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भूमिगत पैदल पारपथ चाहिए

भारत की राजधानी दिल्ली। और दिल्ली के हृदय-स्थल में अवस्थित धौला कुआँ। हजारों यात्री प्रतिदिन यहां हरियाणा और राजस्थान के सुदूर इलाकों के लिए बस पकड़ने आते हैं। मनमोहक फ्लाई-आेवर, बड़े-बड़े...

 भूमिगत पैदल पारपथ चाहिए
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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भारत की राजधानी दिल्ली। और दिल्ली के हृदय-स्थल में अवस्थित धौला कुआँ। हजारों यात्री प्रतिदिन यहां हरियाणा और राजस्थान के सुदूर इलाकों के लिए बस पकड़ने आते हैं। मनमोहक फ्लाई-आेवर, बड़े-बड़े फ्लोरोसेन्ट-चमकीले बोर्ड, धौला कुआँ पुलिस चौकी, आर्मी गोल्फ कोर्स और डिफेन्स सर्विसेज ऑफिसर्स इंस्टीटय़ूट की चकाचौंध के बीच कुछ बेहद ही मामूली बातें ऐसी हैं, जिन पर न तो सक्षम अधिकारियों की नजर जा पाती है और न ही मीडिया की। यहाँ सुबह पाँच बजे से रात ग्यारह बजे तक यात्रियों का ताँता लगा रहता है। स्वाभाविक रूप से इन यात्रियों को अत्यधिक वाहन-दाब वाले इस व्यस्तम राजमार्ग को पार करने की जरूरत होती है। भूमिगत पैदल पार पथ बस-स्टैंड से लगभग 700 मीटर की दूरी पर है, जिसके कारण मजबूर होकर ये यात्री- जिनमें सुशिक्षित-आधुनिक नागरिकों के संग सिर पर बस्ता और गोद में अबोध शिशु लिए रोजगार की तलाश में जा रही मजदूरन भी होती हैं- जान की परवाह किए बगैर सड़क पार करते हैं। कुछ दुर्घटनाएं प्रशासन की नजर में आती हैं, कुछ नहीं आ पातीं..। दूसरी समस्या हमारे समाज की ‘चलता है’ छवि और भयंकर शासकीय उदासीनता की आेर इंगित करती है। यहाँ जन-सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। मानों मानवीय-सभ्यता का प्रकाश यहाँ तक पहुंचा ही न हो। पुरुष तो भाग्यशाली हैं- हरित दिल्ली के गिने-चुने पेड़-पौधों-झाड़ियों का सहारा लेकर निवृत्त हो लेते हैं पर मातृ-शक्ित की परवाह किसे है? ‘यत्र पूज्यन्ते नार्यस्तु, रमन्ते तत्र देवता’ जैसे नारे लगाकर हम अपने कत्तर्व्य की इतिश्री मान लेते हैं। यह दु:स्थिति तब है जबकि राष्ट्रपति, यूपीए की अध्यक्ष और दिल्ली की मुयमंत्री पदों पर महिलाएँ आसीन हैं। नीरज कुमार पाठक, जी-453, सी, राजनगर-2, नई दिल्ली

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