उत्पाद में पांच गुणा अधिक राशि मिलती है छत्तीसगढ़ को
झारखंड सरकार को राजस्व का लगातार नुकसान हो रहा है। राजस्व वसूली की स्थिति काफी कमजोर है। शराब की खपत बढ़ने के दौर में उत्पाद राजस्व रास्ते में ही गुम हो जाता है। पड़ोसी राज्य बिहार, छत्तीसगढ़ और...
झारखंड सरकार को राजस्व का लगातार नुकसान हो रहा है। राजस्व वसूली की स्थिति काफी कमजोर है। शराब की खपत बढ़ने के दौर में उत्पाद राजस्व रास्ते में ही गुम हो जाता है। पड़ोसी राज्य बिहार, छत्तीसगढ़ और बंगाल में उत्पाद विभाग शराब से राजस्व जुटाने में अव्वल है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2006-07 के दौरान उत्पाद राजस्व से 707 करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी। झारखंड में दो साल बाद वर्ष 2008-0में 500 करोड़ का लक्ष्य तय हुआ। इसमें उत्पाद विभाग ने नौ माह में 146 करोड़ ही वसूली दिखाया है। जबकि छह माह में ही छत्तीसगढ़ सरकार को 450 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति हुई है। यहां राजस्व का नुकसान काफी महत्वपूर्ण है। एक तो यहां लक्ष्य कम तय होता है। उसमें भी राशि नहीं जुटती है। सरकार के खजाने में शराब के टैक्स के रूप में सिर्फ नाममात्र का ही धन जा रहा है। झारखंड में क्रय-विक्रय मूल्य की अंतर राशि एक भी अतिरिक्त टैक्स नहीं दिया जाता है। खरीद मूल्य (वैट सहित) और बिक्री मूल्य के बीच का अंतर से भी स्पष्ट है कि खरीदारों की जेबों से टैक्स बेरहमी से ली जाती हैं। वर्ष 2006-07 में झारखंड सरकार को शराब से जहां 150 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं छत्तीसगढ़ में 707 करोड़ रुपये मिली। वर्ष 2007-08 में छत्तीसगढ़ में 840 करोड़ रुपये उत्पाद राजस्व से जुटाया, जबकि झारखंड में यह 156 करोड़ पर सिमट गयी।