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अब समय से कापी जांचने की चुनौती, काफी चर्चा में रही इस साल की परीक्षा

29 मई से आपाधापी के बीच शुरू हुई लिखित परीक्षाएं संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की परीक्षाएं बुधवार को समाप्त हो गईं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने भले ही राहत की सांस ली है, लेकिन अभी कई चुनौतियां...

अब समय से कापी जांचने की चुनौती, काफी चर्चा में रही इस साल की परीक्षा
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 10 Jun 2009 07:46 PM
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29 मई से आपाधापी के बीच शुरू हुई लिखित परीक्षाएं संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की परीक्षाएं बुधवार को समाप्त हो गईं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने भले ही राहत की सांस ली है, लेकिन अभी कई चुनौतियां हैं। एक तो उन केंद्रों की परीक्षाएं फिर से करानी होंगी, जिन्हें परीक्षा से ठीक पहले निरस्त कर दिया गया।

दूसरा, जिन केंद्रों पर परीक्षा का बहिष्कार हुआ, उनका क्या होगा? इस पर भी फैसला लेना होगा। परीक्षा के बाद अब मूल्यांकन की अराजकता कैसे दूर होगी? इसके लिए भी सख्त निर्णय लेने होंगे। सत्र नियमित करने के लिए समय से रिजल्ट निकालना होगा।

यहां की परीक्षाएं हर साल चर्चा का विषय बनती हैं। इस साल भी बनीं, लेकिन कुछ ज्यादा ही। कई जिलों में परीक्षा का बहिष्कार हुआ। कई केंद्रों पर हिंसक घटनाएं हुईं। पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। केंद्रों पर प्रश्नपत्रों की कमी पड़ गई तो अधिकांश केंद्रों पर परीक्षाएं देर से शुरू हुई।

कई केंद्रों ने तो अंतिम समय में परीक्षा कराने से इनकार कर दिया। परीक्षाएं अब खत्म हो गई हैं। परिसर में हर कोई अलग-अलग ढंग से विश्लेषण कर रहा है। अधिकांश यह मानते हैं कि कुलपति प्रो. कुटुंब शास्त्री की परीक्षा की शुचिता बहाल करने की नीति और प्रक्रिया लोगों को रास नहीं आई।

शुरुआत परीक्षा विभाग के कर्मचारियों के सामूहिक स्थानांतरण से हुई। इससे कर्मचारियों के एक वर्ग में अंदर ही अंदर रोष है। परीक्षा विभाग मलाईदार माना जता है। केंद्र निर्धारण की नई नीति भी असंतोष का कारण बनी। सभी जानते हैं कि विश्वविद्यालय में मनमाफिक केंद्र के लिए काफी दबाव रहता है।

आरोप है कि इसमें लेनदेन भी चलता है। अहम बात यह कि अध्यापकों का एक खेमा कुलपति से इस बात से नाराज है कि वे कुछ गिने-चुने अध्यापकों पर ही भरोसा कर रहे हैं। अन्य अध्यापकों को तव्वजो नहीं मिल रही। इसलिए वे भी परीक्षा व्यवस्था के प्रति उदासीन बने रहे। रही-सही कसर छात्रों की हड़ताल ने पूरी कर दी। हड़ताल के पीछे भी कई चर्चाएं परिसर में सुनी-सुनायी ज रही हैं।

परीक्षा से ठीक पहले आठ दिन कामकाज का ठप हो जना, विश्वविद्यालय के लिए भारी पड़ गया है। छात्रों के इस आरोप में काफी हद तक दम है कि परीक्षा में भारी अव्यवस्था थी। खासतौर से समय से प्रवेशपत्र नहीं मिले। परीक्षार्थियों की तुलना में प्रश्नपत्रों की कमी थी।

केंद्रों के बारे में जनकारी नहीं दी गई। परीक्षा केंद्रों को भी वास्तविक छात्र संख्या की जनकारी नहीं मिल सकी। पूरी अव्यवस्था का ठीकरा विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों की हड़ताल के सिर पर फोड़ा।  पर प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि कुछ लोग साफ-सुथरी परीक्षा कराने की विश्वविद्यालय की योजना को असफल बनाने में लगे रहे। इसमें छात्रों का भी उपयोग किया गया।

अच्छी मंशा होने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रबंधन पर प्रश्नचिन्ह लगा है कि उसे इन सब बातों का आकलन पहले से करना चाहिए था। चुनौतियों से निपटने के लिए कुलपति को भी अपने पास सशक्त टीम होनी चाहिए।

प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि जब लीक से हटने की कोशिश होगी तो विरोध ङोलना पड़ा। कई चीजें बाद में पकड़ में आईं। इस बार प्रवेश प्रक्रिया से ही नजर रखी जाएगी।

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