरा
समझ नहीं आया। क्या भाजपा की अखिल भारतीय हार का कारण सिर्फ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ही थे। -रमेश रसिक