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दतवन, गाय और सूटकेस की छवि

या आप संसद की सीढ़ी परसूटकेस उठाए रेलमंत्री और वित्तमंत्री की तस्वीर हर साल देखना चाहते हैं? मंत्री बदल जाते हैं, मगर सूटकेस का साइज और रंग स्थाई रहता है। बरसों से यही होता आया है। हालांकि इस बोरियत...

 दतवन, गाय और सूटकेस की छवि
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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या आप संसद की सीढ़ी परसूटकेस उठाए रेलमंत्री और वित्तमंत्री की तस्वीर हर साल देखना चाहते हैं? मंत्री बदल जाते हैं, मगर सूटकेस का साइज और रंग स्थाई रहता है। बरसों से यही होता आया है। हालांकि इस बोरियत भरी तस्वीर का पाठक दर्शक के लिए मतलब समझना मुश्किल है। लेकिन अगर रेलमंत्री लालू प्रसाद हों, तो इस दाल में और तड़का पड़ जाता है। रेल बजट के दिन प्रिंट और टीवी के कैमरे ने लालू की लुंगी, गंजी, दतवन और गाय की तस्वीर जमकर उतारी। सत्रह साल से इसी तरह के पोज दे रहे लालू प्रसाद यादव भी कहते ही किसी मॉडल की तरह गाय को चूमने लगे और अपने दांत मांजने लगे। लालू यादव की यह छवि भी सूटकेस जैसी हो गई है। लालू अगर सूट भी पहन लें, तो मीडिया उनकी लुंगी वाली ही तस्वीर खींचेगा। जब मैंने लालू के सलाहकार से कहा कि इसे बंद कर दीजिए तो कहा कि नहीं, गांव के लोगों को पता चलेगा कि लालू जी नहीं बदले हैं। कोलगेट और पेप्सोडेंट के टूथब्रश के कितने मॉडल बदल गए, मगर लालू जी का दतवन वही का वही। हम सब जानते हैं कि लालू जी सिर्फ पोज के लिए गाय के पास जाते हैं। दतवन हो सकता है कि वो रोज करते होंगे। लेकिन बजट के दिन यह तस्वीर? इतनी मारामारी के बाद टीवी पर शाम की खबरों में दिन का पोज गायब हो जाता है और अगले दिन अखबार में लालू का काटरून बना दिया जाता है। अगले दिन हर अखबार में लालू का काटरून ही बनाया गया था। कहीं जादूगर के रूप में तो कहीं शाहरुख खान की तरह सिक्स पैक वाली खुली कमीज में। सुबह खींची गई गाय और दतवन वाली तस्वीर कहीं कोने में छपी नजर आई। नतीजा रेल से मिल रही नई कामयाबी के बाद भी उनकी नई छवि नहीं बनती। शायद लालू गरीबों के नेता की छवि से चिपके रहना चाहते हैं। तस्वीरों का संबंध भी सत्ता से होता है। 0 के दशक में मुख्यमंत्री बनने से पहले भी उनके पास गाय-भैंस होंगी, मगर शायद ही उनकी ऐसी तस्वीर मिले। नेता भी जानते हैं तस्वीर का मतलब। तभी तो वो इस औपचारिक तस्वीर के लिए कुछ मिनट तक हवा में सूटकेस उठाए रहते हैं। बतौर संवाददाता रेल बजट के दिन मैं भी रेल मंत्री के घर पर था। उनके साथ नाश्ता कर दतवन और लुंगी वाली औपचारिक तस्वीर को बदलने की कोशिश की। मगर लालू हैं कि मानते नहीं। थाली उठा ली और लगे दही गटकने। यह भी तस्वीर बन गई। कैमरे लालू को नहीं, लालू कैमरे को बदल देते हैं। लेकिन अराजक से दिखने वाले लालू असल में ऐसे नहीं हैं। उनके बैठकखाने में जाइए, हर चीज करीने से रखी होती है। घर के अहाते में बेहतरीन साजसज्जाड्ढr दिखती है।ड्ढr इसमें लालू का भी योगदान होगा। मगर वो अपनी इस छवि को मीडिया के जरिए लोगों तक नहीं पहुंचने देते। कैमरा देखते ही वे अपने घर के पीछे के लॉन की तरफ चलने लगते हैं, जहां उनकी गाय बंधी होती है। इस पूरी औपचारिकता में बेचारे की तरह नजर आते हैं रेल और वित्तराज्य मंत्री। गठबंधन और पार्टी की मजबूरी को संतुलित करने के लिए बनाए गए ये दो राज्यमंत्री फ्रेम में खड़े तो होते हैं, मगर अगले दिन नजर नहीं आते। पता नहीं बजट बनाने की असल प्रक्रिया में इन अदने मंत्रियों की कितनी भूमिका होती होगी।ड्ढr किसी संवाददाता को बजट के अगले दिन इन राज्यमंत्रियों से पूछना चाहिए, आपकी तो तस्वीर भी नहीं छपी। कैसा लग रहा है? आपके भी तो बाल बच्चे होंगे? पूछते होंगे पापा लालू और चिदंबरम की तस्वीर है, लेकिन आपकी नहीं? क्या आप बजट के दिन संसद की बजाए जोधा अकबर देखने गए थे।

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