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मुन्ना भाई फेल

मुमकिन है कि संजय दत्त निर्दोष हों। आर्म्स एक्ट में उन्हें टाडा कोर्ट ने जिस आरोप में दोषी पाया था, वह शायद ऊपरी अदालत में सही न ठहरे और वे बाइज्जत बरी हो जाएं। हो सकता है मुंबई बम कांड या उसे अंजाम...

 मुन्ना भाई फेल
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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मुमकिन है कि संजय दत्त निर्दोष हों। आर्म्स एक्ट में उन्हें टाडा कोर्ट ने जिस आरोप में दोषी पाया था, वह शायद ऊपरी अदालत में सही न ठहरे और वे बाइज्जत बरी हो जाएं। हो सकता है मुंबई बम कांड या उसे अंजाम देने वालों के साथ उनके वैसे रिश्ते न हों जिन्हें इस मामले का आधार बनाया गया है। लेकिन ऊपरी अदालत में जब तक यह नहीं हो जाता वे एक सजायाफ्ता व्यक्ित हैं। और जिस आरोप में उन्हें सजा मिली है, वह काफी गंभीर है। हमें पता नहीं है कि समाजसेवा करने और संसद में लखनऊ की राजनीतिक नुमाइंदगी करने की भावना उनके भीतर किस हद तक उबल रही है। उनकी ईमानदारी पर शक अगर न भी किया जाए तो भी उनके लिए बेहतर यही था कि वे धैर्य धारण करं। अदालती लड़ाई से पाक साफ होकर निकलें। फिर जसे चाहें सामाजिक, राजनीतिक भूमिका निभाएं। और इसी धर्य की उम्मीद समाजवादी पार्टी से या फिर देश की सभी पार्टियों से की जानी चाहिए। संजय दत्त लोकप्रिय अभिनेता हैं, उनके नाम पर ढेर सार वोटों को और खासकर युवा वर्ग के वोटों को खींचा जा सकता है। लेकिन यह काम कुछ समय बाद भी हो सकता है, उन्हें अभी चुनाव लड़वाने की जिद लोकतंत्र को कलंकित करने के अलावा कु छ और नहीं करगी। यह खुद संजय दत्त के लिए भी बहुत अच्छी बात नहीं हैं कि उन्हें उस खिड़की से राजनीति में लाया जाए, जिससे पेशेवर अपराधी और माफिया डॉन राजनीति में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट का संजय दत्त को चुनाव लड़ने की क्षाजत न देना इसी नजरिये से स्वागत योग्य है। देश भर में फैले केंद्रीय कारागार में न जाने कितने ऐसे सजायाफ्ता बंदी है, या न जाने कितने जमानत पर छूटे हुए पेशेवर हैं, जो सामजिक स्वीकृति और संसदीय विशेषाधिकारों को हासिल करने के लिए चुनाव लड़ने को तैयार बैठे हैं। अगर संजय दत्त को क्षाजत मिल जाती तो एक गलत परंपरा भी शुरू हो जाती जिसकी डोर पकड॥कर इनमें से कई संसद या विधानसभाओं में पहुंचने का जुगाड़ खोज लेते। पिछले कुछ साल में लोकतंत्र को अपरधियों के चंगुल से बचाने की समाज की छटपटाहट लगातार बढ़ रही है। ऐसा कई मौकों पर जाहिर हुआ है, लेकिन हमार राजनैतिक दलों ने इस पर कान देने की जरूरत नहीं समझी। ऐसे में अगर न्यायपालिका आगे आती है तो यह काम आधा तो हो ही जाएगा। राजनीतिक दलों से उम्मीद नहीं है इसलिए बाकी आधा खुद जनता को ही करना होगा।

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