बूड़ गईल
मैं उनके घर पहुंचा तो देखा कि मौलाना लादेन टीवी में यों आखें गड़ाए हैं, जैसे संसदीय चुनावों के रिजल्ट देख रहे हों। पर्दे पर ‘बीड़ी जलाइले पिया..’ का डांस चल रहा था। मैंने धीरे से...
मैं उनके घर पहुंचा तो देखा कि मौलाना लादेन टीवी में यों आखें गड़ाए हैं, जैसे संसदीय चुनावों के रिजल्ट देख रहे हों। पर्दे पर ‘बीड़ी जलाइले पिया..’ का डांस चल रहा था।
मैंने धीरे से कहा- ‘सुभानल्लाह, यह उम्र और यह बीड़ी!’ मौलाना भड़क कर बोले- ‘खामोश! न मैं बीड़ी जलाता हूं न पीता हूं। न्यूज देखने को लगाया था। यह बीड़ी-हुक्का जाने कैसे लग गया।’
तभी घर के अंदर से एक बुजुर्ग अखबार संभाले, होठों में लगातार कुछ बुदबुदाते आ कर चुपचाप बैठ गए। मौलाना बोले- ‘मेरे चचेरे भाई हैं। पूर्वी यूपी के एक गांव से आए हैं। लड़फन शाह नाम है।’ फिर इशारे से बताया कि शाह साहब दिमाग से चवन्नी भर कम हैं। हर वक्त पेपर पढ़ते रहते हैं और होंठों में ही जाने क्या बुदबुदाते रहते हैं। मुझे उनकी बुदबुदाहट में दो शब्द स्पष्ट सुनाई पड़े- ‘बूड़ गईल’ (डूब गई)।
मुझे लगा जैसे कह रहे हों कि हाथी बहुत जोर-शोर से चिंघाड़ कर उठा था। रौंद डालेगा..सबको सूंड में पलट लेगा। मगर नतीजा?..बूड़ गईल। पीएम बनने के सपने देखे थे। मगर आंख खुलने पर सारे सपने हाथी की दुम की तरह फुट भर के रह गए। पूरी 500 सीटों पर लड़े थे। हाथ लगीं कुल 21..बूड़ गईल। मसल मशहूर है कि घर में चार चूल्हे जलेंगे तो धुआं तो घुटेगा ही।
तड़फन शाह बुदबुदा रहे थे। मुझे लगा जैसे कह रहे हों कि उम्र भर पासबानी की। जलवा खड़ा किया। रेकार्ड की किताबों में सबसे अधिक मतों से जीतने का आंकड़ा दर्ज कराया। मगर इस बार? बूड़ गईल। हार की कड़वाहट झेलनी पड़ी। वक्त का ऊंट कब किस करवट बैठ जाए, ऊंट के मूड पर डिपेन्ड करता है, शाह जी। लड़फन शाह बड़बड़ा रहे थे। उनके होंठों के मूवमेंट से एक-एक दिग्गज का नाम स्पष्ट हो रहा था जो ताल ठोक कर उतरा था और पराजय का लपोटा डोल कर गाल सहला कर बैठ गया। मुकद्दर की लकीरें हथेली पर चाकू से नहीं तराशी जा सकतीं। तड़फन शाह ने पेपर समेटा और चुपचाप उठ कर अंदर चले गए।
लादेन बोले- ‘अमां छोड़ो, जो बूड़ गईल तो बूड़ गईल। गंगा तारती भी है, मारती भी है। तरावट की बात पर आओ। तुम्हारी कसम, पढ़ कर सीना चौड़ा हो गया। न्यूजें हैं कि इस बार लोकसभा के 543 में से तीन सौ सदस्य करोड़पति हैं। पिछली बार 154 थे। या खुदा, दिल्ली से दुर्ग और देवरिया तक सोहन हलवा बंट जावेगा। अरे पड़ोसियों, अल्लाह की दी हुई आंखें खोल कर देख लो कि इंडिया कितनी तरक्की पर है। इस खुशी में विद बिस्कुट चाय पिलाते हैं लल्ला।’