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रेल बजट में कोयला सेक्टर के हाथ आयी निराशा

देश के अवाम को लोकलुभावन रेल बजट से खुश करने वाले लालू यादव कोयला सेक्टर को निराश कर गए। वह भी तब जबकि उसे सालाना 47 से 50 प्रतिशत सालाना राजस्व काला सोना ही देता रहा है। यह घटा है तो भी अगर बातपिछले...

 रेल बजट में कोयला सेक्टर के हाथ आयी निराशा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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देश के अवाम को लोकलुभावन रेल बजट से खुश करने वाले लालू यादव कोयला सेक्टर को निराश कर गए। वह भी तब जबकि उसे सालाना 47 से 50 प्रतिशत सालाना राजस्व काला सोना ही देता रहा है। यह घटा है तो भी अगर बातपिछले वित्त साल की हो तो इस दौरान कोयले की ढुलाई करके रेलवे के खजाने में पहुंचे 17, 800 करोड़ रुपये। अगले वित्त साल में रेलवे का कोयले की ढुलाई करके 1हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त करने का लक्ष्य है। दरअसल कोयले की एक स्थान से दूसरे स्थान पर ढुलाई करके रेल विभाग को स्टील, सीमंेट या फिर अनाज से कहीं अधिक राजस्व मिलता है। कोयला सेक्टर की लालू जी से इस बात की अपेक्षा नहीं थी कि वह कोयले की ढुलाई को सस्ता कर देंगे। ऐसा न तो कोयला मंत्रालय ने और न ही कोयला सेक्टर के जानकारों ने मांगा था। इन्होंने बस इस बात की अपेक्षा की थी कि लालू जी उन दूर-दराज के क्षेत्रों में भी रेल को ले जाएंगे जहां पर कोयले की माइंस हाल के दौर में मिली हैं। इनमें झारखंड की उत्तरकरण कोल माइन और उड़ीसा के संभलपुर की ईबीवैली कोल माइन शामिल हैं। इन दोनों में कोयले के बहुत बड़े भंडार मौजूद हैं। कोयला मंत्रालय में सलाहाकार एन.एन. गौतम कहते हैं कि यदि इन दोनों स्थानों पर इस रेलवे बजट में रेल लेकर जाने की व्यवस्था हो जाती तो निश्चित रूप से कोल सेक्टर को बहुत लाभ होता है। उन्होंने कहा कि झारखंड में कोल माइस से चालीस किलोमीटर की दूरी पर है रेल लाइन। इतनी दूर कोयले को सड़क मार्ग तक लेकर जाना बेहद महंगा और लगभग असम्भव ही होता है। बेहतर होता कि लालू जी इस ओर भी ध्यान देते। कोल सेकटर के एक और जानकार ने अपनी तीखी टिप्पणी में कहा कि कोल से रेल मंत्री को वोट नहीं मिलेंगे। वोट तो उन्हें रेल मुसाफिर ही दिलवा सकते हैं। जाहिर है कि इस तथ्य की रोशनी में उनसे अर्थव्यवस्था को आगे लेकर जाने में सर्वाधिक अहम भूमिका निभाने वाले सेक्टर की अनदेखी ही हुई। जानकार कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को डबल डिजिट की रफ्तार से आगे बढ़ाने मे कोल सेक्टर बेहद अहम भूमिका अदा करेगा। आखिर पर्याप्त एनर्जी की व्यवस्था होने के बाद ही उद्योग सही तरह से चल पाएंगे। बिना एनर्जी के सब बेकार है। और एनर्जी तो कोयले से ही मिलेगी। इसे देखते हुए रेल मंत्री को कोल सेक्टर के लिए अलग से सोचने की जरूरत थी।

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