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बिहारी की पाती मराठी के नाम

राज ठाकरे का उत्तर भारतीय और उनके पर्व छठ को लेकर दिया गया बयान और उससे सुलगी हिंसा भारत जैसे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश के लिए एक खतरनाक बात है। यह और भी दुखद है कि वे पार्टियां जिनका मराठी वोट...

 बिहारी की पाती मराठी के नाम
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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राज ठाकरे का उत्तर भारतीय और उनके पर्व छठ को लेकर दिया गया बयान और उससे सुलगी हिंसा भारत जैसे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश के लिए एक खतरनाक बात है। यह और भी दुखद है कि वे पार्टियां जिनका मराठी वोट बैंक है, किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से बच रही हैं। इनका यह ढुलमुल रवैया यह सोचने के लिए विवश करता है कि क्या क्षेत्रीय अस्मिता की तुष्टि राष्ट्रीय अखंडता से भी बड़ी चीज है। ऐसे ही क्षुद्र स्वार्थियों के लिए शायद ईसा मसीह के मन से यह आवाज आई थी कि ‘हे ईश्वर! इन्हें माफ करना, इन्हें पता नहीं कि ये क्या कर रहे हैं!’ तरस तो राज ठाकरे के उन अंध समर्थकों पर भी आता है, जिन्हें यह समझ नहीं कि देश के विभिन्न पवरे (गणपति उत्सव, छठ, ईद आदि) में आस्था, सम्मान की चीज है और सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए जरूरी भी। एक भारतीय या यूं कहें बिहारी होने के नाते मेरा मन तो गणपति पूजा पर भी उतना ही उल्लसित और उमंगित होता है, जितना कि छठ पूजा पर। रेणु ने अपने उपन्यास ‘मैला आंचल’ में अंत में लिखा है- ‘सबरि ऊपर मानुस सच’। ठीक भी है, सबसे पहले हम मानव हैं और सबसे बढ़कर धर्म है मानवता का। यह नहीं कहा जा सकता कि पूरा महाराष्ट्र ही क्षेत्रीय अस्मिता की भावना से तप रहा है, बल्कि वहां भी ऐसे लोग अवश्य ही भारी तादाद में मौजूद होंगे, जिन्हें अपनी भारतीयता और एकता-अखंडता से उतना ही प्यार होगा, जितना कि एक बिहारी होने के नाते मुझे या मुझ जैसे ही कईयों को। इस हिंसक सूरते हाल में उन्हीं मराठियों में एक उम्मीद की किरण नजर आ रही है। ये मराठे ही अपने इन बड़बोले नेताआें का दिमाग ठिकाने लगाएं और सो-सौ रंग के इस बाग (भारत) को आग के हवाले होने से बचा लें ..।ड्ढr अशोक कुमार सिंह, गांधी विहार, दिल्लीड्ढr सम्मानजनक मुआवााड्ढr ‘एयरपोर्ट अथॉरिटी पर एक करोड़ हर्जाना’ हिन्दुस्तान में समाचार पढ़ा। एक एनआरआई बच्ची ने इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर खराब एस्कालेटर की चपेट में आकर दम तोड़ दिया था, यह फैसला घटना के नौ वर्ष बाद आया है। आश्चर्य है कि जितने भी अमीर व्यक्ित या प्राधिकरण हैं या इंश्योरेंस एजेंसिया भी हैं वे कभी भी अपने उत्तरदायित्व को स्वीकार नहीं करती हैं। ऊंचे से ऊंचे कोर्ट में निर्णय के खिलाफ अपील करते रहते हैं। जिससे कोर्ट का समय और सार्वजनिक धन बरबाद होता है। सवर्ोच्च न्यायालय ने न केवल एक सम्मानजनक मुआवजे को दिलवाने में मदद की, वरन अनावश्यक मुकदमेबाजी पर भी रोक लगाई। यह स्वागतयोग्य है।ड्ढr उमेश चंद्र पाण्डे, सेक्टर 10, द्वारका, नई दिल्लीड्ढr अलोकतांत्रिक कदमड्ढr एक बुरी खबर छपी है कि सरकार जल्दी ही सड़कों पर वाहनों की संख्या घटाने के लिए निजी वाहनों पर लगने वाले टैक्सों को बेतहाशा बढ़ाकर व्यावसायिक वाहनों से भी अधिक करने पर विचार कर रही है। यह खबर सुनकर ही पसीना आने लगा है। यह अगर होता है तो एक अत्यंत अलोकतांत्रिक कदम होगा। आज की भागमभाग जिंदगी में वाहन दोपहिया हो या चार पहिए, विलासिता नहीं, बल्कि विवशता बन गई है। यदि सरकार को वाहनों की संख्या घटानी ही है तो फिर काहे को नई-नई कंपनियों को बुला-बुलाकर लाइसेंस दिए जा रहे हैं, कार बनाने को? बंद किए जाएं ये कारखाने। वैसे यदि लोगों को आने-जाने के साधन सुगमता से उपलब्ध हों तो कोई क्यों सड़क पर निकालेगा अपने वाहन? मेट्रो रेल, लाइट रेल या फिर मोनो रेल जैसे यातायात के साधन सुलभ हो जाएं तो इन कारों की बिक्री अपने आप घट जाएगी। अच्छा होगा कि निजी कारों को टैक्सी के रूप में इस्तेमाल करने की इजाजत भी दी जानी चाहिए। इससे भी सड़कों पर रश कम होगा। एक व्यक्ित जो अपनी कार अकेला लेकर जा रहा है, वह बस स्टाप से चार आदमी और अपने साथ ले जाएगा।ड्ढr इन्द्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैम्प, दिल्लीड्ढr गुड फ्राइडे का अवकाशड्ढr दुखद व आश्चर्य का विषय है कि 21 मार्च को पड़ने वाले गुड फ्राइडे के दिन दिल्ली सरकार ने नेगोशिएबल इन्स्ट्रूमेन्ट एक्ट के अंतर्गत सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया है। ऐसा बैंकिंग इतिहास में पहली बार हुआ है। इससे अल्पसंख्यक ईसाई समाज की भावनाआें को बहुत ठेस पहुंची है। आशा है दिल्ली सरकार समय रहते इस पर पुनर्विचार करेगी।ड्ढr सुनीता डेविड, नई दिल्लीं

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