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Hindi News कैम्पसनामा : गर्डेनवा बनेगा तऽ गड़िया कहां लगेगा जी?

कैम्पसनामा : गर्डेनवा बनेगा तऽ गड़िया कहां लगेगा जी?

दरभंगा हाउस को कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार ने हेरिटेज बिल्डिंग के अन्तर्गत रखा है और 2007 से ही इसके जीणर्ोद्धार का कार्य कछुए की गति से चल रहा है। पूरे दरभंगा हाउस को इस समय पुरातात्विक...

 कैम्पसनामा : गर्डेनवा बनेगा तऽ गड़िया कहां लगेगा जी?
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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दरभंगा हाउस को कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार ने हेरिटेज बिल्डिंग के अन्तर्गत रखा है और 2007 से ही इसके जीणर्ोद्धार का कार्य कछुए की गति से चल रहा है। पूरे दरभंगा हाउस को इस समय पुरातात्विक दृष्टि से आप देखें तो आनंद की सहजानुभूति होगी। कहीं ईंट, कहीं सीमेंट, कहीं बांस बल्ला तो कहीं टाइल्स बिखरे मिलेंगे। बाथरूम आधा बना हुआ, फर्श पर मात्र टाइल्स, घिंसाई कहीं नहीं। बिजली के तार खुले हुए। कुल मिलाकर 2008 का सत्र बैकग्रांउड म्यूजिक के साथ संपन्न हुआ है। छात्र विद्वान प्राध्यापक इस संगीत के साथ समय गुजारते रहे। भला हो परीक्षा विभाग का जिसने सेंटअप फार्म नवम्बर माह में ही भरवा लिया और जनवरी-फरवरी तक क्लास चलाने के आदेश दिये। विद्यार्थी चांद की कलाआें की तरह आते जाते रहे। पढ़ाई के नाम पर खानापूरी। दरभंगा हाउस की वर्तमान स्थिति की देखते हुए ऐसा करना समयानुकूल था इसके लिए साधुवाद।ड्ढr ड्ढr अब जीणर्ोद्दार का कार्य शुरू है तो तरह-तरह के स्थापत्य कभी-कभी अपनी मर्जी से कुछ लोग बनवा रहे हैं। हेरिटेज बिल्डिंग की परवाह किये बिना। ऐसी विषय परिस्थिति में हिन्दी विभाग से अरबी विभाग तक की आप यात्रा करें तो आपको गिनकर पन्द्रह कदम चलने होंगे। इस पन्द्रह कदम में बीस गाड़ियां पार्किंग के नाम पर लगती हैं। शनिवार को काली मइया के चरणों पर मत्था टेकने के लिए बाहुबली से लेकर आम आदमी तक आते हैं। अब एक खास व्यक्ित ने हिन्दी विभाग की सीढ़ियों से अरबी विभाग के मुंहताने तक दीवार बनाने की राय दी। दीवार बनने लगी। दरभंगा हाउस के इंचार्ज को यह सब कुछ दिखलायी पड़ा तो नक्शे की मांग की गई तब पता चला कि यहां तो गार्डन बनना था तो दीवार कैसे बनायी जा रही है?ड्ढr ड्ढr इंचार्ज जी अनुशासन प्रिय हैं। उनका वश चले तो सब को अनुशासित कर दें लेकिन आदमी की सीमा है न? तब बात ठन गयी-आरे गार्डनवा बनेगा त गड़िया कहां लगेगा तुम सबके कपार पर? इंहा जो लोग पढ़ता है वही जानता है कि शनिवार के दिन कैसे आया जाए? वैसे जूनियर इंजीनियर से लेकर सभी लोगों ने स्वीकारा कि दीवार का बनना वाजिब नहीं इससे प्राचीन बिल्डिंग की महिमा भी जाती है। बहरहाल मामला रुका है। अब इस हेरिटेज बिल्डिंग का काया कल्प कब होगा मालूम नहीं? पूरा हाउस पुरातात्विक विभाग की धरोहर के रूप में परिलक्षित हो रहा है। अपने अपने मन मुताबिक काम संपन्न कराने की होड़ है तो देखा जाए कि इसकी पुरानी गंध बचती है कि नहीं? गंगा के किनारे यह ज्ञान-गौरव का हाउस अपनी चिंता में खामोश लगता है वैसे शोरगुल की कमी नहीं है।

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