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Hindi News 19 वर्ष पूर्व मिली थी लावारिस, अब हाथ होंगे पीले

19 वर्ष पूर्व मिली थी लावारिस, अब हाथ होंगे पीले

लगभग ढाई दशक तक अपराधों का दंश झेलते मोकामा में एक परिवार ऐसा भी है, जिसने सही अर्थों में मानवता की सच्ची मिसाल पेश की है। दो अनजान बच्चों को अपनी ममता की छांव देकर इस माता ने समाज को एक नया पाठ पढ़ा...

 19 वर्ष पूर्व मिली थी लावारिस, अब हाथ होंगे पीले
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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लगभग ढाई दशक तक अपराधों का दंश झेलते मोकामा में एक परिवार ऐसा भी है, जिसने सही अर्थों में मानवता की सच्ची मिसाल पेश की है। दो अनजान बच्चों को अपनी ममता की छांव देकर इस माता ने समाज को एक नया पाठ पढ़ा रही है। द्वापर में देवकी पुत्र कृष्ण को पालने वाली यशोदा की तरह ही मोकामा गुरुदेव टोले के कैलाश राम की पत्नी सरोबरी देवी भी एक नहीं बल्कि दो अनजान लावारिस बच्चों का पालन पोषण कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल होने लायक बना दी। इनकी कहानी आज से 1वर्ष पूर्व प्रारंभ होती है। कैलाश राम मोकामा रेलवे स्टेशन पर वेंडरी करता था। इसका वेंडर लाइसेंस संख्या 41 है।ड्ढr ड्ढr सन् 1में हथिदह डुमरा स्टेशन के बीच पुलिया पर एक महिला की हत्या कर लाश वहीं छोड़ हत्यारे फरार हो गये। उसी महिला के शव के पास 1 वर्ष की एक बच्ची भी थी। पुलिस को लाश की सूचना मिली तो पुलिस लाश और बच्ची को मोकामा जीआरपी ले आयी। एक वर्ष की बच्ची भूख से बिलख रही थी। लाश देखने जीआरपी थाना पहुंचे कैलाश राम उक्त बच्ची को बिलखते देख द्रवित हो गये। तब तत्कालीन एएसआई रेयाज खान ने उक्त बच्ची को वेंडर कैलाश राम की गोद में डाल दिया। कैलाश राम उक्त बच्ची को अपने घर ले गया, जहां उसकी पत्नी सरोबरी देवी ने उसे अपनी ममता की छांव प्रदान कर मातृधर्म की एक मिसाल गढ़ दी। बच्चों का पालन-पोषण कर पढ़ाया। अब कल्याणपुर ग्राम के पिन्टू राम उर्फ छोटू से शादी करने जा रही है। कैलाश राम एवं सरोबरी ने बचपन में इसकी सुंदरता पर मोहित हो इसका नाम खुशबू रखा था।ड्ढr ड्ढr इसके पूर्व भी इसी मोकामा रेल स्टेशन पर लावारिस पड़े एक बच्चे का भी लालन-पालन कर इन महान जोड़ी ने अपनी महानता का परिचय दिया। उस वक्त का लावारिस आज का गबरू जवान गोपाल राम है। जो अपने पालक पिता के साथ मोकामा स्टेशन पर चाय का स्टॉल चला बूढ़े हो चले मां-बाप का सहारा बना हुआ है। कैलाश राम और इसकी धर्म पत्नी सरोबरी देवी ने गुरुदेव टोला में दो कट्ठे जमीन खरीद आधा-आधा अपने बच्चों के नाम कर दिये हैं। विधाता को भी शायद यही मंजूर था। क्योंकि इस दम्पति को अपना कोई संतान नहीं है। ये बच्चे भी अपने महान माता-पिता के कार्यो से खुद को गौरवाविन्त महसूस करते हैं और समाज भी आम इंसान से ऊपर मानकर इनके आगे श्रद्धा से नतमस्तक है। इस स्वार्थी लालची एवं मतलबी समाज में धर्म, जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता का सबक देने वाले परिवार से सबक लेनी चाहिए।ं

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