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चांद गया, कोठी न. 906 में फिर सन्नाटा

जब से चंद्र व चांद का सिलसिला शुरू हुआ तो सेक्टर-8 स्थित कोठी नंबर 906 की फिजा भी बदल गई। 11 दिन पहले चंद्रमोहन के वापस लौटने के बाद कोठी का वीराना कुछ कम हुआ था। रविवार को जब चंद्र फिर से चांद बनकर...

चांद गया,  कोठी न. 906 में फिर सन्नाटा
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 15 Jun 2009 05:19 PM
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जब से चंद्र व चांद का सिलसिला शुरू हुआ तो सेक्टर-8 स्थित कोठी नंबर 906 की फिजा भी बदल गई। 11 दिन पहले चंद्रमोहन के वापस लौटने के बाद कोठी का वीराना कुछ कम हुआ था। रविवार को जब चंद्र फिर से चांद बनकर फिजा के घर पहुंचा तो दोबारा से यह कोठी सूनी सी हो गई। बेशक चौ. भजनलाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद ही सही, लेकिन इस कोठी पर कभी इस तरह का सन्नाटा नहीं छाया था। देर शाम तक कोठी के बाहर कोई नजर नहीं आया, सिवाए हजकां के जिला प्रधान दलबीर सिंह के।


चांद-फिजा प्रकरण शुरू ओपन होने से पहले इस कोठी पर सदैव चहल-पहल नजर आती थी। वजह चाहे पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल का निवास होने के नाते या फिर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन के चलते रही हो। जब चंद्र ने चांद बनकर फिजा का हाथ थामा तो एकाएक इस कोठी की चहल-पहल को भी नजर लग गई। जब चंद्रमोहन फिजा के पास जाकर रहने लगा तो उनका परिवार इसी कोठी में रहता था, लेकिन रौनक खत्म हो गई थी। पिछले कई दशकों से इस कोठी के गलियारों में दिखाई देने वाले कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने भी चंद्र के चांद बनते ही यहां से किनारा कर लिया। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल व हजकां प्रमुख कुलदीप बिश्नोई का भी इस कोठी पर पहले के मुकाबले आना-जाना काफी कम हो गया था।

लोकसभा चुनावों से पहले विदेश खिसकने वाले चंद्रमोहन के बाद तो यह कोठी पूरी तरह सूनी सी नजर आने लगी। हालांकि उनकी पत्नी सीमा बिश्नोई व बच्चे अवश्य यहां पर रह रहे थे, लेकिन वे इस कदर रिजर्व थे कि बाहर से गुजरने वाले व्यक्ति को यह एहसास होता कि कोठी पर कोई नहीं है। गत 3 जून को इस कोठी में एक बार फिर से रौनक नजर आई। चंद्रमोहन ने आते ही मीडिया कर्मियों को बुलाया और अपना हाल-चाल बयां किया। करीब 11 दिन तक चंद्रमोहन के समर्थक व हजकां नेताओं की उपस्थिति से कोठी में चहल-पहल शुरू हो गई थी, लेकिन रविवार को चंद्र के फिर से चांद बनते ही फिजा के घर में तो अवश्य पूर्णिमा लग गई। मगर कोठी नंबर 906 पर फिर से अमावस्या जैसा हाल हो गया। देर शाम तक कोठी के बाहर कोई नजर नहीं आया। अब देखने वाली बात है कि कोठी का यह सन्नाटा कब टूटता है।

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