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वंचितों के बाबा आम्टे का अवसान

ुष्ठ रोगियों, अपंगों, आदिवासियों तथा समाज से तिरस्कृत लोगों की उम्मीद की किरण शनिवार को बुझ गई। उनके मसीहा मुरलीधर देवीदास आम्टे, जिन्हें वे श्रद्धा से बाबा आम्टे पुकारते थे, का लम्बी बीमारी के बाद...

 वंचितों के बाबा आम्टे का अवसान
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ुष्ठ रोगियों, अपंगों, आदिवासियों तथा समाज से तिरस्कृत लोगों की उम्मीद की किरण शनिवार को बुझ गई। उनके मसीहा मुरलीधर देवीदास आम्टे, जिन्हें वे श्रद्धा से बाबा आम्टे पुकारते थे, का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया है। रक्त कैंसर से पीड़ित बाबा आम्टे ने अपने ‘आनंदवन आश्रम’ में भोर में चार बजे अंतिम साँस ली। उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ रविवार को होगी। उनके परिवार में दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं। उनके निधन पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, मुख्यमंत्री मायावती समेत कई नेताआें ने शोक जताया है। प्रधानमंत्री ने विदर्भ का दौरा भी स्थगित कर दिया है।ड्ढr मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित बाबा आमटे का जन्म वर्धा जिले के हिंगनघाट में 24 दिसम्बर-1ो हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों की सेवा में बिताया। एक ब्राह्मण जागीरदार के परिवार में पैदा हुए बाबा आमटे ने आरंभिक दौर में ही समाज सेवा अपना ली थी। उन्होंने कानून की पढ़ाई की थी पर अपने जागीर के लोगों की गरीबी ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इसके बाद ही उन्होंने मैला ढोले वाले सफाईकर्मियों के बीच काम करना शुरू कर दिया।ड्ढr 1में उनकी शादी साधना गुलेशास्त्री से हुई जिन्होंने आजीवन सामाजिक कार्यो में उनका साथ दिया। विवाह के बाद से ही उन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए काम करना शुरू किया। वरोरा में कुष्ठ रोगियों की चिकित्सा के लिए उन्होंने 11 केंद्र स्थापित किए। बाद में आनंदवन आश्रम की स्थापना की। उन्होंने कुष्ठ रोग की चिकित्सा के लिए औपचारिक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। अपने शरीर का उपयोग कुष्ठ के प्रयोग के लिए करने की भी अनुमति भी दी। बाद में यह प्रयोग स्थगित कर दिया गया। उनका आश्रम अब अपनी जरूरतें खुद ही पूरी कर लेता है और पाँच हजार लोग इस पर निर्भर हैं।ड्ढr बाबा आमटे ने भारत जोड़ो आंदोलन भी शुरू किया था। इसके लिए पहली यात्रा उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक 1में की और दूसरी असम से गुजरात तक 1में की थी। शांति स्थापना और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लोगों को जगाना उनका लक्ष्य था। उन्हें और उनके परिवार को जो भी पुरस्कार जहाँ से भी मिले उनकी सम्पूर्ण राशि आनंद भवन आश्रम में ही लगा दी गई।ड्ढr ं

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