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शेक्सपीयर के नाटकों से मेल खाता प्रभाकरन का अंत!

लौकिक घटनाओं पर क्या परालौकिक तत्वों का प्रभाव होता है? पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्य तिथि और उनके हत्यारे प्रभारकन की मौत कहीं न कहीं शेक्सपीयर के नाटकों के कथानक की याद दिलाती हैं। जूलियस...

 शेक्सपीयर के नाटकों से मेल खाता प्रभाकरन का अंत!
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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लौकिक घटनाओं पर क्या परालौकिक तत्वों का प्रभाव होता है? पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्य तिथि और उनके हत्यारे प्रभारकन की मौत कहीं न कहीं शेक्सपीयर के नाटकों के कथानक की याद दिलाती हैं। जूलियस सीजर, मैकबेथ, हेमलेट और न जाने कितने ही नाटकों के त्रासद घटनाक्रमों में शेक्सपीयर ने यह स्थापित करने की कोशिश की कि हमार जीवन में होने वाली तमाम घटनाएं परालौकिक शक्ितयों से प्रभावित होती हैं। संयोग की बात है कि 21 मई 1ो राजीव गांधी की हत्या हुई और प्रभाकरन भी 18 साल बाद राजीव की पुण्य तिथि से मात्र पांच दिन पहले 17 मई को मारा गया। प्रभाकरन आठ अंक को हमेशा अशुभ मानता था। उसका जन्म दिन 26 नवंबर है। इन दोनों तिथियों के अंको को मिलाया जाए तो आठ अंक बनता है। वह इस अंक से आशंकित रहता था लिहाजा अपना जन्म दिन नहीं मनाता था। सीजर की मौत से पहले भविष्य वक्ता ने उसे 15 मार्च को सावधान रहने की चेतावनी दी थी और सीजर उसी दिन मारा गया था। राजीव की हत्या ही अंतत: प्रभाकरन और लिट्टे के अंत का कारण बनी। 18 साल पहले श्रीपेरुंबदूर की सभा में धनु ने बम से खुद को उड़ाते हुए राजीव गांधी की हत्या की थी। प्रभाकरन कुछ वर्ष भले ही अपने खूनी खेल का मजा लेता रहा लेकिन जब उसका अंत हुआ तब पूर श्रीलंका में जश्न मनाया गया। जब राजीव की हत्या हुई तब भारत में चुनावी माहौल था और जब प्रभाकरन की मौत हुई तब श्रीलंका में चुनाव क्षितिज पर थे और भारत में चुनावी माहौल था। क्या यह संयोग है कि भारत में हुए चुनाव नतीजों के अगले ही दिन प्रभाकरन की मौत की खबर आई? इन नतीजों में राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी को आशातीत सफलता मिली जबकि लिट्टे तथा प्रभाकरन के परिवार- दोनों का नामोनिशान खत्म हो गया!

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